
World Elephant Day: Story By: राकेश टेंभुरकर/दिनेश यदु। प्रदेश में जंगली हाथियों से निपटने के लिए पिछले 23 साल में 18 योजनाओं और करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद हाथी नहीं बन पाए हमारे साथी। वन विभाग और एलीफेंट प्रोजेक्ट से जुड़े अफसर फिल्म दिखाने, हाथी के गले में घंटी बांधने से लेकर धान तक खिलाने और कर्नाटक से कुमकी हाथियों के जरिए कई प्रयोग कर चुके हैं। इसके बाद भी जनहानि रुकने का नाम नहीं ले रही है।
उनके संरक्षण और संवर्धन को लेकर किए जा रहे प्रयासों के सार्थक परिणाम जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि देशभर में सबसे ज्यादा कर्नाटक में 6395 हाथी है। उनकी संख्या 6 फीसदी से भी कम छत्तीसगढ़ में करीब 350 है। लेकिन, हाथियों का उपद्रव थमने का नाम नहीं ले रहा है। इन 23 सालों में विभिन्न कारणों से 221 हाथियों की मौत भी हुई है। वन विभाग के अफसरों का कहना है कि हाथियों को जंगल के भीतर रोकने के लिए की कवायद में जुटे हुए हैं।
वन विभाग ने जंगली हाथियों को रोकने के लिए सोलर फेंसिंग तार, गले में घंटी बांधने, कुमकी हाथियों की मदद, रेडियो से स्लोगन एवं सूचना प्रसारित करने, मुनादी कराने, लोकगीत जन जागरण अभियान, आवास योजना, रंगमंच, स्लोगन, पोस्टर -बैनर, स्थाई और अस्थाई, धार्मिक अस्था से जोड़कर लोगों को हाथियों के प्रति श्रध्दा रखने कहा गया। वहीं फिल्म हाथी मेरे हाथी, सहित विभिन्न डाक्यूमेंट दिखाकर जनजागरूकता अभियान चलाया गया। जंगल के भीतर उनके खाने के लिए फलदार वृक्ष, मशरूम और धान खिलाने का प्रयास भी किया गया। इसके बाद भी हाथियों के दल जंगल छोड़कर रिहायशी इलाकों की ओ्रर लगातार रुख कर रहे है।
हाथियों द्वारा 2016 से 2021 के बीच नुकसाए पहुंचाए जाने के 1 लाख 9511 से ज्यादा प्रकरण वन विभाग द्वारा दर्ज किए गए है। इसमें 11980 प्रकरण प्रापर्टी को नुकसान पहुंचाने और 97531 प्रकरण जनहानि और फसलों को क्षति पहुंचाने के शामिल है। इन प्रकरणों में करोड़ों रूपए का मुआवजा पीडि़तों को वितरित किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 2019 से 2024 के बीच हाथियों के हमलों में करीब 300 लोगों की मौत हुई है। बीते सप्ताहभर में ही कोरबा और जशपुर में हाथी के कुचलने से 7 लाेगों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा मौत 2018 से 2020 के बीच हाथियों के हमलों में 204 लोगों की मौत हो चुकी है और 97 लोग घायल हुए।
इस अवधि में 45 हाथियों की मौत भी हुई, जिसमें सबसे अधिक 18 मौतें 2020 में दर्ज की गईं। यह संघर्ष न केवल मानव जीवन के लिए खतरनाक है, बल्कि वन्यजीवों के लिए भी गंभीर संकट पैदा कर रहा है। छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग विशेषकर सरगुजा संभाग में जशपुर और अंबिकापुर में मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं अधिक हैं, जहां लगभग 240 जंगली हाथी निवास करते हैं।
छत्तीसगढ़ में हाथी-मानव संघर्ष को कम करने के लिए अब मधुमक्खियों का उपयोग किए जाने की योजना है। मनोरा परिक्षेत्र में 50 हितग्राही, विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों को मधुमक्खी बाड़ लगाने के लिए प्रशिक्षण और बी-बॉक्स प्रदान किए गए हैं। आईआईटी मुंबई के विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया गया है। हाथी मधुमक्खियों की भिनभिनाहट और काटने के डर से उन क्षेत्रों से दूर रहते हैं। यह परियोजना सरगुजा, जशपुर और अंबिकापुर में लागू की जा रही है।
छत्तीसगढ़ में वन विभाग ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का उपयोग हाथी और मानव के बीच टकराव को रोकने के लिए शुरू किया है। उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व, धमतरी, गरियाबंद, धरमजयगढ़, कटघोरा, सरगुजा, जशपुर, और अंबिकापुर में घूम रहे करीब 300 हाथियों की निगरानी एक विशेष ऐप के माध्यम से की जा रही है। एआई आधारित छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रैकिंग एंड अलर्ट ऐप पर हाथियों की लोकेशन ट्रैक की जाती है।
World Elephant Day: सीतानदी उंदती के उपनिदेशक वरुण जैन ने बताया कि पटाखे फोड़ना, मिर्ची बम का उपयोग, पत्थर मारना, और बिजली की चपेट में आने से हाथी आक्रामक होते हैं। विस्थापित हाथी अधिक आक्रामक होते हैं। अतिक्रमण, अवैध कटाई, सड़क निर्माण, और खदानें भी हाथियों को परेशान करती हैं। हमें इन कारणों को समझकर समाधान निकालना होगा।
हाथियों का संभावित प्रवास क्षेत्रों में गांवों को वायरलेस, मोबाइल, और माइक से पूर्व सूचना देकर सचेत किया जाता है। हाथी मित्र दल वन कर्मचारियों को हाथियों के आगमन की जानकारी देते हैं और स्थिति नियंत्रण में रखते हैं। सरपंच, सचिव और ग्रामीणों के वॉट्सऐप ग्रुप के माध्यम से हाथियों की जानकारी साझा की जाती है। वन प्रबंधन समितियों की बैठकों में जनधन की क्षति रोकने के उपायों का प्रचार-प्रसार किया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाता है।
Published on:
12 Aug 2024 10:55 am
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