भू-समाधि की परम्परा में संतों ने नम आंखों से महन्त नरेंद्र गिरि को अंतिम विदाई दी गई। इस दौरान हर किसी ने ‘ओम नमो नारायण’ का जयकारा लगाकर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। महन्त नरेंद्र गिरि अमर रहे का भी जयकारा श्रद्धालुओं ने भी लगाया।
राष्ट्रीय महासचिव ने बतया कि भू समाधि के बाद तीन दिन बाद अखाड़े में चूल्हा जलेगा और कच्चा भंडारे का आयोजन होगा। इसके बाद भव्य रूप से सोर्शी भंडारा का आयोजन होगा। अखाड़ा परिसद ने यह आह्वान किया है कि देश के 13 अखाड़ों के संत और महात्मा 13 दिनों तक शोक में रहेंगे।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिसद के राष्ट्रीय महासचिव ने बताया कि महन्त नरेंद्र गिरि की मौत के विषय में अखाड़ा परिषद 16 दिनों तक गुप्त जांच करेगा। इस जांच में जो कोई भी दोषी मिलेगा, उस पर कार्रवाई करते हुए अखाड़ा परिषद के अधिकारी निर्णय लेंगे। यह जांच अखाड़ा परिसद के टीम द्वारा की जाएगी। पुलिस प्रशासन के जांच के अलावा पूरे प्रकरण में अखाड़ा परिषद गहराई से जांच करेगी।
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भू-समाधि की परंपरा
अखिल भारतीय अखाड़ा परिसद के महंत राष्ट्रीय महासचिव हरि गिरी ने बताया कि भू-समाधि की परंपरा को निभाते हुए सबसे पहले उनको गंगा में स्नान कराया गया। भू-समाधि देते समय दही, दूध, अक्षत, शक्कर और अनेक प्रकार से शुद्धिकरण का स्नान हुआ। आखिर में शहद, जल, श्रीखण्ड और अखण्ड भस्मी डालकर समाधि की रस्म पूरी की गई। भस्मी चढ़ने के बाद वह शरीर महादेव को समर्पित हो जाता है। इसके बाद आखिरी में नमक, शक्कर और मिट्टी से श्रद्धांजलि दी गई।
मौनी महाराज ने बताया कि नींबू के पेड़ नीचे समाधि बनाने का मुख्य कारण यह होता है कि नींबू शत्रुओं के विनाश का कारण बनता है। महन्त नरेंद्र गिरि के शत्रुओं का विनाश हो इसीलिए अपनी समाधि बनाने की इच्छा जताई थी। शास्त्रों में भी तंत्र विद्या में नींबू का जिक्र विनाश के लिए किया गया है। उन्होंने बताया कि भू-समाधि उन सन्यासियों की बनती है जो सन्यास लेने के बाद वह अपना पिंडदान कर देते हैं।