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हों पानी के पुख्ता इंतजाम तो फिर गन्ने से महके खेत

locationराजसमंदPublished: Jan 16, 2019 12:34:29 pm

Submitted by:

laxman singh

-गर्त में माटी के लाल-कुंवारिया, रेलमगरा क्षेत्र में पानी की कमी से लगातार कम हो रही पैदावार, गन्ना कम हुआ तो देशी गुड़ का उत्पादन भी घटा

Be sure to arrange water, then the cane farm

हों पानी के पुख्ता इंतजाम तो फिर गन्ने से महके खेत

प्रमोद भटनागर/योगेश श्रीमाली

कुंवारिया. क्षेत्र में जहां कुछ वर्ष पूर्व तक चारों तरफ गन्ने के खेतों की हरियाली दिखाई पड़ती थी और क्षेत्र में चलती चरखियों व भट्टियों से गुड़ की महक वातावरण में बिखरती थी। लेकिन, लगातार गिरते भू-जल स्तर से गन्ने का रकबा भी घटता जा रहा है। वहीं, नील गाय एवं सियार जैसे जन्तुओं से फसल के बचाव को लेकर भी कोई प्रबंध नहीं होने से इसकी खेती प्रभावित हो रही है। इसके बावजूद किसानों के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने वाले शासन और प्रशासन द्वारा इसको लेकर कोई गंभीरता नहीं बरती जा रही।
गन्ने की फसल को नकदी फसल अर्थात तुरंत कमाई देने वाली फसल माना जाता है। लेकिन, पानी के साथ ही अन्य समस्याओं के चलते गन्ना उत्पादक किसानों का इस फसल के प्रति मोहभंग होता जा रहा है। गन्ने की फसल के सिमटने के साथ में ही गुड़ बनाने का धंधा भी धीरे-धीरे ठप पडऩे लगा है। आज से करीब ढाई दशक पहले तक क्षेत्र में सैकड़ों चरखियां अक्टूबर माह में ही चलनी शुरू हो जाती थी। वहीं, गत वर्ष स्थिति यह रही कि करीब पच्चीस चरखियों में गुड़ बनाया गया। इस वर्ष जनवरी माह के मध्य तक भी मात्र चार से पांच चरखियां ही चल पाई है।
कभी चलती थी शुगर मिल
क्षेत्र में करीब साढ़े तीन दशक पहले तक गन्ने की बम्पर फसल होती थी। गन्ने के इस बम्पर उत्पादन को देखते हुए ही मादड़ी-कुंवारिया मार्ग पर शुगर मिल भी लगाई गई थी। उसमें कई बरसों तक उत्पादन भी हुआ, लेकिन गन्ने की पैदावार के लगातार कम होते चले जाने से मिल के लिए पर्याप्त गन्ना नहीं मिल पाने से वह मिल भी बंद हो गई। ढुलियाणा के किसान प्रेमसिंह, नारायण लाल गुर्जर, रामसिंह ने बताया कि क्षेत्र के गन्ने की गुणवत्ता के कारण ही शुगर मिल की स्थापना की गई थी। क्षेत्र के गन्ने में अच्छी गुणवत्ता होने से काफी अच्छी शक्कर बनती थी।
पानी, रोग व रोजड़े कर रहे सफाया
ग्रामीण कालुसिंह राठौड़, कालुराम जाट, नारायण गुर्जर ने बताया कि गन्ने की पैदावार में वर्तमान में सबसे बड़ा रोड़ा पानी की कमी का है। इसके बाद क्षेत्र में रोजड़ों की बहुतायत से वे फसल को नष्ट कर दते हैं, जिसके चलते किसान इससे विमुख हो रहे हैं। रही-सही कसर कृषि विभाग द्वारा फड़के और गन्ने की फसल में रोग को लेकर कोई पुख्ता समाधान नहीं किया जाना है।
कम होता है मुनाफा
गन्ना उत्पादक किसान भंवरलाल गुर्जर, कालुराम जाट बताते हैं कि गन्ने की फसल वार्षिक होती है। सालभर में एक बार ही इसका उत्पादन लिया जा सकता है। पानी की कमी, फसल में रोग व रोजड़ों के कारण एक साथ में साल भर की कमाई पर पानी फिरने का खतरा रहता है। जबकि, दूसरी फसलो में किसान वर्ष में दो से तीन फसलें कर लेते हंै। ऐसे में गन्ने की जगह किसान अब अन्य फसलों की बुवाई में रूचि लेने लगे हैं।
1500 से घटकर 30 हैक्टेयर रह गया रकबा
क्षेत्र में गन्ने की फसल का हर वर्ष रकबा घटता जा रहा है। कृषि विभाग के अनुसार साढे तीन दशक पहले तक भावा, मादड़ी, कुंवारिया, फियावड़ी, लापस्या, पनोतिया, बिनोल आदि ग्राम पंचायत क्षेत्र में १५०० हैक्टेयर में गन्ने की फसल ली जाती थी। वहीं, इस वर्ष पूरे क्षेत्र में मात्र ३० हैक्टेयर क्षेत्र में ही इसकी बुवाई को पाई है।
पानी की ज्यादा जरूरत
गन्ने की फसल में पानी की काफी जरूरत रहती है। वर्तमान में पानी की कमी के चलते फसल के उत्पादन में गिरावट आई है।
रामेश्वरलाल शर्मा, कृषि अधिकारी, कुंवारिया
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