10 जुलाई 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

अपनी पसंद से शादी करना बालिग महिला का संवैधानिक अधिकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परिवार की आपत्ति को बताया घृणित

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी बालिग महिला को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से रोकना या उस पर दबाव बनाना न केवल गलत है, बल्कि संविधान की भावना के खिलाफ भी है। अदालत ने इसे एक "घृणित कृत्य" करार दिया और कहा कि जब तक समाज की परंपरागत मान्यताएं और संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल्य अलग-अलग रहेंगे, तब तक इस प्रकार के टकराव होते रहेंगे।

High Court: यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने उस याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक 27 वर्षीय महिला ने आरोप लगाया था कि उसने अपनी मर्जी से विवाह किया है लेकिन परिवार की ओर से उसे अपहरण की धमकी मिल रही है। कोर्ट ने महिला को पूर्ण सुरक्षा देने का आदेश दिया और उसके परिवार को सख्त हिदायत दी कि वे उसके जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें।

संवैधानिक अधिकार का सम्मान करें: कोर्ट

खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी बालिग को अपनी पसंद के जीवनसाथी के चुनाव का संवैधानिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत आता है। अदालत ने कहा कि परिवार का इस अधिकार में हस्तक्षेप करना पूरी तरह अस्वीकार्य है।

एफआईआर रद्द करने की मांग पर फिलहाल राहत

यह मामला उस याचिका से जुड़ा है जिसे महिला के पिता और भाई ने दायर किया था। उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 140(3), 62 और 352 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। महिला ने एफआईआर में आरोप लगाया था कि उसके परिवार ने उसकी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने पर उसे धमकाया और अगवा करने की कोशिश की।

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक तो लगा दी है, लेकिन उन्हें साफ शब्दों में चेतावनी दी कि वे महिला की जिंदगी में किसी तरह की दखलअंदाजी न करें।

सरकार से मांगा जवाब

कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार सहित सभी पक्षों को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी।

टकराव का कारण: समाज बनाम संविधान

अदालत ने इस पूरे प्रकरण को समाज और संविधान के मूल्यों के बीच टकराव का उदाहरण बताया और कहा कि जब तक यह दूरी बनी रहेगी, इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी। अदालत की यह टिप्पणी सामाजिक सोच में बदलाव की जरूरत को रेखांकित करती है।

यह फैसला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि वयस्कों के वैवाहिक निर्णयों में जबरन दखल देने की कोई जगह नहीं है।