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Spiritual transformation at MahaKumbh 2025: महाकुम्भ पहुंचे इंग्लैण्ड के जैकब ने ग्रहण किया सनातन धर्म, बन गए जय किशन सरस्वती

Jacob from England converts to Sanatan Dharma: महाकुम्भ में देश के कोने-कोने से आये साधु, संत और श्रद्धालु भारत की सांस्कृतिक विविधता के साथ-साथ सनातन आस्था की आध्यात्मिक ऊर्जा से विश्व भर का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। सानतन संस्कृति की इसी आध्यात्मिक शक्ति से अभिभूत होकर इंगलैण्ड के रहने वाले जैकब अब संन्यास ग्रहण कर जय किशन सरस्वती बन चुके हैं।

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महाकुम्भ 2025

Sanatan Dharma acceptance MahaKumbh 2025: प्रयागराज के महाकुम्भ 2025 में संगम तट पर सनातन संस्कृति की अनुपम छठा बिखरी हुई है। एक ओर साधु, संन्यासी, संत,कथावाचक ज्ञान और वैराग्य की गंगा बहा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर पीढ़ियों से सनातन पंरपरा के वाहक करोंड़ों श्रद्धालु मोक्ष की कामना से संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। देश के कोने-कोने से आये साधु,संत और श्रद्धालु भारती की सांस्कृतिक विविधता के साथ-साथ सनातन आस्था की आध्यात्मिक ऊर्जा से विश्व भर का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। सानतन संस्कृति की इसी आध्यात्मिक शक्ति से अभिभूत हुए इंगलैण्ड के रहने वाले जैकब, अब संन्यास ग्रहण कर जय किशन सरस्वती बन चुके हैं।

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सनातन धर्म की आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित हो कर ग्रहण किया संन्यास

महाकुम्भ 2025 में भारत देश और सनातन संस्कृति से प्रभावित होकर फ्रांस, इंग्लैण्ड, बेल्जियम, कनाडा, इक्वाडोर, ब्रजील जाने किस-किस देश से पर्यटक प्रयागराज में संगम तट की ओर खिंचे चले आ रहे हैं। उन्हीं में से एक इंग्लैण्ड के मैनचेस्टर के रहने वाले जैकब, सनातन संस्कृति और उसकी आध्यात्मिक शक्ति से इतने प्रभावित हुए की पूरी तरह से उसके रंग में रंग कर संन्यास तक ग्रहण कर चुके हैं।

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जैकब ने बताया कि वो लगभग 10 वर्षों से भारत में ही रह रहे हैं। उन्होंने भारत में काशी, हरिद्वार, ऋषिकेष, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन समेत पुरी जैसी धार्मिक नगरियों की यात्रा की है। प्रयागराज और यहां के महाकुम्भ 2025 में वो पहली बार आये हैं। जैकब ने बताया कि उन्होंने हरिद्वार के महाकुम्भ 2025 में जूना अखाड़े के महामण्डलेश्वर उमाकान्तानंद से दीक्षा ले कर संन्यास ग्रहण किया था। तब से वो जय किशन सरस्वती बन गये हैं।

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महाकुम्भ 2025 के अमृत स्नान जैसी आध्यात्मिक अनुभूति पहले नहीं हुई

जय किशन सरस्वती ने आगे बातचीत में बताया कि उन्होंने इंग्लैण्ड के मैनचेस्टर से बैचलर ऑफ आर्टस की पढ़ाई की है। उसके बाद वो इंग्लैण्ड की क्रियेटिव एजेंसी में काम करते थे। शुरू से ही वो भारत की संस्कृति और यहां की आध्यात्मिकता से प्रभावित थे। उन्होंने भागवत गीता का अध्ययन किया और हिंदी तथा संस्कृत भाषा भी सीखी। 2013 में वो काशी देखने भारत आये थे तब से कुछ साल भारत में ही जगह-जगह भ्रमण करते रहे।

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एक समय उनका सनातन संस्कृति के प्रति झुकाव इतना बढ़ गया कि उन्होंने स्वामी उमाकान्तानंद जी से दीक्षा ग्रहण कर संन्यास अपना लिया। तब से वो स्वामी उमाकान्तानंद जी के साथ ही प्रवास और भ्रमण करते हैं। प्रयागराज के महाकुम्भ में पहली बार उन्होंने जूना अखाड़े के साथ संगम में अमृत स्नान किया। जय किशन सरस्वती का कहना है कि उन्हे जीवन में इससे पहले कभी ऐसी आध्यात्मिक अनुभूति नहीं हुई।