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VIDEO- एनटीपीसी के खिलाफ 55 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुनने वाला कोई नहीं, जानें आखिर क्यों आक्रोशित हैं ये किसान

- कंपनी, प्रशासन तो दूर आज तक विधायक भी नहीं पहुंचे प्रभावितों के पास

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55 दिन से एनटीपीसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुनने वाला कोई नहीं, जानें आखिर क्यों आक्रोशित हैं ये किसान

रायगढ़. अपनी मांगों के समर्थन में जारी आंदोलन के 55 वें दिन जिले के पुसौर ब्लाक के लारा सहित आसपास के गांव के किसानों ने एनटीपीसी के खिलाफ अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। केवल लुंगी पहनकर किसानों ने एनटीपीसी, प्रशासन और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। हैरानी की बात यह है कि प्रभावित इन किसानों के आंदोलन और धरने के बाद भी प्रशासन और कंपनी वाले तो दूर खुद इनका जनप्रतिनिधि या विधायक इनके पास इनके दर्द को जानने नहीं पहुंचा है।

विदित हो कि आज 55 दिन से एनटीपीसी प्रभावित आधे दर्जन गांव से ज्यादा के ग्रामीण नौकरी व पुर्नवास की मांग को लेकर पिछले 55 दिनों से छपोरा के हड़ताल चौक यानि कि एनटीपीसी प्लांट के पास प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके बाद भी आज तक न तो इनके पास प्रशासन का कोई नुमाइंदा पहुंचा है और न ही कंपनी के लोग इनकी बात सुनने पहुंचे हैं।

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पिछले 55 दिन से धरना प्रदर्शन कर रहे एनटीपीसी प्रभावित किसानों की ओर से पुनर्वास और नौकरी की मांग की जा रही है। किसानों का कहना है कि एक साजिश के तहत कंपनी और प्रशासन ने इनके नौकरी के हक को खारिज करने का प्रयास किया है। इसके कारण कई साल बीत चुके हैं पर अपनी जमीन देने के बाद भी इन्हें नौकरी नहीं मिल सकी है। किसानों ने बताया कि जब यहां पर कंपनी की स्थापना की जा रही थी उस वक्त जमीन लेने के लिए कहा गया कि जमीन के बदले मुआवजा और नौकरी दी जाएगी। पर कई वर्ष बीतने के बाद कुछ किसानों को मुआवजा भी नहीं मिला है वहीं किसी को जमीन के बदले नौकरी नहीं दी गई है।

पुरखों की थी जमीन
धरना प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बताया कि हमारे जीवन का आधार हमारे पुरखों की जमीन थी जिसे प्लांट के नाम पर सरकार ने एनटीपीसी को दे दिया। अब हमारे पास न तो हमारी जमीन बची है और न ही कोई रोजगार है इन हालात में हम कहां जाएं क्या करें ये समझ में नहीं आ रहा है। कंपनी और प्रशासन से जब रोजगार यानि कि नौकरी की मांग की जाती है तो वो कहते हैं बोनस ले लो, नौकरी नहीं दे सकेंगे।

किसानों का आरोप है कि जब प्रदेश की सरकार ने एनटीपीसी के साथ एमओयू साइन किया है तो उसमें स्पष्ट कहा गया है कि यहां पर छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति लागू की जाएगी। किसानों ने आरोप लगाया कि जब हमारी जमीन ले ली गई तो इस सरकारी कंपनी और प्रशासन ने मिलकर चालाकी से अपने पुर्नवास नीति की बात करने लगे और हमें हमारे हक से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है।