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दलहनी फसलों की महत्ता को बताने मनाया गया विश्व दलहन दिवस …

दलहनी फसलों खासकर उड़द, मूंग के मिनीकीट, कृषि यंत्र, मिनी दाल मिल तथा बायोफर्टीलाईजर का नि:शुल्क वितरण किया गया

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World Pulses Day was celebrated to explain the importance of pulses crops.

दलहनी फसलों की महत्ता को बताने मनाया गया विश्व दलहन दिवस ...

राजनांदगांव. समेकित खाद्यान्न उत्पादन में भूमिका तथा पोषक तत्वों से भरपूर दलहनी फसलों की उपयोगिता व महत्ता को प्रदर्शित करने के लिए कृषि विभाग द्वारा 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में मनाया गया। दलहन दिवस को महत्वपूर्ण बनाने के लिए विभाग द्वारा विकासखंड स्तर पर गौठान ग्रामों में किसान संगोष्ठियों का आयोजन कर किसानों को दलहनी फसलों खासकर उड़द, मूंग के मिनीकीट, कृषि यंत्र, मिनी दाल मिल तथा बायोफर्टीलाईजर का नि:शुल्क वितरण किया गया।

गौठान गांव मोतीपुर विकासखंड डोंगरगढ़ में आयोजित विश्व दलहन दिवस कार्यक्रम सह संगोष्ठी में संयुक्त संचालक कृषि दुर्ग-संभाग आरके राठौर विशेष रूप से उपस्थित रहे है। राठौर ने विश्व दलहन दिवस मनाने के पीछे के महत्वपूर्ण कारणों को किसानों के साथ साझा किया। उन्होंने दलहनी फसलों के विशेष गुणों जैसे-वायुमंडलीय नत्रजन को एकत्र कर भूमि को उपलब्ध कराते हुए उपजाऊ बनाने के साथ कवर क्राप के रूप में भूमि के कटाव को रोकना, जैव विविधता को बढ़ावा देना तथा फसल चक्र परीवर्तन के माध्यम से कीटव्याधि की समस्या से कृषकों को छुटकारा दिलाने जैसे विकल्प आदि प्रमुख बातों को अपने वक्तव्य में समाहित करते हुए किसानों से चर्चा की। कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं में अनुविभागीय कृषि अधिकारी एके गुप्ता, वरिष्ठ कृषि अधिकारी डोंगरगढ़ बीआर बघेल, ग्रामीण कृषि अधिकारी दिव्या गौतम एवं ग्राम के उन्नत कृषक उमेश चंद्रवंशी द्वारा भी इस अवसर पर विभिन्न कृषि विषयों पर व्याख्यान दिया गया।

जलवायु परिवर्तन को रोकने में दलहनी फसलों का है प्रमुख योगदान

जलवायु परिवर्तन से धरती के मौसम में असामयिक बदलाव देखे जा रहे हैं। इनमें मानसून के आने में देरी, शीतलहर का प्रकोप तथा अत्यधिक गर्मी से जीव जन्तुओं पर बुरा असर शामिल है। इन प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा देने मे रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग शामिल है जो वातावरण को प्रदूषित करने के साथ ही मनुष्यों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। इन सभी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए दलहनी फसलों का अधिक से अधिक क्षेत्र विस्तार करने की आवश्यकता है जिससे कृत्रिम रासायनिक पोषक तत्वों के खपत को कम कर दलहनी फसलों की जड़ों के माध्यम से ही भूमि को प्राकृतिक रूप से पोषक तत्व उपलब्ध कराया जा सके।