छात्र मेडिकल कॉलेज व जिला अस्पतालों में दो साल तक मेडिकल अफसर व जूनियर रेसीडेंट डॉक्टर के बतौर सेवाएं देंगे। दो साल की सेवा के बाद ही उन्हें हैल्थ साइंस विवि से स्थायी डिग्री मिलेगी। वहीं, छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल में स्थायी पंजीयन भी होगा। पीजी पास छात्रों की पोस्टिंग भी अभी नहीं हुई है। वे भी इंतजार कर रहे हैं। इंटर्नशिप पूरी करने वाले छात्रों को संबंधित मेडिकल कॉलेजों ने कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी दे दिया था।
एमबीबीएस के साढ़े 4 साल के कोर्स के बाद एक साल की इंटर्नशिप अनिवार्य है। इसके बाद दो साल की बांड सर्विस अनिवार्य है। पहले इसे ग्रामीण सेवा के नाम से भी जाना जाता था, लेकिन पिछले साल ज्यादातर छात्रों को मेडिकल कॉलेज व इससे संबद्ध अस्पतालों में भेजा गया था। इंटर्नशिप पूरी करने वाले ये छात्र अगस्त में होने वाली नीट पीजी में शामिल हो सकेंगे। इसके लिए उन्हें स्वास्थ्य विभाग से एनओसी लेनी होगी। अगर छात्रों का चयन पीजी कोर्स में होता है तो वे एडमिशन लेकर पढ़ाई कर सकते हैं। जब पीजी का कोर्स पूरा हो जाएगा, तब वे दो साल का बॉन्ड पूरा करेंगे।
हालांकि उन्हें पीजी पास करने के बाद भी दो साल की बॉन्ड सेवा में जाना होगा। इस तरह उन्हें पीजी के बाद चार साल सेवा देनी होगी। तभी उन्हें पीजी की स्थायी डिग्री मिलेगी और स्थायी पंजीयन भी होगा। इसके बाद वे न केवल छत्तीसगढ़ में, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में प्रैक्टिस कर सकते हैं। हालांकि उन्हें संबंधित राज्य के मेडिकल काउंसिल में भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
Medical Colleges: 20 से 25 लाख पेनल्टी का प्रावधान, इसलिए जाने लगे
दो साल के बॉन्ड में नहीं जाने पर छात्र-छात्राओं की कैटेगरी अनुसार, 20 से 25 लाख रुपए पेनल्टी देने का नियम है। एसटी, एससी व ओबीसी के छात्रों को 20 लाख व यूआर के छात्रों के लिए 25 लाख रुपए पेनल्टी निर्धारित है। अब न केवल ग्रामीण सेवा बल्कि कई छात्रों की पोस्टिंग मेडिकल कॉलेजों में भी होने लगी है। इस पर सवाल भी उठ रहे हैं।
दरअसल एमबीबीएस पास छात्रों की पोस्टिंग मेडिकल अफसर के बतौर होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी होती है। इसलिए ये छात्र मरीजों का जनरल चेकअप कर इलाज करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इसलिए उनकी सेवाएं शहरी के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी है।
पिछले साल हरेली में दी गई थी पोस्टिंग
पिछले साल लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण हरेली त्योहार के मौके पर जुलाई में पोस्टिंग दी गई थी। जबकि तब छात्रों की इंटर्नशिप 31 मार्च को पूरी हुई थी। पिछले साल पोस्टिंग में काफी देरी हुई थी। छात्र तीन बार स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी से भी मिले थे, हालांकि इसके बाद भी जुलाई में पोस्टिंग दी गई। ग्रामीण सेवा में जाने वाले एमबीबीएस छात्रों को सामान्य क्षेत्रों के लिए हर माह 57150 रुपए व अनुसूचित क्षेत्र के लिए 69850 रुपए मानदेय दिया जा रहा है। नियमानुसार छुट्टी की भी पात्रता है। ये छात्र कई बार प्री पीजी की तैयारी करते हैं। पोस्टिंग के बाद भी अस्पतालों में ज्वॉइन नहीं करते।
भर्ती 3 साल से अटकी
प्रदेश के 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों व इससे संबद्ध अस्पतालों में 6300 से ज्यादा नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती तीन साल से अटकी हुई है। आरक्षण रोस्टर तय नहीं होने के कारण भर्ती में लगातार देरी हो रही है। संभाग व जिला के रोस्टर में किस रोस्टर का पालन किया जाएगा, अधिकारी यही तय ही नहीं कर पा रहे हैं। प्रदेश में पहली बार प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों में एक साथ भर्ती करने की योजना फेल होती दिख रही है। यह भर्ती व्यापमं के माध्यम से होनी है। तीन साल पहले डीएमई कार्यालय के प्रस्ताव के बाद व्यापमं ने भर्ती के लिए हरी झंडी भी दे दी थी। सभी कॉलेजों में एक साथ भर्ती हो जाए, इसलिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 2022 में नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती एक साथ करने का निर्णय लिया था। जब यह प्रस्ताव बनाया गया, तब 4 हजार पद खाली थे। अब इसकी संख्या 6300 से ज्यादा पहुंच गई है। नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ का पद तृतीय व चतुर्थ श्रेणी में आता है।
पद खाली होने के कारण रायपुर समेत सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। कई अस्पतालों में नर्सों पर वर्कलोड बढ़ गया है। अस्पतालों में स्टाफ नर्स से लेकर रेडियोग्राफर, ओटी टेक्नीशियन, लैब टेक्नीशियन, वार्ड ब्वॉय, आया समेत अन्य पदों पर भर्ती की जानी है।
50 फीसदी आरक्षण के अनुसार भर्ती
सितंबर 2022 में हाईकोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बाद राज्य सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में इस पर स्टे दे दिया था। डीएमई कार्यालय के अधिकारियों के अनुसार, 58 फीसदी आरक्षण पर भर्ती उन पदों पर की जा रही है, जिसकी प्रक्रिया शुरू हो गई थी। नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई थी, इसलिए 58 फीसदी आरक्षण के अनुसार भर्ती नहीं की जा सकती। इसलिए व्यापमं को प्रस्ताव बनाकर भी नहीं भेजा गया। रोस्टर कब तय होगा, अधिकारी यह तय नहीं कर पा रहे हैं। लगातार देरी होने से अभ्यर्थियों में मायूसी भी है।
अंबिकापुर मेडिकल में कॉलेज करेगा भर्ती
हाईकोर्ट ने कांकेर मेडिकल कॉलेज में 539 पदों पर हो रही भर्ती पर स्टे दिया था। जगदलपुर के आधा दर्जन से ज्यादा आवेदकों ने 58 फीसदी आरक्षण के अनुसार हो रही भर्ती को कोर्ट में चुनौती दी थी। महासमुंद, कोरबा, दुर्ग मेडिकल कॉलेजों को भर्ती का इंतजार है। दरअसल ये कॉलेज नए खुले हैं और स्टाफ की जरूरत है।
शासन ने कॉलेज के लिए 324 व अस्पतालों के लिए 471 पद यानी कुल 795 पदों की स्वीकृति दी है। हालांकि कुछ कॉलेज व अस्पताल में 825 पदों पर भर्ती की जाएगी। अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने खुद भर्ती करने का निर्णय लिया है, लेकिन वहां भी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।