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छत्तीसगढ़ के नरवा, गरुवा, घुरवा व बारी की चर्चा सरहद पार तक

'छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरवा, बाडी, ऐला बचाना है संगवारी'। सत्ता में आने के बाद इन चारों को पहचान दिलाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए।

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छत्तीसगढ़ के नरवा, गरुवा, घुरवा व बारी की चर्चा सरहद पार तक

छत्तीसगढ़ के नरवा, गरुवा, घुरवा व बारी की चर्चा सरहद पार तक

रायपुर| छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किए जाने के साथ गांवों को समृद्ध बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की चर्चा अब सरहद पार भी पहुंच गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने अमेरिका दौरे के दौरान हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों से लेकर नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी से नरवा (नाला), गरुवा (जानवर), घुरवा (घूरा) और बारी (घर के पिछवाड़े में साग-सब्जी के लिए उपलब्ध जमीन) पर चर्चा की।
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राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने नारा दिया था, 'छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरवा, बाडी, ऐला बचाना है संगवारी'। सत्ता में आने के बाद इन चारों को पहचान दिलाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए। राज्य सरकार का मानना है कि अगर गांव में पानी, जानवर, घूरा और बारी वास्तविक अस्तित्व में रहे तो गांव को समृद्ध बनाया जा सकता है। बीते एक साल में इस दिशा में काम भी हुए हैं।

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राज्य सरकार की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक, मुख्यमंत्री बघेल ने अमेरिकी प्रवास के दौरान हार्वर्ड विश्वविद्यालय में छात्रों से नरवा, गरुवा, घुरवा और बारी पर चर्चा की। उन्होंने छात्रों के सवालों के जवाब भी दिए, और कहा कि गांव की अर्थव्यवस्था की मजबूती से ही राज्य और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने नरवा, गरुवा, घुरवा और बारी योजना चलाई जा रही है और इसके परिणाम भी सामने आने लगे हैं।

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मुख्यमंत्री बघेल का जहां एक ओर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों से संवाद हुआ, वहीं नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी से भी राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर चर्चा हुई। राज्य सरकार का मानना है कि अगर गांव में पानी, मवेशी और खासकर गांव के लिए बेहतर इंतजाम, जैविक खाद के घूरे और खेती अच्छी हो जाए तो गांव को समृद्ध बनाकर अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सकता है। बघेल ने अमेरिका में भी इस बात का दावा किया कि राज्य सरकार के प्रयासों का ही नतीजा रहा है कि राज्य पर मंदी का असर नहीं पड़ा।

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मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा लगातार कहते आ रहे हैं कि "नरवा, गरुवा, घुरवा और बारी किसी भी गांव और परिवार की समृद्घि का परिचायक हुआ करते थे, मगर वक्त व स्थितियां बदलीं, जिससे गांव उतने विकासशील नहीं रहे। वर्तमान सरकार एक बार फिर इन्हें समृद्घ बनाने की दिशा में बढ़ रही है। कोई भी गांव और परिवार इन चार मामलों में सक्षम होता है तो उसकी समृद्घि का संदेश मिलता है।"

सूत्रों का कहना है कि हार्वर्ड के कई शोध छात्रों ने छत्तीसगढ़ के नरवा, गरुवा, घुरवा व बारी को देखने और समझने के लिए राज्य के दौरे पर आने की रुचि भी दिखाई है।

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सरकार अपनी योजना के मुताबिक जहां नालों में पूरे साल पानी रहे, इसके प्रयास कर रही है, वहीं निराश्रित मवेशियों के लिए गोठान बनाए जा रहे हैं। जैविक खाद के लिए घूरा को बनाने पर जोर दिया जा रहा है, वहीं परिवार को अच्छी सब्जियां मिले, इसके लिए बारी को स्थापित करने का परामर्श दिया जा रहा है। गांव वालों को पौष्टिक भोजन मिलेगा तो कुपोषण और एनीमिया को नियंत्रित किया जा सकेगा।

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कांग्रेस के प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी का कहना है कि नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी को व्यवस्थित किए जाने से जहां एक ओर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं। उन्होंने कहा, "राज्य सरकार का यह डीम प्रोजेक्ट है, इसे आज देश ही नहीं विदेश भी समझना चाहते हैं। यही कारण है कि हार्वर्ड के छात्रों से भी इस मुद्दे पर संवाद हुआ।"

-आईएएनएस

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