
CG Festival Blog: रोहित बंछोर/छत्तीसगढ़ में दीवाली पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दशहरा पर्व के बाद गांवों में दिवाली पर्व को लेकर लोगों में उत्साह रहता है। घरों की साफ-सफाई कर रंग रोगन किया जाता है। नए वस्त्रों की खरीददारी करते है। बच्चों के लिए पटाखें खरीदते है। दिवाली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है जो भाई दूज तक चलता है।
धनतेरस का पर्व भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेरजी के साथ ही धन की देवी मां लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा की जाती है। धनतेरस के शुभ अवसर पर घर में नई झाड़ू और धनिया लाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर पूरे साल धन समृद्धि बढ़ाती हैं। इसके साथ ही कृपा बरसाती हैं।
यह त्यौहार नरक चौदस व नर्क चतुर्दशी छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाताके नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण से नरकासुर नामक राक्षस का वध करके करीब 16 हजार महिलाओं को मुक्त कराया था। इसलिए इस दिन को दीये जलाकर मनाया जाता है। इसके साथ ही इस दिन यमदेव के लिए मिट्टी के 14 दीपक जलाकर परिवार की कुशलता की कामना करते हैं।
इस दिन भगवान श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपने घर अयोध्या लौटे थे। इतने सालों बाद घर लौटने की खुशी में सभी अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। तभी से दीपों के त्योहार दीपावली मनाया जाने लगा।
गोवर्धन पूजा के दिन गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा है। इस दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाई जाती है और विधि-विधान से पूजा की जाती है।
भाई दूज का पर्व बेहद शुभ माना जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है, जब बहनें अपने भाई को बड़े ही प्यार से तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं। इसके साथ ही सदैव रक्षा करने का वादा करते हैं। भाई दूज दिवाली उत्सव के पांचवें दिन मनाया जाता है, जिसे लोग यम द्वितीया या भ्रातृ द्वितीया के नाम से भी जानते हैं।
छत्तीसगढ़ के गांवो में मातर, मेला मंडाई छत्तीसगढ़ की परंपरा है। यहां सुरहोती (दीपावली) के अगले दिन गोवर्धन पूजा और उसके बाद के दिन को "मातर" कहा जाता है। "मातर" में मा का अर्थ है माता और तर यानी उनकी शक्ति को जगाना। इस पर्व में गाय की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ में यह पर्व मुख्य रूप से यादव ( राउत, ठेठवार, पहटिया) समाज के लोगो के द्वारा मनाया जाता है, परंतु अन्य समाज के लोग भी इसमे शामिल होते है।
यादव समुदाय के लोग घर-घर (जिनके घरों में गोवंश पाले जाते है) जा कर दोहा, नाचा करते है।
गांव के गौठान(दईहान) में यादव समुदाय के लोग पारंपरिक परिधान, बांहों में बांहकर, पेटी, कौड़ी से बने साजू, रंगबिरंगी पगड़ी, हाथों में फुलेता (फूलों से सजी तेंदू की लाठियां) और पांव में घुंघरू पहन कर इकट्ठा होते है। इकट्ठे हो कर खुड़हर देव, सांहड़ा देव, पशुधन और सोहाई की पूजा अर्चना की जाती है। यादव समाज के लोग गोवंश को सोहई, दुहर की माला पहनाते हैं। इसके बाद नए अनाज से गऊमाता के लिए भोजन बनता है, उसे घर के सभी सदस्य खाते हैं।
पर्व में गाय के गोबर का तिलक होता है। गाय के लिए बने प्रसाद से पूरा घर खाना खाता है और गाय के दूध से रात को खीर बनाई जाती है और सारी रात दोहे पढ़े जाते हैं। इस पर्व में लाठी चलाने की भी परंपरा है। लाठी को खुद पर पड़ने से रोकने के लिए लोग हाथों में "फरी" पहने होते है, जो लोहे का बना एक ढाल जैसा होता है जिसके सामने से एक नुकीली आकृति निकली हुई होती है। इसे "लाठी झोकना" कहते है।
Updated on:
28 Oct 2024 11:45 am
Published on:
28 Oct 2024 11:43 am
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