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Chandra Grahan 2023: पांच मई के चंद्रग्रहण का यहां नहीं पड़ेगा प्रभाव, जानिए ज्योतिषाचार्य ने क्या कहा?

Chandra Grahan 2023: पांच मई को साल का पहला चंद्रग्रहण पड़ेगा। हालांकि इसका असर भारत में नहीं होगा। आइए आपको बताते हैं कि इस चंद्रग्रहण को लेकर ज्योतिषी क्या कहते हैं?

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Chandra Grahan 2023

साल का पहला चंद्र ग्रहण 5 मई को लग रहा है। इसके साथ ही इसी दिन बुद्ध पूर्णिमा भी है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण को अशुभ माना जाता है। ज्योतिषियों का कहना है कि इस चंद्रग्रहण का असर भारत पर नहीं पड़ेगा। हालांकि इसके पीछे वैज्ञानित तर्क यह है कि जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आती है तब चंद्रग्रहण लगता है। आइए आपको इसकी पूरी जानकारी से रू-बरू कराते हैं।

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज मिश्रा ने बताया कि 5 मई को पड़ने वाले चंद्रग्रहण का भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह चंद्रग्रहण यहां दिखाई भी नहीं देगा। इसलिए हमारे यहां यह मान्य नहीं है। भारत में साल का पहला चंद्रग्रहण नवंबर में पड़ेगा। नवंबर में पड़ने वाले चंद्रग्रहण का राशियों पर प्रभाव पड़ेगा।

क्या है समय और कहां दिखाई देगा
चंद्र ग्रहण 5 मई को भारतीय समय के अनुसार 8 बजकर 44 मिनट से लेकर मध्य रात्रि करीब 1 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। यानी कि कुल 4 घंटे 15 मिनट तक ग्रहण रहेगा। साल का पहला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। यह चंद्र ग्रहण यूरोप, मध्य एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अटलांटिक, हिंद महासागर और अंटार्कटिका जैसी जगहों पर दिखाई देगा।

यह चंद्र ग्रहण अनोखा क्यों है?
5 मई का चंद्र ग्रहण इसलिए खास है क्योंकि यह लगभग दो दशकों बाद दोबारा होगा। इसे उपछाया ग्रहण भी कहा जाता है, यह चंद्रमा को पृथ्वी की छाया के धुंधले, बाहरी हिस्से से गुजरते हुए दिखेगा, जिसे पेनम्ब्रा के रूप में जाना जाता है। ऐसे में ग्रहण के दौराण चंद्रमा को धूमिल अवस्था में देख पाएंगे। यह पूर्णमासी पर उपछाया चंद्रग्रहण है जिसे ग्रहण नहीं माना जाता। यह एक नैसर्गिक खगोलीय घटना है जिसमें चंद्रमा की छाया पड़ती है। ऐसे में इसका कोई प्रभाव नहीं होता।

ज्योतिष शास्‍त्र के अनुसार इसलिए होता है चंद्रग्रहण
चित्रकूट निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज मिश्रा बताते हैं "समुद्र से निकले अमृत को पीने के लिए राहु ने देवताओं का रूप रखा था। इसकी पोल खुलते ही भगवान विष्‍णु ने राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन अमृत पीने की वजह से राहु की मृत्यु नहीं हुई ‌थी।

वह दो अलग-अलग हिस्से में बंट गया। इसलिए सिर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है। राहू-केतु खुद के शरीर की इस हालत का जिम्मेदार सूर्य और चंद्रमा को मानते हैं, इसलिए राहू हर साल पूर्णिमा और अमावस्या के दिन सूर्यदेव और चंद्रदेव को ग्रहण लगाते हैं। यानी उन्हें कष्ट पहुंचाते हैं। जिस वजह से चंद्रग्रहण लगता है।

क्या कहती है चंद्र ग्रहण की वैज्ञानिक मान्यताएं ?
वैज्ञानिक रूप से कहा जाए तो पृथ्‍वी, सूर्य के चक्‍कर लगाती है और चंद्रमा पृथ्‍वी के चक्‍कर लगाता है। इसी चक्‍कर के बीच एक समय ऐसा आता है जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है। इस स्थिति में ये तीनों एक सीध में आ जाते हैं। जिस वजह से सूर्य की किरणे चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती हैं और इसी वजह से चंद्रमा पर ग्रहण लग जाता है। आसान भाषा में कह सकते हैं कि जब पृथ्वी, चंद्रमा को ढक दें तो समझ लें कि चंद्र ग्रहण लग गया है।