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CG News: आंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने किया कमाल, पहली बार पाइपेक विधि से पेट की झिल्ली के कैंसर का इलाज

CG News: कैंसर सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. आशुतोष गुप्ता के नेतृत्व में लेप्रोस्कोपिक विधि से मरीज का ऑपरेशन किया गया। ओडिशा की रहने वाली 54 वर्षीय महिला मरीज को इलाज के पांच दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।

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CG News: नेहरू मेडिकल कॉलेज स्थित क्षेत्रीय कैंसर संस्थान के आंको सर्जरी (कैंसर सर्जरी) विभाग के डॉक्टरों की टीम ने पेट की झिल्ली के (पेरिटोनियम) कैंसर से पीड़ित महिला का इलाज पहली बार पाइपेक पद्धति से किया। डॉक्टरों का दावा है कि सेंट्रल इंडिया के किसी सरकारी कैंसर संस्थान में यह पहला केस है। डॉक्टरों ने मरीज के पेट की झिल्ली के कैंसर का इलाज किया है। पाइपेक यानी प्रेशराइज्ड इंट्रापेरिटोनियल एरोसोलाइज्ड कीमोथेरेपी, कैंसर में कीमोथेरेपी का ही एक प्रकार है। यह उदर गुहा में दबाव के साथ कीमोथैरेपी को पहुंचाती है, जिससे कैंसर कोशिकाओं को फैलने से रोकने में मदद मिलती है।

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कैंसर सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. आशुतोष गुप्ता के नेतृत्व में लेप्रोस्कोपिक विधि से मरीज का ऑपरेशन किया गया। ओडिशा की रहने वाली 54 वर्षीय महिला मरीज को इलाज के पांच दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।

पेरिटोरियल को फुलाने के लिए पोर्ट का उपयोग

सबसे पहले प्रक्रिया के लिए एक्सेस पोर्ट बनाते हैं फिर पेरिटोनियम (पेट की परत वाली झिल्ली) को फुलाने के लिए पोर्ट का उपयोग करते हैं। एक एक्सेस पोर्ट में दबावयुक्त कीमोथेरेपी देने वाला उपकरण डालते हैं। दबावयुक्त एरोसोल कीमोथेरेपी को लगभग 30 मिनट तक पेरिटोनियम के भीतर दिया जाता है। पूरी प्रक्रिया में करीब एक घंटे का समय लगता है। प्रक्रिया के बाद मरीज के पेट से सभी उपकरणों को बाहर निकाल देते हैं और छोटे छेद/चीरे को बंद कर देते हैं। उपचार करने वाली टीम में कैंसर सर्जन डॉ. आशुतोष गुप्ता के साथ डॉ. किशन सोनी, डॉ. राजीव जैन, डॉ. गुंजन अग्रवाल और एनेस्थीसिया से डॉ. शशांक शामिल रहे।

डीन और अधीक्षक ने इस पद्धति का बताया सुरक्षित

मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. विवेक चौधरी ने कहा कि यह एक सुरक्षित और प्रभावी उपचार प्रक्रिया है, जो कीमोथेरेपी के प्रभाव को बढ़ाता है। कोलोरेक्टल कैंसर, डिम्बग्रंथि का कैंसर और गैस्ट्रिक कैंसर जैसे कैंसर बीमारियों में कीमोथेरेपी के नए विकल्प के रूप में इसे अपनाया जा सकता है। अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने कहा कि एडवांस तकनीक से इलाज होना यह दर्शाता है कि हम निजी अस्पतालों से कतई पीछे नहीं हैं।

ऐसी है ये तकनीक

पाइपेक तकनीक में मरीज के पेट में एक या दो छोटे छेद कयिा जाता है, जिन्हें एक्सेस पोर्ट भी कहा जाता है। डॉ. गुप्ता के अनुसार प्रेशराइज्ड इंट्रापेरिटोनियल एरोसोलाइज्ड कीमोथैरेपी एक तकनीक है, जो दबाव के तहत एरोसोल के रूप में उदर गुहा में कीमोथैरेपी को पहुंचाती है।