
रायसेन. रायसेन जिले में वन और खनिज संपदा से भरपूर सिलवानी और सांची विधानसभा क्षेत्रों के दौरे में सिलवानी क्षेत्र में तैयार हो रही बीना परियोजना क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गांवों के निवासियों को डूब का डर दिखाती महसूस हो रही है। बेगमगंज शहर के लोग भी डूब की आशंका में हैं। ग्राम पंचायत कुंडाली के प्रहलाद सिंह बोले, निर्मल पंचायत होने के बाद भी यहां गंदगी का अंबार है। यह वो पंचायत है जिसे मिलाकर बम्हौरी को नगर पंचायत बनाने की घोषणा कुछ दिन पहले ही सीएम ने बम्हौरी में की थी। निर्मल और ओडीएफ पंचायत के कोई मायने नहीं हैं। लोग शौच के लिए घर से बाहर जाते हैं।
दलालों के कब्जे में वन संपदा
गजगवां में पहुंचने पर जगन्नाथ आदिवासी बोले, जंगल से महुआ, कुटकी लाकर गुजारा करना पड़ता है। साल में एक बार तेंदूपत्ता तोड़कर वन संपदा का वास्तविक हक मिलता है, बाकी संपदा दलालों और माफिया के कब्जे में है। अंगोछा और ओढ़नी आज भी यहां के आदिवासियों का मुख्य परिधान है, जो विकास की असलियत को उजागर करता है।
गांवों में अनट्रेंड डॉक्टर ही कर रहे इलाज
इसके बाद हम स्तूपों की नगरी सांची के नाम से बने सांची विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे। वहां ग्रामीणों को आज भी नालों को पार करने लकड़ी और रस्सी का सहारा लेना पड़ता है। स्वास्थ्य मंत्री के इस क्षेत्र में केवल जिला अस्पताल में सुविधाओं को गिनाकर पूरे क्षेत्र को अनदेखा किया गया है। ग्राम गीदगढ़ इसका उदाहरण है। इसके आसपास के क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं तहस-नहस हैं। गांवों मेंतथाकथित अनट्रेंड डॉक्टर ही इलाज कर रहे हैं।
स्कूल उस दिन खुलते हैं, जिस दिन मास्टर आते हैं
सांची विधानसभा क्षेत्र के ही ग्राम गढ़ाघाट, बोरपानी में मालती बाई और लाखन सिंह ने पंचायत भवन न खुलने की समस्या गिनाई। बोले, पंचायत भवन केवल ग्राम सभा के दिन ही खुलता है। स्कूल उस दिन खुलते हैं, जिस दिन मास्टर साहब आ जाएं। आवेदन के बावजूद ग्रामीणों को कई महीनों से कुटीर योजना का लाभ नहीं मिला है। दफ्तरों के चक्कर काटने को विवश हैं।
बरसों से सड़क का इंतजार
आगे चांदनगोड़ा में पहुंचे, तो पता लगा कि ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने वाली सड़कें आज भी नहीं बनी हैं। ग्राम बघेड़ी के बुजुर्ग भैरो आदिवासी बताते हैं, गांव तक पहुंचने को लगभग चार किमी का रास्ता आज तक नहीं बना। रम्पुरा, गुदरई टोला, तजपुरा के रास्ते का भी यही हाल है। बारिश में गांव से निकलना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीण घरों में कैद हो जाते हैं। न तो राशन पहुंचता है और न वे खुद राशन लेने सोसायटी जा पाते हैं।
Published on:
05 Jul 2023 10:51 pm
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