मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान सतही जल को बढ़ाने, फसलों को स्थानीय स्तर पर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने, मवेशियों एवं पेयजल की किल्लत को दूर करने के लिए पूरे प्रदेश में तीन चरणों में यह अभियान चलाया गया। इसका पहला चरण जनवरी 2016 को शुरू हुआ, जिसमें प्रदेश की 295 पंचायत समितियों के 3 हजार 529 गांवों का चयन किया गया। अभियान के अन्तर्गत चयनित गांवों में पारंपरिक जल संरक्षण के तरीकों जैसे तालाब, कुंड, बावडिय़ों, टांके आदि का मरम्मत कार्य एवं नई तकनीकों से एनिकट, टांके, मेड़बंदी आदि का निर्माण किया गया है। इन जल संरचनाओं के निकट 26 .5 लाख से ज़्यादा पौधारोपण भी किया गया है। अभियान के पहले चरण में 1270 करोड़ रुपये की लागत से करीब 94 हज़ार निर्माण कार्य पूरे किए गए। वहीं दूसरा चरण दिसम्बर 2016 से शुरू हुआ। इस चरण में 4 हज़ार 200 नए गांवों का चयन किया गया व 6 6 शहरों, प्रत्येक जिले से 2 को भी अभियान में शामिल किया गया। शहरी क्षेत्रों में पूर्व में निर्मित बावडिय़ों, तालाबों आदि की मरम्मत का कार्य किया गया। इस चरण में रूफ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के अलावा परकोलेशन टैंक भी बनाए गए। इस चरण में 2100 करोड़ खर्च हुए। वहीं तीसरा चरण दिसम्बर 2017 में शुरू हुआ, इसमें 4240 गांवों में काम किया गया।
पत्रिका टीम ने नाथद्वारा उपखंड के मोलेला पंचायत में स्थित आसुला तालाब का निरीक्षण किया। बताया गया कि यह तालाब वर्ष २०१६ में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना के तहत लाखों रुपए खर्च कर नरेगा में लेकर गहरा करवाया गया था। वर्तमान में इस तालाब में ईंट-भट्टों का कचरा (टूटे व जले ईंट, खराब मिट्टी) डालकर इसे पाटा जा रहा है। अभी इसके एक छोर में बड़ी मात्रा में भट्टों का कचरा पड़ा हुुआ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कचरा पास ही संचालित भट्टे का है। जबकि इस तालाब में चिकनी मिट्टी है। जिसका उपयोग मोलेला की विश्व प्रसिद्ध टेराकोटा की मूर्तियों को बनाने में किया जाता रहा है, लेकिन इस कचरे के चलते जहां तालाब की भराव क्षमता कम हो रही है वहीं, मिट्टी खराब होगी साथ ही पानी भी दूषित होगा।
टीम ने गजपुर पंचायत के लेवों का गुड़ा के पास वाड़ा गांव में जल संरक्षण के लिए निर्मित नाड़ी का निरीक्षण किया।
यहां फेल्सपार की माइंस का मलबा डाला जा रहा हैं। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि इसका विरोध कर मलबा डालने वाले माइंस मालिक को भी मना किया लेकिन वह नहीं माने और नाड़ी में मलबा डाल रहे हैं। जबकि इस नाड़ी को भी मुख्यमंत्री जलस्वावलम्बन योजना के तहत गहरा करवाया गया था। वर्तमान में आधी नाड़ी पर मार्बल स्लरी डाली गई है, जिससे इसका पानी दूषित होगा, जो ग्रामीणों की फसलों और मवेशियों के लिए घातक साबित होगा।