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छत्तीसगढ़ चुनाव: चुनावी रंग में रंगे खरसिया में ओपी-उमेश में बराबर की जंग

पता नहीं समस्याओं पर बात कब होगी। कई गांवों में तो अब भी बिजली, पानी, सडक़ नहीं हैं। लेकिन इस पर बात कम हो रही। अब तो कहर बनकर टूटने की बात होने लगी है।

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CG Election 2018

छत्तीसगढ़ चुनाव: चुनावी रंग में रंगे खरसिया में ओपी-उमेश में बराबर की जंग

रायगढ़. हमको तो अपने बीच का आदमी चाहिए, जो सुख-दुख में शामिल हो और हमारे काम आए। इस बार तो साहब लोग भी चुनाव लड़ रहे हैं। खूब बड़ी-बड़ी बातें सुनने को मिल रही हैं। झगड़े टंटे भी शुरू हो चुके हैं। पता नहीं समस्याओं पर बात कब होगी। कई गांवों में तो अब भी बिजली, पानी, सडक़ नहीं हैं। लेकिन इस पर बात कम हो रही। अब तो कहर बनकर टूटने की बात होने लगी है।

कहर तो हम पर वैसे ही बरपता है, अकाल के कारण, फसल अच्छी न होने पर, रोजगार न मिलने पर, इलाज न होने पर। और क्या बताएं, समस्याओं से जूझ ही रहे हैं। काम कम होते हैं, कसमे-वादे ज्यादा। खरसिया क्षेत्र में अगर आप किसी से बात करेंगे तो ज्यादातर आपसे यही कहते नजर आएंगे। पढ़िए खरसिया से राजीव द्विवेदी की रिपोर्ट

इस क्षेत्र के शहरी ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी इस बार चुनाव से ज्यादा चुनाव लडऩे के तरीके पर बात हो रही है। लगभग सबके पास मोबाइल है। कुछ भी भली-बुरी बातें हों, लोगों तक तत्काल पहुंच जाती हैं। यह सब बातें फिर गांव की चौपाल पर भी खूब वायरल होती हैं। खरसिया क्षेत्र के गांव बांसमुड़ा, जामझोर, गोरदा, कुर्रु, भालूनारा, नंदगांव, एड़ूपुल, आकाशमार सहित अधिकतर गांव में अगर जाएं तो आजकल चुनाव की यही चर्चा सुनने को मिलती है।

कांग्रेस की इस परंपरागत सीट पर पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को उतार कर भाजपा ने एक तरह से खलबली मचाई थी, और अब चौधरी की बातें भी खलबली मचा रही हैं। हर रोज कुछ न कुछ सुनने को मिल जाता है। कभी शेविंग किट या सामान बांटने को लेकर या फिर कभी किसी और मुद्दे पर। अभी तो उनका, कहर बनकर बरसूंगा वाला बयान सुर्खियों और जनता की जुबान पर है। बात तो उमेश पटेल की भी हो रही है। जनता के बीच जाते हैं तो उनसे भी सवाल किए जा रहे हैं कि सिंचाई की व्यवस्था, फसल चौपट होने पर मुआवजा, रोजगार सहित मूल समस्याएं आखिर कब तक रहेंगी?

जिंदगी तो गाय चराते निकल रही
बांसमुड़ा पहुंचे तो एक चाय की गुमटी पर कुछ लोग बैठे सबमर्सिबल पंप सुधारने की मशक्कत कर रहे थे। चर्चा निकली तो बिना लाग लपेट उन्होंने कहा- फसल अच्छी नहीं है इस बार। सिंचाई की सुविधा है नहीं, बारिश के भरोसे कितनी फसल होगी। वहां खड़ी एक महिला बोली- कौनो विधायक बनै, हमन ल तो गरुआ चराना हे। बिना पानी के धान ह मरत हे, कौनो सेवा अफसर रहकर भी हो सकती है और विधायक बनकर भी नहीं करही। हमारा सफर जारी रहा। ग्राम भालूनारा के पास सडक़ किनारे एक गुमटी पर रुके तो वहां भी माहौल चुनावी दिखा।

चर्चा हो रही थी सोशल मीडिया पर एक वाडियो की। लोग कहने लगे गांवों में अब भी पीने का पानी और इलाज एक बड़ी समस्या है। हर साल फसल खराब हो जाती है । खाने-पीने का ठिकाना न हो तो इससे बड़ा कहर और क्या बसरेगा अब? वहां बैठे दिनेश राय ने कहा कि जनसेवा तो अफसर रहकर भी की जा सकती थी, और नहीं करना है तो विधायक बनकर भी नहीं होगी।

ग्लैमर और सादगी पर चर्चा
हम आगे बढ़े, नंदगांव के पास सडक़ किनारे लकड़ी और पत्ते से बनी चौपाल पर कुछ लोग छांह में सुस्ताते दिखे। भोज डनसेना, मनीराम, देवलाल, ईश्वर एक्का, विमल महंत आसपास के गांव के ही थे। जब चुनाव की बात छिड़ी तो यह समझ आया कि इस बार चुनाव में मसाला है। ग्लैमर, सादगी, लुभाने के लिए अतिरंजित बातें सब चल रही हैं।

नंदकुमार पटेल के परंपरागत तरीके, जनता के बीच बैठने, घूमने, उनके बेटे उमेश पटेल के भी उसी अंदाज में लोगों से मिलने की चर्चा है तो ओपी चौधरी के अफसरों के अंदाज से अपनी बात कहने, शेविंग किट, क्रीम पाउडर जैसी चीजें ग्लैमरस चीजें मुहैया कराने पर भी बात होती है। बीच-बीच में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अमर अग्रवाल पर चर्चा कर लेते हैं कि वाहन पर सेवा और देशभक्ति के गीत चलाते हुए खूब दौड़-धूप तो वे भी खूब कर रहे। अतत: बात वहीं ठहर जाती है कि प्रत्याशी स्वभाव, व्यवहार, से अच्छा और सबको बराबर समझने वाला हो।