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संघ के कार्यक्रम में प्रणब दा के शामिल होने से खौफजदा क्‍यों है ‘सेक्युलर’ कांग्रेस?

पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब दा ने संघ के कार्यक्रम में शामिल होने का संकेत देकर कांग्रेस को जेपी और जनसंघ की दोस्‍ती की याद ताजा करा दी है।

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संघ के कार्यक्रम में प्रणब दा के शामिल होने से खौफजदा क्‍यों है 'सेक्युलर' कांग्रेस?

नई दिल्‍ली। आगामी 7 जून को राष्‍ट्रीय स्‍वंय सेवक संघ (आरएसएस) मुख्‍यालय नागपुर पहुंचकर देश के पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी एक बार इतिहास को दोहरा सकते हैं। यह इतिहास संपूर्ण क्रांति के जनक और लोकनायक जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने इंदिरा द्वारा लगाई इमरजेंसी के दौरान रचा था। अगर प्रणब दा आरएसएस के कार्यक्रम में ऐसा कुछ कह जाते हैं तो न केवल संघ को एक बार भारतीय राजनीतिक व्‍यवस्‍था में सार्वभौमिक स्‍वीकार्यता मिलेगी बल्कि सत्‍ता के शिखर तक पहुंचने का राहुल का रास्‍ता भी बंद हो सकता है। यही कारण है कि सोनिया और राहुल गांधी की कांग्रेस आज असहज दिखाई देने लगी है और उसे प्रणब दा का नागपुर जाना स्‍वीकार्य नहीं है। अब पार्टी हाईकमान की ओर से कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पूर्व राष्‍ट्रपति के खिलाफ बेहिचक जुबानी तोप चलाने में जुटे हैं। आपको बता दें कि 7 जून को प्रणब दा संघ के मुख्यालय नागपुर पहुंचकर तृतीय वर्ग के स्वंयसेवकों के विदाई समारोह में हिस्सा लेंगे और उन्‍हें सबोधित करेंगे।

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संघ के कार्यक्रम में जेपी ने क्‍या कहा था?
दरअसल, इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए इमरजेंसी से कुछ समय पहले अटल बिहारी वाजपेयी और एल के आडवाणी के निमंत्रण पर जेपी संघ के सत्र में शामिल हुए थे। उसी सत्र में जेपी ने ऐतिहासिक बयान दिया था, 'मैं इस सत्र में शामिल होकर देश को ये बताने आया हूं कि जनसंघ न तो फासीवादी है और न ही प्रतिक्रियावादी। मैं इस बात की घोषणा खुद जनसंघ के मंच से कर रहा हूं। ऐसे में अगर जनसंघ फासीवादी है तो जयप्रकाश नारायण भी फासीवादी है।' जेपी ने उस समय ये भी कहा था कि 'फासीवाद का उदय कहीं और हो रहा है।' आपको बता दें कि जेपी भी प्रणब मुखर्जी की तरह ही एक कांग्रेसी थे लेकिन जेपी और प्रणब के बीच किसी तरह की तुलना करना अनुचित होगा, सिवाय इस बात के कि जेपी ने भी उम्र के अपने आखिरी पड़ाव पर 1970 के दशक में आरएसएस को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि आरएसएस गलत है और अब प्रणब मुखर्जी को भी नहीं लगता है कि आरएसएस के साथ संवाद करना या विचारों का आदान प्रदान करना किसी तरह का पाप है। जेपी के इस बयान से आरएसएस को वैधता मिली थी, जिसके लिए कांग्रेस ने उन्‍हें कभी माफ नहीं किया।

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प्रणब ने ऐसा किया तो क्‍या होगा?
प्रणब दा का संघ कार्यक्रम में ऐसे समय में शामिल होने जा रहे हैं जब मोदी विरोधी और भाजपा-आरएसएस विरोधी शक्तियों को एक मंच पर लाने की कवायद चल रही है। मोदी विरोध के नाम पर सामाजिक और राजनीतिक गठबंधन खड़ा करने की वकालत की जा रही है। ऐसे में किसी बुजुर्ग कट्टर कांग्रेसी का आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होना कथित सेक्युलरों को नागवार जरूर लगेगा। इतना ही नहीं सबसे ज्‍यादा झटका कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उस मुहिम को लगेगा जिसको लेकर वो 2014 के बाद से ही सक्रिय और आक्रामक हैं। आपको याद दिला दें कि पिछले कई सालों ने राहुल गांधी आरएसएस को महात्मा गांधी का हत्यारा कहते आ रहे हैं। इस मामले में उन पर मानहानि का मुकदमा लंबित चल रहा है। इसके बावजूद अपना जीवन कांग्रेस को समर्पित करने वाले प्रणब मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने का निर्णय राहुल की राजनीतिक आधारभूमि को हिला सकता है।

एंटी आरएसएस-भाजपा की निकल सकती है हवा
अगर ऐसा हुआ तो प्रणब के संघ मुख्यालय जाने के बाद एंटी मोदी और एंटी भाजपा-आरएसएस की उस कहानी की हवा निकल जाएगी जिसको बनाने के लिए राहुल गांधी वर्षों से मेहनत कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि पूर्व राष्ट्रपति के आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने और वहां आरएसएस के स्वंयसेवकों को संबोधित करने से इस संस्था की मान्यता में और इजाफा होगा। चुनावी साल में ऐसा होना कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है।