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अतीक अहमद ने जिंदगीभर की सिर्फ 2 दलों की राजनीति, जब-जब सपा ने निकाला, इसी पार्टी ने संभाला

Atiq Ahmed Murder: अतीक अहमद को जब-जब समाजवादी पार्टी से निकाला गया, उनको अपना दल में ही जगह मिली।

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Atiq ahmed Murder

अतीक अहमद ने लंबे समय निर्दलीय राजनीति की थी।

5 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अतीक अहमद की उसके पूर्व MLA भाई अशरफ की शनिवार रात गोली मारकर हत्या कर दी गई। 61 साल की उम्र में कत्ल किए गए अतीक अहमद का करीब 30 साल लंबा राजनीतिक करियर रहा। अपने राजनीतिक जीवन में अतीक दो ही पार्टियों में रहा, एक समाजवादी पार्टी और दूसरी अपना दल।


पहले तीन बार निर्दलीय बने विधायक
अतीक अहमद ने सियासत की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिम सीट से 1989 में निर्दलीय चुनाव लड़कर की और जीते। अतीक ने इसके बाद 1991 और 1993 में भी निर्दलीय जीतकर विधायक बनने की हैट्रिक लगाई।

1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद अतीक सपा के करीब आए। वो सपा में शामिल हो गए और 1996 में सपा के टिकट से चुनाव लड़कर चौथी बार इलाहाबाद पश्चिम से विधायक बन गया।

सांसद बनने की चाह ने किया सपा से दूर
सपा में आने के कुछ दिन बाद ही अतीक की पार्टी से अनबन हो गई। इसकी वजह अतीक की लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा मानी गई। अतीक ने 1999 में सपा छोड़कर सोने लाल पटेल की पार्टी अपना दल का दामन थामा। अतीक ने अपना दल से प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली।

अपना दल ने बनाया प्रदेश अध्यक्ष
अपना दल ने अतीक अहमद को संगठन में भी सम्मान दिया। अतीक अहमद 2002 के विधानसभा चुनाव में अपना दल के यूपी के अध्यक्ष रहे। ये वो समय था जब यूपी में अपना दल में डॉक्टर सोनेलाल के बाद अतीक की ही चलती थी। 2002 के विधानसभा में अतीक ने इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट अपना दल से लड़कर ही जीती और 5वीं बार विधायक बना।

2003 में फिर मुलायम सिंह से बनी बात
2003 में जब मुलायम सिंह ने बसपा को तोड़कर सरकार बनाई तो इस दौर में एक बार फिर अतीक की सपा से नजदीकी बढ़ी। अतीक एक बार फिर सपा में शामिल हुआ। इस बार सपा ने फूलपुर से अतीक को लोकसभा का टिकट दिया। इस दफा अतीक को जीत मिली और वो सांसद हो गया।

सपा ने निकाला तो फिर अपना दल ने संभाला
2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार बनने के बाद अतीक अहमद मॉस्ट वांटेड घोषित हुआ तो सपा ने उसको पार्टी से बाहर कर दिया। अतीक अहमद जेल चल चला गया तो एक बार फिर उसे अपना दल से ही सहारा मिला।

2009 के लोकसभा चुनाव के समय में अतीक अहमद ललितपुर जेल में थे। सोनेलाल पटेल ने उनको पार्टी का प्रतापगढ़ से उम्मीदवार बताते हुए उसकी घर वापसी बताया। जेल से ही अतीक चुनाव लड़ा लेकिन हार मिली। उसे 1,08,211 वोट मिले।

2012 में जेल से ही अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिम का विधानसभा चुनाव लड़ा। पहली बार अतीक अहमद की विधानसभा चुनाव में हार हुई। अतीक को पूजा पाल ने हरा दिया।

2014 में फिर हुई सपा में वापसी
2014 में एक बार फिर अतीक की सपा में वापसी हुई। श्रावस्ती से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। इसके बाद 2017 के चुनाव में सपा ने अतीक को टिकट दिया लेकिन फिर कैंसिल कर दिया। अतीक का सपा से इस दफा नाता टूटा तो किसी दल से ना जुड़ा। दूसरी ओर अतीक भी एक बार फिर जेल चला गया। जेल से ही 2018 में फूलपुर उपचुनाव और 2019 में वाराणसी लोकसभा चुनाव लड़ा। दोनों चुनाव में बुरी तरह हारा।

बीते कुछ समय से अतीक की पत्नी शाइस्ता राजनीति में एक्टि थीं। वो पहले AIMIM और फिर बसपा से जुड़ीं। बसपा ने उनको प्रयागराज से मेयर कैंडिडेट भी बनाया। इसके बाद 24 फरवरी को प्रयागराज का उमेशपाल हत्याकांड हुआ और इसके डेढ़ महीने बाद अतीक की भी हत्या हो गई।


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