
दिनेश यदु. मेरठ में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। (Meerut Murder Case Memes) एक महिला ने अपने पति की हत्या कर शव को ड्रम में छिपा दिया, जिससे पूरे समाज में सनसनी फैल गई। इस हत्याकांड के बाद सोशल मीडिया पर ड्रम और सीमेंट से जुड़े मीम्स और वीडियो वायरल होने लगे, जो इस घटना पर आधारित थे। एक वायरल वीडियो में एक व्यक्ति कंधे पर ड्रम उठाए नजर आता है और बैकग्राउंड में एक गाना बजता है।
वीडियो के कैप्शन में लिखा गया- ’’ये गाना इसी के लिए बना था, आज जाकर पता चला’’। इस वीडियो के साथ यह सवाल उठने लगा कि सोशल मीडिया पर अपराधों को मजाक का विषय बनाना कितना सही है। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यदि कोई सोशल मीडिया कंटेंट समाज में जागरुकता बढ़ाने और अपराध रोकने के उपायों पर चर्चा करने के लिए बनाया जाता है तो वह स्वागतयोग्य है। यदि किसी महिला द्वारा किए गए अपराध को लेकर नकारात्मक तरीके से रील्स बनाई जाती हैं, जिससे अपराध का महिमामंडन हो या किसी का अपमान किया जाए तो यह गलत है और इसे रोका जाना चाहिए।
इस पर जागरुकता बढ़ाने वाली सकारात्मक सामग्री बनानी चाहिए, ताकि समाज को सही दिशा मिले। लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो ट्रेंड में आते हैं जो किसी अपराध का मज़ाक उड़ाते हैं या समाज में गलत संदेश देते हैं। इस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।’’ नायक ने आगे कहा कि समाज को चाहिए कि वह ऐसे नकारात्मक कंटेंट को बढ़ावा न दे और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी इस तरह के वीडियो की मॉनीटरिंग कर कार्रवाई करनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री से आहत महसूस करता है, तो वह महिला आयोग या साइबर क्राइम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज करा सकता है।
लॉ छात्र श्रद्धेय नमन मिश्रा ने कहा, लोगों पर सोशल मीडिया कंटेंट का भूत इस कदर हावी है कि वे शवों को छुपाए जाने के लिए उपयोग में लाए गए ड्रम और फ्रिज जैसे तथ्यों पर रील बना रहे हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आरोपियों ने भी यह योजना किसी वेब सीरीज को देखकर बनाई होगी। संवेदनशील मुद्दों पर ऐसा मजाक पूर्णरूप से मूर्खतापूर्ण है ।
एसकेटीडी लॉ कॉलेज सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रीति सतपथी ने कहा, आपराधिक मामलों का मज़ाक उड़ाना केवल असंवेदनशीलता नहीं, बल्कि समाज की गहरी चेतना की कमी को भी दिखाता है। हर अपराध किसी व्यक्ति की असल ज़दिंगी को प्रभावित करता है, चाहे वह शारीरिक हिंसा हो या मानसिक शोषण। जब हम इन घटनाओं को मज़ाक का विषय बनाते हैं, तो हम पीड़ित की दर्दनाक स्थिति का उपहास करते हैं। एक संवेदनशील समाज वही है जो इन समस्याओं को समझे और उनका सम्मान करे। अपराध को हल्के में लेना न्याय का अपमान है और समाज की बुनियादी मानवता को कमजोर करता है। लॉ छात्र राहुल शर्मा कुछ लोगों के लिए संवेदनाएं भी ट्रेंडिंग टॉपिक से ज्यादा कुछ नहीं रहीं। हर चीज़ पर मीम और मज़ाक बनाना दिखाता है कि हम दर्द को महसूस करने से ज्यादा उसे मनोरंजन में बदलने के आदी हो गए हैं। ये समाज के लिए खतरे की घंटी है।
साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर डॉ गार्गी पांडेय ने कहा कि सोशल मीडिया पर हिंसा, दुख और शोषण से जुड़ी घटनाओं को मज़ाक या ’’कॉन्टेंट’’ बनाकर पेश करना समाज पर गहरा असर डाल रहा है। बार-बार ऐसे दृश्य देखने से लोग दूसरों की पीड़ा को महसूस करने की क्षमता खोने लगते हैं, जिसे मनोविज्ञान में डेसेंसिटिज़ेशन कहा जाता है। यह न केवल इंसानी संवेदना को कमजोर करता है, बल्कि समाज में सहानुभूति भी घटने लगती है। खासकर युवाओं में यह डर, असुरक्षा और कभी-कभी अपराध के प्रति आकर्षण भी पैदा कर सकता है। हमें जागरूक रहकर ऐसे संवेदनहीन कंटेंट को रोकने की दिशा में काम करना चाहिए।
Published on:
29 Mar 2025 12:14 pm
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