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भारत में साइबर ठगी रोकने के लिए सरकार को कानूनों को अधिक सशक्त और प्रभावी बनाना चाहिए। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को सुरक्षित डिजिटल व्यवहार सिखाया जाना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में साइबर सुरक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना आवश्यक है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी तकनीकों का उपयोग करके साइबर धोखाधड़ी की पहचान की जानी चाहिए। हर राज्य में साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएं और एक मजबूत 24/7 हेल्पलाइन व शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए। साइबर अपराधियों को त्वरित और कठोर दंड देना भी अनिवार्य है।
राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा एजेंसी, एक केंद्रीय एजेंसी बनाएं जो साइबर अपराधों की निगरानी और रोकथाम में विशेषज्ञ हो। साइबर ठगी और हैकिंग के प्रयासों का तुरंत पता लगाने के लिए मॉनिटरिंग सिस्टम बनाएं। सरकारी और निजी संगठनों में डेटा एन्क्रिप्शन और सुरक्षा मानकों को अनिवार्य बनाएं। मजबूत साइबर कानून बनाएं और लागू करें। साइबर अपराधियों के खिलाफ कठोर दंड और सजा के प्रावधान करें। नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी डेटा प्रोटेक्शन कानून लागू करें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानकारी साझा करें। साइबर हमलों का पूर्वानुमान लगाने और उन्हें रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करें। शिकायत दर्ज होते ही अपराध की जांच और निवारण सुनिश्चित करें।
सख्त कानून और स्वयं की सजगता से ही साइबर ठगी को रोका जा सकता है। हमें किसी भी कीमत पर अपने ओटीपी नंबर नहीं देने चाहिए। चाहे कोई कैसी भी धमकी दे, हमें डरना नहीं चाहिए। व्हाट्सएप कॉल पर तो कभी भरोसा करना ही नहीं चाहिए। धैर्यपूर्वक सुने और जानकारी कर समस्या का समाधान निकालें। अगर हमें कुछ गलत अंदेशा हो, तो तुरंत पुलिस को सूचना दें। तकनीक के समय में सावधानी अति आवश्यक है, तभी हम साइबर ठगी को रोक सकेंगे।
साइबर क्राइम से दिन-प्रतिदिन ठगी की वारदातें बढ़ती जा रही हैं। अपराधी इतने शातिर हैं कि एक बार की ठगी में इस्तेमाल की गई सिम बंद कर देते हैं। रिटेलर से मिलीभगत के कारण कई कंपनियों की बहुत सारी सिम अपने पास रखते हैं, इसीलिए ये पकड़ में नहीं आते हैं। सरकार सभी मोबाइल कंपनियों को प्रतिबद्ध कर सकती है कि एक आधार कार्ड व विश्वसनीय जानकारी लेने के बाद ही ग्राहक को सिम दी जाए। तकनीकी विभाग के इंजीनियरों द्वारा ऐसी उन्नत तकनीक विकसित की जाए, जिसके जरिए अपराधी पकड़े जा सकें। ऐसी ठगी करने वाले अपराधी जिस प्रकार नए-नए तरीके खोजते हैं, वैसे ही हमारी सरकार को कुछ करना होगा। सबसे मुख्य बात यह है कि आम जनता धन के लालच में किसी भी अनजाने नंबर और लिंक पर क्लिक न करें और अगर अनजाने में ऐसा हो जाए तो तुरंत साइबर क्राइम विभाग को सूचित करें।
