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51 शक्ति पीठ में से एक है रतनपुर का मां महामाया मंदिर

कहते हैं जो भी इस मंदिर की चौखट पर आया वो खाली नहीं गया। जितनी अनोखी इस मंदिर की मान्यता है

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51 शक्ति पीठ में से एक है रतनपुर का मां महामाया मंदिर

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रायपुर/बिलासपुर. कहते हैं जो भी इस मंदिर की चौखट पर आया वो खाली नहीं गया। जितनी अनोखी इस मंदिर की मान्यता है। उतनी अनोखी इस मंदिर की कहानी है। यहां बैठी मां महामाया देवी के आशीर्वाद से हर संकट दूर हो जाता है। कुंवारी लड़कियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते है। देवी मां के इस मंदिर को 51 शक्ति पीठ में एक माना जाता है।

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर से 25 किलोमीटर पर स्थित आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है। त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनाया। श्री आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वी शताब्दी में कराया गया था।

मंदिर के निर्माण की है कुई किवदंतिया

1045 ई में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया। अर्धरात्रि में जब राजा की आंख खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। 1050 ई में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया।

माता सती का गिरा था स्कंध

माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया। यहां प्रात:काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती है।

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