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Raipur News: बाघ को परिवार का हिस्सा मानता था कर्मचारी, बिछड़ने पर सोशल मीडिया में छलका दर्द

CG News: बाघ के जाने के बाद कर्मचारियों ने अपनी भावनाओं को सोशल मीडिया पर साझा किया। बारनवापारा के वन कर्मचारी अजीत ध्रुव ने लिखा, ‘‘अब न कोई खोजा-खोजी, न कोई पग निशान।

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Raipur News

Raipur News: रायपुर पत्रिका @ दिनेश यदु। बारनवापारा अभयारण्य में पिछले आठ महीनों में एक बाघ ने न केवल पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया, बल्कि जंगल के कर्मचारियों के दिलों में भी अपनी एक खास जगह बना ली थी। बाघ की निगरानी में लगे कर्मचारी इसे अपना परिवार मानने लगे थे। वे दिन-रात इसकी सुरक्षा और देखभाल में लगे रहते थे और धीरे-धीरे उनके और बाघ के बीच एक गहरा रिश्ता बन गया था।

तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व ले जाया गया बाघ को

26 नवंबर को जब बाघ को कसडोल से बेहोश कर गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व ले जाया गया, तो बारनवापारा के कर्मचारियों पर गहरा असर पड़ा। यह सिर्फ एक बाघ की नहीं, बल्कि उन कर्मचारियों की भावनाओं का हिस्सा बन चुका था। कर्मचारियों की आंखों में आंसू थे और उनका दिल टूट गया था। खासकर महिला कर्मचारी कमलेश्वरी पैकरा तो इतनी दुखी हुई कि दो दिन तक वह खाना भी नहीं खा सकी। यह बाघ उनके लिए सिर्फ एक वन्यजीव नहीं, बल्कि उनका परिवार बन चुका था।

वन कर्मचारियों का बाघ के प्रति समर्पण

बारनवापारा में बाघ पर 24 घंटे निगरानी रखने वाले कर्मचारी उसके हर छोटे-बड़े व्यवहार से परिचित हो गए थे। वे इसे अपना समझते थे और हर दिन उसकी सुरक्षा और देखभाल में पूरी निष्ठा से जुटे रहते थे। अब बाघ के जाने के बाद उन्हें एक खालीपन सा महसूस हो रहा है, जैसे कुछ बहुत महत्वपूर्ण खो गया हो।

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सोशल मीडिया पर बिखरा दर्द

बाघ के जाने के बाद कर्मचारियों ने अपनी भावनाओं को सोशल मीडिया पर साझा किया। बारनवापारा के वन कर्मचारी अजीत ध्रुव ने लिखा, ‘‘अब न कोई खोजा-खोजी, न कोई पग निशान। चला गया टाइगर जैसे घर जमाई, करके बार जंगल सुनसान।’’ वहीं सोनाखान आरओ सुनित साहू ने अपने पोस्ट में कहा, ‘‘बार का जंगल वीरान सा है। वही लोग, वही राहें, वही निगाहें, पर आंखों में खोया अरमान सा है।’’ सुनील खोबरागड़े, रेंजर, ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया, ‘‘न जाने क्यूं कुछ छूटा-छूटा सा है, जैसे लगता अपना सा है। दूर हो के भी ऐसा लगता कि वो करीब सा है।’

बाघ ने कोई जनहानि नहीं की

बारनवापारा के डीएफओ मयंक अग्रवाल ने कहा, ‘‘हमारे क्षेत्र में बाघ ने कभी कोई जनहानि नहीं की। यह हमारी सफलता की कहानी है। बाघ के संरक्षण के लिए हमारा वन विभाग न केवल अपनी जिम्मेदारी निभाता है, बल्कि यह एक मानवीय रिश्ते का प्रतीक भी है।’’ बाघ और अन्य वन्यजीवों के प्रति कर्मचारियों का यह लगाव यह साबित करता है कि वन्यजीवों के संरक्षण के साथ-साथ उनकी देखभाल भी एक गहरे और संवेदनशील संबंध का हिस्सा बनती है।