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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और सेना जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
मामला वर्ष 2022 की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान का है, जब राहुल गांधी द्वारा दिए गए एक बयान को भारतीय सेना के प्रति अपमानजनक माना गया। इसे लेकर लखनऊ की एक अदालत ने उन्हें समन जारी किया था। राहुल गांधी ने इस समन को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए कहा कि समन आदेश में कोई वैधानिक त्रुटि नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी जरूर देता है लेकिन यह कुछ युक्तिसंगत प्रतिबंधों के अधीन है। ऐसे बयान जो सेना की गरिमा को ठेस पहुंचाते हों वे इस अधिकार के दायरे में नहीं आते।
इस केस की शिकायत वकील विवेक तिवारी द्वारा सीमा सड़क संगठन (BRO) के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव की ओर से की गई थी। श्रीवास्तव की रैंक सेना में कर्नल के समकक्ष रही है और उन्होंने दावा किया कि राहुल के बयान से उन्हें व्यक्तिगत रूप से ठेस पहुंची है। कोर्ट ने माना कि भले ही श्रीवास्तव सीधे इस अपराध के शिकार न हों, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 199(1) के अनुसार वह ‘पीड़ित व्यक्ति’ की श्रेणी में आते हैं।
कोर्ट ने कहा कि समन की वैधता को इस प्रारंभिक चरण में खारिज करना उचित नहीं होगा। बयान की सच्चाई और प्रभाव का निर्धारण ट्रायल कोर्ट में किया जाएगा। इसलिए, कोर्ट ने राहुल गांधी को समन के आधार पर 23 जून 2025 को लखनऊ कोर्ट में बतौर अभियुक्त उपस्थित होने का आदेश बरकरार रखा।
Updated on:
04 Jun 2025 08:27 pm
Published on:
04 Jun 2025 08:26 pm
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