30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

संसार सागर से पार होना है तो लकड़ी के समान बनो

धर्मसभा में आचार्यश्री ने कहा..

less than 1 minute read
Google source verification

image

Ram kailash napit

Dec 24, 2016

raisen

raisen

सिलवानी.
आवश्यकता से अधिक वस्तु का संग्रह किया जाना तथा वस्तु की अधिकता में चाह किया जाना ही परिग्रह होता है। गृहस्थ व्यक्ति अधिक संख्या में वस्तु का परिग्रह करते हैं, जबकि संयमी वस्तु परिग्रह करने के बजाय आत्मावलोकन करते हैं। आत्म अवलोकन से जीवन में परिग्रह किए जाने की बात मन में नहीं आती है। यह उपदेश आचार्य विद्यासागर महाराज ने शनिवार को श्रावकों को संबोधित करते हुए दिए। यहां पर श्रावकों के द्वारा भक्ति भाव के साथ आचार्य पूजन की गई। आचार्यश्री ने बताया कि संसार सागर से पार होना है तो लकड़ी के समान बन कर आचरण करो, तो स्वयं के साथ ही अन्य को भी संसार सागर से पार कराने में सहायक बन सकोगे। यदि कंकड़ बने रहे तो स्वयं का डूबना निश्चित है ही अपितु साथी को भी डुबा ले जाओगे। वीरेंद्र जैन को मिला आहार का सौभाग्य: आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का पडग़ाहन करा कर आहार कराने का सौभाग्य वीरेंद्र कुमार, विवेक कुमार नायक को सपरिवार प्राप्त हुआ, जबकि आचार्यश्री को शास्त्र भेंट स्वदेश कुमार बड़कुर विदिशा वालों के द्वारा किया गया।