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प्रयागराज

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय, नाबालिग भी पा सकता है अग्रिम जमानत

Allahabad High Court: खंडपीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि नाबालिग अग्रिम जमानत अर्जी नहीं दाखिल कर सकता, क्योंकि उसे इसका अधिकार नहीं है। ऐसा करके उसे अग्रिम जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

प्रयागराजJun 05, 2023 / 08:21 am

Aman Pandey

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Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिग को भी अग्रिम जमानत हासिल करने का अधिकार है। किसी मामले में गिरफ्तारी या निरुद्ध किए जाने की आशंका होने पर नाबालिग भी अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है।
यह निर्णय मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने साहब अली केस में एकल पीठ के कानूनी प्रश्न पर दिया है। खंडपीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि नाबालिग अग्रिम जमानत अर्जी नहीं दाखिल कर सकता, क्योंकि उसे इसका अधिकार नहीं है। ऐसा करके उसे अग्रिम जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
2015 में जुवनाइल जस्टिस एक्ट में हुआ था संशोधन
एकल न्याय पीठ ने जैद अली और कई अन्य की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर यह कानूनी प्रश्न वृहद पीठ को संदर्भित किया था। खंडपीठ ने कहा कि नाबालिग को 2015 के संशोधन में जुवनाइल जस्टिस एक्ट के तहत अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार है और अंतरिम जमानत अर्जी पोषणीय है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 438 में किशोर की ओर से अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है। साहब अली केस में एकल पीठ ने कहा था कि वनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 10 व 12 के प्रावधानों के मुताबिक नाबालिग की गिरफ्तारी की आशंका नहीं है, इसलिए उसे अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार नहीं है।
अग्रिम जमानत की मांग करने पर कोई रोक नहीं लगाई
खंडपीठ ने कहा कि एक्ट में ऐसी कोई रोक नहीं है, इसलिए अपराध में सम्मिलित होने व संदेह की आशंका वाले किशोर को उसके वैधानिक उपचार से वंचित नहीं रखा जा सकता। यदि उसे अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो तो विधायन ने ऐसी स्थिति में धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग करने पर कोई रोक नहीं लगाई है। खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसा अधिकार नहीं दिया जाता है तो फिर नाबालिग को अपने मौलिक अधिकार से वंचित होना होगा।

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