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Osho के जन्मस्थान पर ‘मोरारी बापू’ ने की पूजा, 11 दिसंबर को मनाया जाएगा जन्मोत्सव

Osho Birth Anniversary: ओशो जन्मस्थली में अंतरराष्ट्रीय कथावाचक मोरारी बापू (Morari Bapu) ने ध्यान व पूजन किया। उन्होंने कहा कि ओशो दर्शन भी सनातन के अंतर्गत ही है। सब सनातन में ही समाहित है।

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morari bapu reached Osho's birthplace Kuchabada (Patrika.com)

MP News: अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक मोरारी बापू (Morari Bapu) ने ओशो की जन्मस्थली रायसेन के कुचबाड़ा पर पहुंचकर ध्यान और पूजन किया। दरअसल, 11 दिसंबर को ओशो का जन्मदिन (Osho Birth Anniversary) है। ओशो के जन्मोत्सव पर 6 से 14 दिसंबर तक जबलपुर में मोरारी बापू की रामकथा आयोजित है। देश-विदेश से ओशो का जन्मदिन मनाने ओशो के अनुयायी जबलपुर एवं कुचबाड़ा पहुंच रहे है। शुक्रवार को भो नेपाल सहित जबलपुर-भोपाल आदि शहरों से ओशो के अनुयायी जन्मस्थली के दर्शन एवं पूजा अर्चना करने पहुंचे।

ओशो की जन्मस्थली पर मोरारी बापू ने लगाया ध्यान

मोरारी बापू ने जबलपुर पहुंचने से पहले कुचबाड़ा पहुंचकर भवन के उस कक्ष के दर्शन किए जहां ओशो का जन्म हुआ था। यहां बापू ने पूजन और ध्यान किया। इस दौरान ओशो के अनुयायियो ने बापू का स्वागत किया। पत्रिका के सवाल का जवाब देते हुए बापू ने ओशो दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि ओशो का दर्शन स्वयं को परम शांति और परम सुख प्रदान करता है। ओशो दर्शन भी सनातन के अंतर्गत ही है। सब सनातन में ही समाहित है। बापू ने कहा ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों मागों से ही प्राणी की मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

सिर्फ मोरारी बापू लेते है ओशो का नाम- स्वामी शीला प्रेम प्रकाश

ओशो के अनुयायी और ओशो केंद्र भेड़ाघाट के संचालक स्वामी शीला प्रेम प्रकाश ने कहा, पूरा ओशो परिवार मोरारी बापू का आभारी है। उन्होंने ओशो के दर्शन ओशों के नाम से ही उल्लेखित किया है। ओशी के शरीर त्यागने से पहले और उबाद भी देश के बड़े-बड़े प्रवचनकर्ता रात में ओशो दर्शन का अध्ययन करते हैं और अगले दिन प्रवचन में बताते है। लेकिन ओशो का नाम नहीं लेते। मोरारी बापू, ओशो चेतना और दर्शन को उनके नाम से ही उल्लेखित करते है।

मोटी रकम लेकर खोला जन्म स्थल भवन, हो गया विवाद

नेपाल सहित देश के कोने-कोने से आए अनुयायी, ओशो भवन स्थित उनके जन्म स्थल के दर्शन करना चाहते थे। दर्शन पूजन की लालसा में स्वामी शीला प्रेम प्रकाश के साथ आए 20 से अधिक अनुयायी दो घंटे तक भवन के बाहर दर्शन के लिए गिडगिड़ाते रहे। लेकिन ओशो भवन जन्मस्थल की व्यवस्था संभाल रहे जिम्मेदारी ने ताला खोलने से इंकार कर दिया। यहां के व्यवस्थापकों ने भवन का ताला खोलने के लिए मोटी रकम वसूली। इससे आहत अनुयायियों का का आक्रोश झलक उठा।

स्वामी शीला प्रेम प्रकाश ने कहा, चार दिन की यात्रा करके यहां पहुंचे है, लेकिन दर्शन के लिए जन्मस्थली का ताला नहीं खोला जा रहा। मोटी रकम लेकर प्रवेश दिया गया। इस बदसलूकी के लिए गांव के लोगों ने भी आक्रोश जताया। ग्रामीणों ने कहा इससे विश्व प्रसिद्ध ओशी की जन्मस्थली का नाम बदनाम हो रहा है। मुख्य द्वार को बंद करने वाले राजेश रघुवंशी ने लोगों के साथ बादसलूकी से पेश आते हुए कहा बिना रुपए ले किसी को दर्शन नहीं करने दिया जाएगा।

गीत, संगीत, नृत्य के साथ ओशो को किया याद

ओशो भवन के सामने जन्म स्थल के दर्शन की लालसा लिए ओशो के अनुयायियों ने गीत संगीत और नृत्य के साथ ओशो को याद किया। छोटे बच्चों ने भी गीत प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया। ओशो के अनुयायियों ने बताया कि 11 दिसंबर को ओशो ध्यान केंद्र में जन्मोत्सव मनाया जाएगा। तीन दिवसीय ध्यान शिविर और दीक्षा प्रदान की जाएगी। (MP News)