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Children Eye Problem: बच्चों की आंखों की रोशनी पर मंडरा रहा खतरा, कम उम्र में ही लग रहा चश्मा, जानें कारण और बचाव के उपाय

Children Eye Problem: कोरोनाकाल के बाद लगता है कि बचपन मोबाइल में गुम हो गया है। यही कारण है कि अब 5 साल के बच्चों को भी दूर की चीजें नहीं दिख रही है।

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बच्चों को चश्मा लग रहा (फोटो सोर्स- Getty Images)

बच्चों को चश्मा लग रहा (फोटो सोर्स- Getty Images)

Children Eye Problem: कोरोनाकाल के बाद लगता है कि बचपन मोबाइल में गुम हो गया है। यही कारण है कि अब 5 साल के बच्चों को भी दूर की चीजें नहीं दिख रही है। इसलिए उन्हें चश्मा लगाने की जरूरत पड़ रही है। डॉक्टरों के अनुसार कोरोनाकाल के बाद ऐसे बच्चों की संख्या 4 से 5 गुना बढ़ गई है। 2020 के पहले जहां 100 में 2 से 3 बच्चों को चश्मा लग रहा था। अब ऐसे बच्चों की संख्या 8 से 10 पहुंच चुकी है। डॉक्टरों के अनुसार बच्चों को पढ़ने में दिक्कत हो या आंख में दर्द हो तो जांच जरूर कराएं।

स्क्रीन टाइम बढ़ने से न केवल बच्चों की नजर कमजोर हुई है, बल्कि आंखों में सूखापन की समस्या भी बढ़ गई है। सोमवार को पचपेड़ीनाका स्थित एक आंख के अस्पताल में छोटे-छोटे बच्चे चश्मा लगाए हुए दिख रहे थे। आंबेडकर अस्पताल की ओपीडी में भी पैरेंट्स छोटे बच्चों की आंख के इलाज के लिए पहुंचे थे।

डॉक्टरों ने बताया कि ये स्क्रीन टाइम बढ़ने का असर है। बच्चा रो रहा हो या किसी और चीज के लिए जिद कर रहा हो तो माता-पिता उन्हें मोबाइल थमा देते हैं। ये छोटे बच्चे दिन में कई घंटे यूट्यूब पर बीता देते हैं। यही नहीं बच्चा दूध नहीं पी रहा है या सप्लीमेंट्री नहीं खा रहा है तो मोबाइल दे दिया जा रहा है। इससे भी बच्चों की नजर कमजोर हुई है। ये स्थिति न केवल शहरी, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी है।

आंख को स्वस्थ रखने के उपाय

  • नियमित रूप से आंखों की जांच करवाएं।
  • फल, सब्जियां, साबुत अनाज व प्रोटीन खाने को दें।
  • कम से कम 9 से 10 घंटे की पर्याप्त नींद दें।
  • टीवी, कंप्यूटर या स्मार्ट फोन देखना कम करें।
  • 20 से 30 मिनट में 20 सेकंड के लिए कम से कम 20 फीट की दूर की चीजें देखने कहें।
  • आंखों को रगड़ने से बचाएं। इससे जलन व सूजन हो सकती है।
  • चश्मा नियमित लगाएं व समय पर नजर की जांच कराएं।

ऑनलाइन क्लास की आदत पड़ी भारी

कोरोनाकाल यानी 2020 में लॉकडाउन के कारण ऑनलाइन क्लास शुरू की गई। तब पैरेंट्स ने बच्चों के लिए स्मार्ट फोन देकर क्लास पूरी करवाई। यही आदत बाद में बच्चों की लत बन गई। स्कूलों में होने वाली पीटीएम में टीचर ने पैरेंट्स से शिकायत की कि बच्चों को पीछे बिठाने पर ब्लैक बोर्ड में लिखी गई चीजें नहीं दिखतीं।

स्कूल में लगे कैंप व अस्पताल में हुई जांच में उनकी नजर कमजोर पाई गई। जरूरी जांच के बाद बच्चों को चश्मे नंबर दिए गए। चिंताजनक बात ये है कि हर 6 माह या सालभर में चश्मे का नंबर बढ़ते जा रहा है। स्मार्ट फोन की लत से बच्चों के चश्मे के नंबर बढ़ते गए, जो चिंता का विषय है।

मायोपिया-हाइपरोपिया की समस्या चिंताजनक

नजर कमजोर होने का प्रमुख कारण रिफ्रेक्टिव एरर होता है। डॉक्टरों के अनुसार इसके कारण मायोपिया व हाइपरोपिया की समस्या बढ़ जाती है। अपवर्तक त्रुटियां की समस्या तब होती हैं, जब आंख सीधे रेटिना पर प्रकाश केंद्रित करने में असमर्थ होती है। इससे बच्चों में निकट दृष्टिदोष यानी दूर की चीजें नहीं दिखाई देती।

अब 5 साल के बच्चों को चश्मा लग रहा है, इसका प्रमुख कारण स्क्रीन टाइम का बढ़ना है। इसमें पैरेंट्स भी कम जिम्मेदार नहीं है। बच्चा रो रहा हो या जिद कर रहा हो तो हाथ पर मोबाइल थमा दिया जाता है। मोबाइल, टीवी के लिए समय निर्धारित करें। - डॉ. अनिल गुप्ता, नेत्र रोग विशेषज्ञ, गणेश विनायक अस्पताल

बढ़ता स्क्रीन टाइम, चाहे वह मोबाइल फोन हो या टीवी, इससे बच्चों की नजर कमजेार हो रही है। ये हमारे लिए चेतावनी है। कोरोनाकाल के पहले की तुलना में अब ज्यादा बच्चों को नजर के चश्मे लग रहे हैं। यही नहीं चश्मे के नंबर भी लगातार बढ़ रहे हैं। - डॉ. रेशु मल्होत्रा, एसोसिएट प्रोफे. नेत्र, नेहरू मेडिकल कॉलेज