
साल 2012 में अतीक जेल में बंद था। उसने चुनाव लड़ने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत मिल गई। हलांकि चुनाव में अतीक अहमद की हार हुई। उसे राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने हरा दिया था।
11 साल बाद आज यानी 28 मार्च को अतीक अहमद प्रयागराज के MP-MLA कोर्ट ने सजा सुनाया। अतीक सहित तीन को उम्रकैद की सजा हुई। अशरफ समेत सात आरोपियों को दोष मुक्त कर दिया है।
कोर्ट के बाद वकील जूतों की माला लेकर पहुंचे। कोर्ट के बाहर योगी जी जिंदाबाद ओर जय जय श्रीराम के नारे लगे। मेरी जान चली जाए...मैं अतीक को जूतों की माला पहनाऊंगा। कोर्ट के बाहर पत्रकारों और वकीलों के बीच झड़प हुई।
अतीक अहमद को जजा सुनाने वाले जज दिनेश चंद्र शुक्ला है। 2009 बैच के न्यायिक अधिकारी हैं। दिनेश शुक्ला ने न्यायपालिका में अपने करियर की शुरुआ भदोही के ज्ञानपुर में ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट से की थी। इसके बाद वह लाॅ से जुड़े और कई पदों पर रहे। दिनेश शुक्ला 29 फरवरी 2028 को रिटायर हो जाएंगे।
17 की उम्र में दर्ज हुआ पहला हत्या का मुकदमा
1979 में 17 साल का अतीक 10वीं कक्षा में फेल हो गया। लूट, अपहरण और रंगदारी वसूलने जैसी वारदातों को अंजाम देने लगा। उसी वक्त उस पर एक हत्या का केस दर्ज हुआ। इसके बाद उसका धंधा चल निकला। खौफ बढ़ने लगा। उसे बड़े-बड़े सरकारी ठेके मिलने लगे और वो जमकर पैसा कमाने लगा। अपराध की दुनिया में उसका नाम बड़ा होता गया। बाहुबली चांद बाबा के विरोधी और पुलिस उसे शह देने लगी।
1986 में अतीक जेल से छूट गया
7 सालों में अतीक चांद बाबा से भी ज्यादा खतरनाक हो गया था। लूट, अपहरण और हत्या जैसी खौफनाक वारदातों को लगातार अंजाम दे रहा था। जिस पुलिस ने उसे शह दे रखी थी, अब वही दिन-रात उसे तलाशने में जुट गई। एक दिन अतीक पुलिस के हत्थे चढ़ गया। लोगों को लगा कि अब अतीक का काम खत्म हो गया। उन दिनों प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र में राजीव गांधी की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, “अतीक की गिरफ्तारी के बाद उसे छुड़ाने के लिए दिल्ली से फोन आया था। माफियागिरी के 7 सालों में प्रयागराज के कांग्रेस सांसद से उसके अच्छे संबंध बन चुके थे।
1989 में चांद बाबा की दिनदहाड़े हो गई हत्या
अपराध की दुनिया में बड़ा नाम बनने के बाद अब अतीक बड़ा नेता बनना चाहता था। साल 1989 में उसने शहर की पश्चिमी विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। चुनावी मैदान में सामने था चांद बाबा। चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान अतीक और चांद बाबा के बीच कई बार गैंगवार हुआ। अतीक अपनी दहशत के चलते चुनाव जीत गया। कुछ महीनों बाद बीच चौराहे पर दिनदहाड़े चांद बाबा की हत्या हो गई। अब पूरे पूर्वांचल में उसकी दहशत थी।
Published on:
16 Apr 2023 12:33 am
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