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अन्नदाता को ये कैसी राहत: एमएसपी बढ़ाई, लेकिन फसलों के मार्केट भाव अभी भी तय नहीं!

अन्नदाता को ये कैसी राहत: एमएसपी बढ़ाई, लेकिन फसलों के मार्केट भाव अभी भी तय नहीं!

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Plow the fields

farmers will get benefit of crop insurance

ब्यावरा@राजेश विश्वकर्मा की रिपोर्ट...

सरकार ने प्रमुख फसलों के समर्थन मूल्य में भले ही बढ़ोतरी कर दी हो लेकिन मार्केट में उसी फसल का क्या दाम होगा यह तय नहीं है? आयात-निर्यात में कमी के कारण तीन-चार सालों से कृषि बाजार में आई मंदी से किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल पाता। सरकारें समर्थन मूल्य या भावांतर भुगतान के दायरे में बांधकर एक निश्चित राशि या उसका अंतर किसानों को लुभाने दे देती है।

दरअसल, हाल ही में बढ़ाए गए समर्थन मूल्य पर तरह-तरह के सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं कि इन्हीं फसलों पर एक साल पहले समर्थन मूल्य तय किए गए थे बावजूद इसके किसानों को संबंधित फसल के सही दाम नहीं मिल पाए न ही समर्थन मूल्य से ऊपर कभी भाव पहुंचे। ऐसे में यह सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है कि किसानों को किस तरह का फायदा सरकारें देना चाहती हैं?

खरीदी के दौरान भाव में मंदी, बोवनी में तेज
किसानों की उपज के साथ हमेशा रहा है कि उन्हें शासन द्वारा निर्धारित खरीदी की समयावधि के दौरान बेहतर भाव नहीं मिल पाते। अंतर राशि और समर्थन मूल्य का दाम भी कम से कम ही मिल पाता। यानीं समर्थन मूल्य से ऊपर उपज के दाम निकले ही नहीं। यदि भाव बढ़ते भी हैं तो बुआई के दौरान जब कि किसान को इसकी जरूरत होती है। किसानी की बिक्री और मार्केट में खरीदी के दौरान कृषि बाजार हमेशा मंदी के दौर में ही रहा है।

भाव नहीं मिलने से कम हुआ सोयाबीन का रकबा
हर बार बीज खराब हो जाने और भाव में कमी के कारण अब किसानों में भी सोयाबीन को लेकर रुचि कम हुई है। आसानी से हो जाने और कम भाव की मक्का की बोवनी में ज्यादा रुचि किसानों ने दिखाई है। पिछले साल से 10 से 15 फीसदी रकबा सोयाबीन का कम हुआ है। इसका प्रमुख कारण सोयाबीन के महंगे बीज और बिक्री के दौरान भाव की कमी है। हर बार बुआई के दौरान बीज खराब होने की भी नौबत आती है जिससे गरीब और मध्यमवर्गीय किसान महंगा बीज नहीं ले पाते।

हम खुद सलाह देते हैं
दोबारा बोवनी को लेकर और मंहगे बीज के कारण किसानों ने सोयाबीन से मोह कम किया है। अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में थोड़ी सी बारिश की गेप में भी सोयाबीन सूखने लगती है। ऐसे में हम भी विभागीय स्तर पर सोयाबीन कम बोने की सलाह देते हैं।
-बी. एल. मालवीय, उप-संचालक, कृषि विभाग, राजगढ़

अंतरराष्ट्रीय बाजारों से तय भाव
मंडी में समर्थन मूल्य कुछ भी हो लेकिन व्यापारियों का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार से तय होता है। हम उसी भाव में खरीदते हैं जो भाव राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंडियां तय करती हैं। इसके अलावा अंतर की राशि भले ही किसानों को मिले।
-गिरिश गुप्ता, सचिव, व्यापारी एसोसिएशन मंडी, ब्यावरा