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फूलपुर के रास्ते क्या यूपी में बीजेपी की राह रोक पाएंगे नीतीश ?

नेहरू के लोकसभा क्षेत्र में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की रैली, यूपी में नीतीश की सक्रियता से दूसरे राजनीतिक दलों के माथे पर चिन्ता की लकीरें 

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Ahkhilesh Tripathi

Jul 17, 2016

nitish kumar

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प्रसून पाण्डेय
इलाहाबाद. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फुलपुर में जनसभा कर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने की दिशा मे एक और कदम बढा दिया है। उत्तर प्रदेश में अागामी चुनाव को देखते हुए सभी राजनीतिक दल अपने अपने दांव खेलने के लिए तैयार हैं। यूपी में इतनी सक्रियता से नीतीश की इन्ट्री भले पहली बार हो, फिर भी प्रदेश के दूसरे राजनीतिक दलों के माथे पर चिन्ता की लकीरे साफ देखी जा रही है।

बिहार में पिछड़े, अति पिछड़े, महादलित और मुस्लिम वोटों का समीकरण जमाकर बीजेपी आउट मोदी को चित कर चुके बिहार के सीएम की फूलपुर मे हो रही जनसभा के कई मायने है। इस कार्यक्रम पर जितनी नजर नीतीश के कार्यकर्ताओं की है, उससे कही ज्यादा विरोधियों की। जब बात यूपी की हो तो सरगर्मियां ज्यादा ही बढ जाती है।

सपा, बसपा के बीच नया दल
देश के सबसे बड़े प्रदेश पर लम्बे समय से सपा और बसपा की बादशाहत है, लेकिन पिछले कुछ दिनो से प्रदेश की राजनीति में अचानक नीतीश की सभाओं से हलचल है। सपा सरकार की खराब कानून व्यवस्था और उनके नेताओ की गुंडागर्दी से जनता परेशान है। इसी खराब कानून व्यवस्था और अराजकता से निजात दिलाने के नाम पर सत्ता में वापसी ख्वाब देख रही बसपा को उसके अपने ही दगा दे बागी हो रहें। जिससे बसपा के अपने कैडर में भी सेंध लगती दिख रही है। इस बीच जद-यू, एमआईएम जैसे दल जाति, क्षेत्र और सम्प्रदाय को टारगेट करते हुए अपनी जमीन तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।

भाजपा और कांग्रेस की बेचैनी बढ़ी:
यूपी विधानसभा चुनाव मे जीत हासिल करने के लिए भाजपा के दिल्ली के दरबार से लेकर काग्रेस के दफ्तरों तक बैठकों का दौर जारी है। भाजपा ने कांग्रेस के घर में पार्टी का सबसे बड़ा आयोजन कर कांग्रेस को चुनौती दी, तो कांग्रेस भी आने वाले समय मे गांधी परिवार के पैतृृृक घर से चुनावी शंखनाद करने की तैयारी में है। जिसके लिए प्रशान्त किशोर, गुलाम नवी आज़ाद सहित सोनिया और राहुल पटकथा और किरदारों की भूमिका तय करने मे लगी है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटों के जरिये यूपी जीत चुकी भाजपा इन वोटों का बंटवारा नहीं चाहती है।

क्यों ख़ास है फूलपुर ?
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू फूलपूर से 1952 से 1962 तक सांसद रहे। उनके बाद विजय लक्ष्मी पंडित ने फुलपुर से राजनिति की और लम्बे समय तक सांसद रही। यहीं से पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी संसद पहुचे। कमला बहुगुणा ने जीत हासिल की। देश और प्रदेश की राजनीति में शुरू से ही हाॅट सीट रही फूलपुर से बड़े दिग्गजो ने किसमत अजमायी है। फूलपुर पिछड़ी जातियों के वोट बैक वाली सीट है। जिस पर इस समय सभी राजनीतिक दलों की नजर बनी हैं। देश के चुनावी इतिहास मे पहली बार भाजपा के केशव प्रसाद मोर्या ने फूलपुर से जीत हासिल की है और प्रदेश अध्यक्ष बने। ओबीसी बाहुल्य इस सीट पर नीतीश की सभा का मकसद असल में ओबीसी वोट बैंक साधने और टटोलने की ही है। इस सीट पर ओबीसी मतदाताओं का ऐसा वर्चस्व रहा है की इस सीट से बसपा संस्थापक कांशीराम सपा नेता जंग बहादुर पटेल से चुनाव हार गये थे। फूलपुर लोकसभा सीट में सोरांव, फाफामउ, फूलपुर, प्रतापपुर, सैदाबाद, शहर उत्तरी और पश्चिमी विधानसभा सीट हैं।

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