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लोकसभा चुनावः क्या द्रविड़ राजनीति को मिलेगा जयललिता या करुणानिधि जैसा करिश्माई नेतृत्व, मोदी-शाह का बढ़ेगा दखल

1998 में मिले एआईएडीएमके से गठबंधन का लाभ नहीं उठा पाई थी भाजपा
इस बार तमिलनाडु में भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में है
भाजपा के पास है तमिलनाडु में विस्‍तार का सुनहरा अवसर

नई दिल्लीApr 22, 2019 / 07:41 pm

Dhirendra

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लोकसभा चुनाव से द्रविड़ राजनीति को मिलेगा जयललिता या करुणानिधि जैसा जननायक, या मोदी-शाह की बढ़ेगी दखल

नई दिल्ली। तमिलनाडु में अम्‍मा और कलैगनार के निधन के बाद से द्रविड़ राजनीति में एक करिश्माई नेता का स्‍थान खाली है। ऐसा इसलिए कि वहां पर लोकसभा का चुनाव दशकों तक तमिल राजनीति के पर्याय रहे जयललिता और करुणानिधि के बगैर संपन्‍न हुआ है। इस स्‍थान को हासिल करने के लिए कई द्रविड़ नेता जद्दोजहद में जुटे हैं। दूसरी तरफ राष्‍ट्रीय स्‍तर के राजनेताओं के लिए भी इस स्‍थान पर काबिज होने का सुनहरा अवसर है। यही वजह है कि 17वीं लोकसभा का चुनाव तमिल राजनीति के लिहाज सेे कई मायनों अहम माना जा रहा है।
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2 दशक पहले गठबंधन का लाभ नहीं उठा पाई थी भाजपा

तमिलनाडु में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़ाने के लिए कांग्रेस के बाद पहली बार 1998 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा के लिए रास्‍ता बनाने की कोशिश की थी, लेकिन जयललिता की ‘द्रविड़ फर्स्‍ट’ की नीति ने उनके इन अरमानों पर पानी फेर दिया था। हालांकि आजादी के बाद दशकों तक वहां पर कांग्रेस का प्रभुत्‍व रहा लेकिन नेहरू के बाद कांग्रेस का असर वहां पर धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया। एआईएडीएमके की ओर से 1998 में एनडीए सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की वजह से वाजपेयी को यह अवसर मिला था। इसके बावजूद भाजपा तेलगूभाषी राज्य में अभी तक अपना पांव नहीं जमा पाई है।
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कांटे की टक्कर

दो दशक बाद एक बार फिर जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके और भाजपा सहित कई अन्‍य क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस-डीएमके गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती पेश की। 18 अप्रैल को प्रदेश के 39 संसदीय क्षेत्रों में से 38 संसदीय सीटों पर मतदान हुआ है। सवाल यह है कि भाजपा इस बार भी तमिलनाडु की राजनीति में अहम स्‍थान बना पाएगी या नहीं। क्या मोदी-शाह भाजपा को विस्‍तार देने मेंं कामयाब होंगे?
द्रविड़ राजनीति में बेअसर क्‍यों है भाजपा?
तमिलनाडु में पार्टी का जनाधार बढ़ाने में भाजपा को अभी तक सफलता नहीं मिली है। विगत 3 लोकसभा चुनाव में से केवल 2014 में कन्याकुमारी संसदीय सीट पर भाजपा के प्रत्याशी पी राधाकृष्णन जीत हासिल करने में कामयाब हुए। भाजपा को 2014 में 39 सीटों में से वेल्लोर, कोयंबटूर और पोलाची सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। लोकसभा चुनाव 2009 में केवल कन्याकुमारी सीट पर भाजपा प्रत्याशी को दूसरे नंबर पर रहने में कामयाबी मिली। लोकसभा चुनाव 2004 में भाजपा उत्तर चेन्नई, नीलगिरीस, कोयम्बटूर और नगेरकोइल संसदीय सीट पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही। यानि 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में भाजपा एक भी सीट पर लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाई।
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कौन लेगा अम्‍मा और कलैगनार का स्‍थान
वर्तमान में करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन के हाथ में डीएमके की कमान है तो एआईएडीएमके की कमान उपमुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम और मुख्यमंत्री ईके पलानिसामी मिलकर संभाल रहे हैं। इसके अलावा राजनीति के मैदान में दक्षिण के सुपरस्‍टार रजनीकांत और कमल हासन भी कूद पड़े हैं। दोनों को दक्षिण में एआईएडीएमके के पूर्व प्रमुख जयललिता की तरह करिश्माई नेता माना जा रहा है लेकिन अभी तक अपना असर छोड़ पाने में सफल नहीं हुए हैं।
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भाजपा के लिए मुफीद समय
भाजपा के लिए राहत की बात ये है कि दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्‍टार रजनीकांत ने अपनी पार्टी को लोकसभा चुनाव में न उतारने का ऐलान कर दिया तो दूसरी तरफ अभिनेता कमल हासन राज्य की राजनीति में अपना असर नहीं छोड़ पाए हैं। एक साल पुरानी उनकी पार्टी मक्कल नीधि मय्यम (एमएनएम) का असर न के बराबर है। इन्हीं स्थितियों को भाजपा फिलहाल अपने लिए मुफीद मानकर चल रही है। ऐसा इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में करिश्माई चेहरा भाजपा के पास है।
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