ज्ञानेश उपाध्याय @ पटना. केन्द्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाहा का राजनीतिक भाव इन दिनों गिर गया है। बिहार के पढ़े-लिखे नेताओं में गिने जाने वाले कुशवाहा पॉलिटिकल साइंस के लेक्चरर रहे हैं, लेकिन उनकी कमजोरी का सबसे बड़ा कारण है उनकी कमजोर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा)। वे यह बात भूल गए हैं कि गठबंधन की राजनीति में संख्या का महत्व होता है और संख्याबल कुशवाहा के पीछे नहीं दिख रहा है, इसलिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी उनसे मिलने में विशेष रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के तीन लोकसभा सांसद हैं और दो विधायक। जहानाबाद से सांसद डॉ. अरुण कुमार वर्ष 2016 में ही एक विधायक ललन पासवान के साथ कुशवाहा से दूर हो गए थे। सीतामढ़ी से सांसद रामकुमार शर्मा भी उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए विरोधी राजनीति में शामिल नहीं हैं। स्वयं कुशवाहा कारकट सीट से लोकसभा सांसद हैं और अपनी रणनीति के साथ अपनी ही पार्टी में अकेले पड़ चुके हैं। कुशवाहा के लिए देर हो चुकी है, उन्हें वर्ष 2016 में ही डॉ. अरुण कुमार को अपने से अलग नहीं करना चाहिए था। गौरतलब है कि डॉ. अरुण कुमार ने 2016 में कुशवाहा को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर पार्टी पर अधिकार का दावा किया था, बदले में कुशवाहा ने डॉ. अरुण कुमार को पार्टी से निलंबित करवा दिया था।
एनडीए में भी घटा भाव 2014 के लोकसभा चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल थे और तीन सीटें उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को दी गई थीं और तीनों ही सीटों पर रालोसपा को जीत मिली थी। उपेन्द्र कुशवाहा केन्द्र सरकार में राज्यमंत्री बने, तो उनका कद बढ़ा, जिसका फायदा उन्होंने वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में उठाया। गठबंधन से 23 सीटें लेने में कामयाब रहे, लेकिन जीते मात्र 2 सीट और बिहार में एनडीए की हार की एक बड़ी वजह बने। कुशवाहा की राजनीतिक सौदेबाजी की शक्ति घट चुकी है, लेकिन वे भाजपा से फिर ज्यादा सीटें पाने के लिए आक्रामक दिख रहे हैं। बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) की कोशिश है कि उपेन्द्र कुशवाहा वापस पार्टी में लौट आएं।
1982 में छात्र राजनीति से सियासी शुरुआत वैशाली में 6 फरवरी 1960 को जन्मे कुशवाहा वर्ष 1982 से राजनीति में सक्रिय हैं। छात्र राजनीति से सियासी कैरियर की शुरुआत की, लोकदल और फिर जनता दल में लंबे समय तक रहे। वर्ष 2000 में समता पार्टी के टिकट पर विधायक बने। वर्ष 2010 में जनता दल (यूनाइटेड) में रहते हुए राज्यसभा सांसद बने। वर्ष 2013 में पार्टी से अलग हुए। रालोसपा का गठन किया और बिहार में एनडीए का हिस्सा बन गए। वर्ष 2014 से लोकसभा सांसद और केन्द्रीय राज्यमंत्री हैं।