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आपातकाल: जेपी के समग्र आंदोलन से उभरे ये नेता आज चुप क्‍यों हैं?

कहीं इस चुप्‍पी के पीछे मोदी सरकार के खिलाफ बेहतर विकल्‍प की तलाश तो नहीं?

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Dhirendra Kumar Mishra

Jun 26, 2018

jp movement

आपातकाल: जेपी के समग्र आंदोलन से उभरे ये नेता आज चुप क्‍यों हैं?

नई दिल्‍ली। तैता‍लीस साल पहले इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। उस समय लोकनायक जय प्रकाश नारायण का समग्र आंदोलन चरम पर था। तत्‍कालीन पीएम इंदिरा गांधी जेपी के आंदोलन से डर गईं थी। आपातकाल की घोषणा के साथ जेपी, मधु लिमये, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्‍ण आडवाणी, मधु दंडवते, जॉर्ज फर्नांडीस जैसे कद्दावर नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। ऐसे में इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ जेपी के समग्र आंदोलन को चालू रखना कठिन हो गया था। लेकिन उसी दौरान जेपी को कुछ ऐसे नौजवानों का साथ मिला जिनके दम पर न केवल उनका आंदोलन सफल रहा बल्कि इंदिरा गांधी को आपातकाल को वापस लेते हुए आम चुनाव कराना पड़ा और वह जननायकों से हार गईं। लेकिन, ताज्‍जुब की बात ये है कि जेपी के आंदोलन से उभरे नेता आपातकाल के 43 साल पूरा होने पर चुप क्‍यों हैं?

जेपी के आंदोलन से उभरे नेता
लोकनायक जेपी के समग्र आंदोलन में हजारों की संख्‍या में नौजवानों ने सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें से कई लोग अपने राजनीतिक जीवन में देश की राजनीति पर छाप छोड़ने में कामयाब हुए। उन नेताओं ने आज भी कुछ नेता जीवित हैं जो भारतीय राजनीति पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हैं। इन नामों में बिहार के सीएम नीतीश कुमार, आरजेडी प्रमुख लालू यादव, लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) प्रमुख शरद यादव, बिहार के डिप्‍टी सीएम व भाजपा नेता सुशील मोदी, केंद्रीय मंत्री व लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम आता है। इनमें से जेटली और सुशील मोदी आज आपातकाल विरोध दिवस मना रहे हैं। लेकिन शेष चार नेता मौन हैं। उनकी चुप्‍पी आंदोलन के जानकारों को परेशान करने वाली है। जहां तक लालू यादव चारा घोटाले में दोषसिद्ध होने के बाद अपना ईलाज करवा रहे हैं और जमानत पर हैं। शरद यादव जेडीयू से नाता तोड़कर अलग राह पकड़ चुके हैं। नीतीश कुमार आरजेडी से अलग होकर भाजपा के साथ हैं लेकिन सैद्धांतिक आधार पर उनका तालमेल नहीं है। जहां तक इन नेताओं की चुप्‍पी की बात है तो उसके पीछे व्‍यक्तित्‍व की लड़ाई कारण हो सकते हैं।

1. धर्मसंकट
वर्तमान राजनीति परिप्रेक्ष्‍य में बात करें तो ये चारों राजनेता अपने राजनीति के ढलान पर हैं। इसलिए इन नेताओं के पास आपातकाल के 43 साल पूरे होने के बावजूद बोलने करे कुछ नहीं है। इसलिए उनके पास चुप रहने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। ऐसा इसलिए कि इन नेताओं ने अपनी राजनीति का आधार समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, पिछड़ा वर्ग कल्‍याण, गरीबी उन्‍मूलन व दबे कुचलों को ऊपर उठाने जैसे सिद्धांतों को बनाया। इसके आधार पर तीन दशक से ज्‍यादा समय से देश में गठबंधन सरकार का दौर चला। आज केंद्र में पीएम मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार है। पीएम मोदी के सामने इन सभी की हैसियत राजनीतिक क्षत्रप से ज्‍यादा की नहीं है। इतना ही नहीं देश पर करीब 60 साल तक राज करने वाली पार्टी कांग्रेस की भी हैसियत कुछ वैसी ही है। यही कारण है कि ये लोग मोदी सरकार के खिलाफ राजनीति जंग लड़ने के लिए धर्मसंकट में फंसे हुए हैं। धर्मसंकट इसलिए कि ये नेता अभी तक कांग्रेस के विरोधी रहे हैं। जबकि मोदी को हराने के लिए कांग्रेस की तरफ से महागठबंधन में शामिल होने का न्‍यौता भी है। एक और विकल्‍प उनके पास थर्ड फ्रंट का है जिसका नेतृत्‍व फिलहाल ममता बनर्जी कर रही हैं। ऐसे में विपक्षी एकता संकट में है और इसी उलझन में ये राजनेता अपनी आगे की रणनीति तय नहीं कर पा रहे हैं।

2. मोदी का डर
2014 लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बहुमत हासिल कर नरेंद्र मोदी पीएम बने हैं। उनके शासनकाल में दक्षिणपंथी विचारधारा को विस्‍तार मिला है। साथ ही भाजपा की 21 राज्‍यों में सरकार है। कांग्रेस की अपने दम पर दो राज्‍यों में सरकार है और कर्नाटक में उसकी जेडीएस के साथ गठबंधन की सरकार है। लालू यादव जमानत पर अपना इलाज करवा रहे हैं। शरद यादव ने नीतीश से अलग होकर हाल ही में लोकतांत्रित जनता दल का गठन किया है। रामविलास पासवान मोदी कैबिनेट में शामिल हैं। जबकि पीएम मोदी अपने दम पर बहुमत वाली सरकार का नेतृत्‍व कर रहे हैं। यही कारण है इन सभी नेताओं को मोदी का जनमानस पर प्रभाव का डर सताने लगा हैं। इन नेताओं को इस बात का डर है कि अगर मोदी सरकार 2019 में दोबारा से सत्‍ता में आ गई तो उनका राजनीतिक भविष्‍य चौपट हो सकता है।

3. अस्तित्‍व की लड़ाई
यही कारण है कि देश के वर्तमान राजनीतिक हालातों में कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक क्षत्रपों के समक्ष अस्तित्‍व का संकट उठ खड़ा हुआ है। इससे पार पाने के लिए इनके पास विपक्षी एकता एक विकल्‍प है। लेकिन जिस तरह से नेतृत्‍व को लेकर आपस में संघर्ष जारी है उसको देखते हुए विपक्षी एकता आज भी दूर की कौड़ी दिखाई दे रहा है। हालांकि सच ये भी है कि उनके पास इसके सिवाय और कोई चारा भी नहीं है।