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छत्तीसगढ़ के इस इलाके में आदिवासी किसानों को नक्सली नहीं, गजराज कर रहे हैं तबाह

जोगी और मायावती के गठबंधन के बाद हाथी की चर्चा प्रदेश में है पर उस हाथी पर कोई जुबान नहीं खोल रहा है जो लोगों की जान ले रहा है। नेता आते हैं विकास की बातें करते हैं पर उनके मुद्दों से जंगल की कटाई और हाथियों के आतंक का मुद्दा गायब रहता है।

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CG Election 2018

छत्तीसगढ़ के इस इलाके में आदिवासी किसानों को नक्सली नहीं, गजराज कर रहे हैं तबाह

रायपुर. चुनाव का मौसम है, वादों, दावों और घोषणा की बारिश हो रही है। जोगी और मायावती के गठबंधन के बाद हाथी की चर्चा प्रदेश में है पर उस हाथी पर कोई जुबान नहीं खोल रहा है जो लोगों की जान ले रहा है। नेता आते हैं विकास की बातें करते हैं पर उनके मुद्दों से जंगल की कटाई और हाथियों के आतंक का मुद्दा गायब रहता है।

पिछले वर्ष खेती के लिए 30 हजार रुपए का कर्ज लिया था। जिसे नहीं चुका पाने के कारण इस वर्ष बैंक ने मुझे डिफाल्टर घोषित कर कर्ज देने से इंकार कर दिया। इस वर्ष भी हाथियों ने आधे से ज्यादा फसल चौपट कर दी है। समझ नहीं आ रहा कर्ज चुकाउं या परिवार की जरूरतें पूरी करूं। कोरबा से राजकुमार शाह की ग्राउंड रिपोर्ट।

ये दर्द है रामपुर विधानसभा के गांव मदनपुर के किसान शिव प्रसाद का। जिनका कहना है कि इस वर्ष कर्ज चुकाने के साथ ही परिवार के पोषण की भी चिंता बढ़ गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि हाथी से बच गए तो ही प्रजातंत्र का आनंद ले सकेंगे, लेकिन हैरानी होती है कि प्रजातंत्र के इतने बड़े उत्सव से हाथी ही गायब है।

इस क्षेत्र के ज्यादातर किसानों का यही हाल है। माओवादियों से ज्यादा डर यहां के किसानों को हाथियों से लगता है। एक साथ 50-60 हाथियों के दल खेतों में घुसकर पूरी फसल रौंद डालते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी किसान श्याम लाल राठिया और रवीन्द्र कुमार की है। जिनकी फसलों को भी हाथियों ने नुकसान पहुंचाया है। किसान कहते हैं कि प्रति एकड़ फसल लगाने में करीब 20 हजार रुपए का खर्च आता है। जबकि सरकार से मुआवजे के रूप में महज आठ हजार रुपए प्रति एकड़ ही बतौर क्षतिपूर्ति तौर मिलते हैं, इससे हर साल नुकसान उठाना पड़ रहा है।

2000 से अब तक 55 की मौत
कोरबा वनमंडल का पूरा इलाका रामपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र में पहली बार सन 2000 में छुईढोढ़ा के 60 वर्षीय सुखलाल की मौत हाथी के हमले से हुई थी। यह सिलसिला अब तक जारी है। अब तक रामुपर में 55 लोगों की मौत हो चुकी है। जिसके लिए वन विभाग लगभग एक करोड़ रुपए का मुआवजा बांट चुका है। जबकि फसलों के नुकसान, घायलों व मकान की क्षतिपूूर्ति की बात की जाए तो यह राशि कई करोड़ होगी। साल 2018 में हाथी के हमले से सबसे अधिक मौतें हुई हैं। कोरबा वनमंडल में 9 मौत हो चुकी है। जबकि इस वर्ष अक्टूबर तक जिले में हाथियों के मौत का आंकड़ा 11 है।

हाथी अभयारण्य का प्रस्ताव भूल गई सरकार
इस समस्या के समाधान के लिए सालों पहले रामपुर में हाथी अभयारण्य का प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन फिर पता चला कि इस क्षेत्र में जमीन के नीचे काफी मात्रा में कोयला है। जिसके कारण यह प्रस्ताव लटका हुआ है। ग्रामीणों के साथ ही अफसर भी अब इस को स्वीकारते हैं कि हाथियों के लिए जंगल में पर्याप्त भोजन नहीं है। जिसके कारण वह गांव में घुस जाते हैं।

हाथी प्रभावित शिव प्रसाद ने कहा - चुनावी मौसम में कोई हाथी की बात नहीं करता है। हमारी फसल चौपट हो गई है, हर साल ऐसा होता है। सरकार जो मुआवजा देती है वो काफी कम होता है।

ग्रामीण श्याम लाल ने कहा - हमसे वोट मांगते हैं, लेकिन हमारी समस्या पर चर्चा नहीं करते हैं। दल के लोग गांव आते भी हैं तो इस बात की टोह लेकर आते हैं कि कहीं हाथी आया तो नहीं है।