डिजिटल युग होने के कारण हर व्यक्ति मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर पर कार्य करने का आदी हो गया है। इसी का फायदा शातिर दिमाग वाले अपराधी तत्व उठा रहे हैं। टेक्नोलॉजी का अधकचरा ज्ञान होने से कम पढ़े-लिखे लोग और महिलाएं साइबर ठगी की ज्यादा शिकार हो रही हैं। साइबर ठगी में लिप्त अपराधी नवीनतम टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हैं। इन अपराधों में पढ़े-लिखे और उच्च शिक्षा प्राप्त लोग शामिल होते हैं। वे योजना बद्ध तरीके से प्लानिंग करके अपने कार्य को अंजाम देते हैं। सरकार के साइबर अपराधों को जांचने वाले विभाग के पास पर्याप्त संसाधनों और उच्च तकनीक का अभाव है। साइबर अपराधों के मामलों में "तू डाल डाल तो मैं पात पात" वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
साइबर क्राइम के बढ़ते मामलों पर लगाम लगाने के लिए अपराधियों को कड़ी सजा देने के साथ ही जिन फर्जी सिमों से फोन किए जाते हैं और जहां खाते खुल रहे हैं, पैसे निकल रहे हैं, उन सर्विस प्रोवाइडरों जैसे टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों पर जिम्मेदारी डालनी चाहिए। बैंकों और सर्विस प्रोवाइडरों की जवाबदेही तय होनी चाहिए, और फर्जी सिम बेचने वाली कंपनियों पर जुर्माना और सजा का प्रावधान होना चाहिए। साइबर अपराध और डिजिटल अरेस्ट के जरिए होने वाली धोखाधड़ी के प्रति लोगों को सचेत और सावधान करने के लिए सरकार और कानून लागू करने वाली एजेंसियों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना चाहिए। विज्ञापनों और प्रचार माध्यमों का उपयोग करके लोगों को जागरूक करना चाहिए। सरकार को साइबर एजेंसियों की कमियों को दूर करने के लिए नकेल कसनी चाहिए और उन्हें तुरंत कार्रवाई करने का आदेश देना चाहिए।
सरकार को ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने मन की बात में लोगों को इसके बारे में संपूर्ण जानकारी दी, अब राज्य सरकारों और सभी संस्थानों जैसे बैंक, इंश्योरेंस कंपनियों, आधार प्राधिकरण और अन्य का दायित्व है कि वे आम जन तक यह बात पहुंचाएं कि वे किसी भी प्रकार की सूचना फोन कॉल पर नहीं मांगते हैं, जिससे आम जन सचेत होगा और किसी भी प्रकार की सूचना ठगों को नहीं देगा और न ही वह उनके चंगुल में फंसेगा।
अधिकतर साइबर ठगी मोबाइल में अनचाहे ऐप से होती है और उन्हीं ऐप्स के जरिए आम नागरिक उस ऐप को खोल लेते हैं। ओपन करने से उनके सारे निजी डेटा साइबर ठग के पास चले जाते हैं, फिर आम नागरिक के मोबाइल नंबर से ही अन्य परिचितों से पैसे मांगते हैं। कुछ ऐप्स ऐसे भी हैं, जो खुलने नहीं चाहिए, लेकिन वह खुल जाते हैं, फिर वो साइबर ठग आम नागरिक को कई प्रलोभन देकर ओटीपी मांगते हैं। फिर आम आदमी फंस जाता है। केंद्र सरकार साइबर ठगों पर लगाम लगाने के लिए लोकसभा में साइबर क्राइम का कानून पास कराए और साइबर ठगों पर अंकुश लगाने के लिए अलग साइबर क्राइम विभाग पूरे देश में लागू करें, ताकि आम नागरिकों को पुलिस थानों में चक्कर न काटना पड़े।
साइबर ठगी से बचने के लिए अपना पासवर्ड न तो किसी को बताएं और न ही अपने बैंक अकाउंट के बारे में किसी को जानकारी दें। वैसे सरकार की ओर से और आर.बी.आई. के द्वारा समय-समय पर साइबर ठगी के लिए हिदायतें दी जाती हैं। उपभोक्ताओं को खुद ही साइबर ठगी से बचने के लिए जागरूक होना पड़ेगा। और अगर ठगी का शिकार हो जाते हैं तो तुरंत कार्रवाई करें।
Published on:
28 Nov 2024 12:48 pm
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