
रायगढ़. पिछले कुछ दिनों तक अन्नदाता लगातार आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे थे, गांवों में बैठकों का दौर था इसका कारण यह था कि प्रदेश सरकार ने किसानों के गरमा धान की खेती पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि सरकार का मानना है कि इसमें पानी ज्यादा लगता है और ग्राउंड वाटर चौपट हो जाएगा।
अब सवाल यह उठता है कि ग्राउंड वाटर की इतनी फिक्र करने वाली सरकार के अधिकारी या विभाग इस बात पर खामोश क्यों हो जाते हैं जब चंद्रहासिनी इस्पात के ईआईए रिपोर्ट में यह कहा जाता है कि उसे अपने उत्पादन के लिए नदी से पानी की जरुरत नहीं है, केलो डेम के कारण ग्राउंड वाटर का लेबल बढ़ गया है वो कंपनी के पानी की जरुरत को ग्राउंड वाटर से पूरी कर लेगा। इसी ईआईए के दम पर बीते मंगलवार को कंपनी की जनसुनवाई हो चुकी है। सवाल यह उठता है कि जब कंपनी ने इस ईआईए रिपोर्ट की कॉपी को प्रशासन के पास जमा किया तो अधिकारियों ने उसे मौन स्वीकृति क्यों दे दी।
सवाल तो इस पर भी
इस मामले में ग्रीन नोबेल विजेता रमेश अग्रवाल ने कहा कि कंपनी के ईआईए रिपोर्ट में यह कहा गया है कि उन्हें ९५ किलोलीटर पानी की जरुरत है जिसमें से ९० किलोलीटर पानी का उपयोग उत्पादन में किया जाएगा जो कि वाष्प बनकर उड़ जाएगा, वहीं जो पांच किलोलिटर पानी बचेगा उसका उपयोग निस्तारी के लिए होगा। सवाल यह उठता है कि जब सारे पानी का इस्तेमाल हो ही जाएगा तो शोकपिट आदि की क्या जरुरत है, पानी के ट्रीटमेंट प्लांट की क्या जरुरत है।
-इस मामले में सरकार का दोहरा चरित्र सामने आ रहा है। सरकार के कथनी और करनी में अंतर है, उद्योगों को पानी दे रहे हैं और किसानों को मना कर रहे हैं। मैं कंपनी के इस बिंदू को देखा नहीं हूं यदि ऐसा है तो इस मामले में आवाज उठाई जाएगी- उमेश पटेल, विधायक खरसिया
-किसानों के धान खेती पर रोक नहीं लगाई गई थी, कांग्रेस वालों ने दुष्प्रचार किया था। जहां वाटर लेबल कम है, वहां पर अन्य फसल के लिए सलाह दी गई थी। चंद्रहासिनी इस्पात के ईआईए के विषय में जानकारी नहीं थी, आपने ध्यान दिलाया है तो इसे मैं राज्य सरकार के ध्यान में लाउंगा, इस पर रोक लगवाई जाएगी- रोशन लाल अग्रवाल, विधायक रायगढ़
Updated on:
12 Jan 2018 02:34 pm
Published on:
12 Jan 2018 02:33 pm
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