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DOCTORS STRIKE : सरकारी अस्पतालों में नहीं मरीज, खाली हो गए आईसीयू के साथ सामान्य वार्ड : पांच दिन में घटे 80 फीसदी रोगी

चिकित्सकों की हड़ताल के पांच दिन बाद सोनोग्राफी जांच भी हुई बंद

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राजसमंद. सेवारत चिकित्सकों और प्रदेश सरकार के बीच चौथे दिन भी हड़ताल पर कोई फैसला नहीं हो पाया। चिकित्सकों की सामूहिक हड़ताल चौथे दिन भी जारी रही। हड़ताल के चलते बुधवार को बहुत ही कम मरीज दिखे। ऐसे में मेडिकल वार्ड, शिशु वार्ड, महिला वार्ड आदि जगहों पर सन्नाटा छाया रहा। इनडोर में मरीज नहीं होने के कारण सभी वार्डों के दरवाजे भी बंद मिले। हालांकि ९ आयुर्वेद व ६ सामान्य चिकित्सकों ने अस्पताल की व्यवस्था को संभाल रखा है, लेकिन अब मरीजों का आना बंद हो गया है।

जोखिम लेने की स्थिति में नहीं
प्रसव के गम्भीर मामले में महिलाओं को उदयपुर रैफर किया जा रहा है, जबकि सामान्य प्रसव यहीं करवाए जा रहे हैं। साथ ही डायलिसिस जारी है और सामान्य मरीजों की जांच व इलाज किया जा रहा है।

सोनोग्राफी जांच बंद
इधर, चिकित्सकों के भूमिगत होने पर सोनोग्राफी जांच बंद कर दी गई है। हालांकि एक्सरे, ब्लड आदि जांचें सुचारू रूप से की जा रही हंै।

कम पड़े मरीज
अब मरीज बहुत ही कम पड़ गए हैं। हड़ताल के चौथे दिन तो ओपीडी का आंकड़ा बहुत कम हो गया, जबकि गंभीर रोगियों का आना बिल्कुल बंद हो गया है। प्रसव के सामान्य केस ही यहां रखे जा रहे हैं।

ये देख रहे व्यवस्थाएं
चिकित्सालय चरमाराती हुई व्यवस्था को देखते हुए चार हजार रुपए प्रतिदिन मानदेय पर रखी गई गायनिक विशेषज्ञ डॉ. आंकाक्षा श्रीवास्तव, सर्जन डॉ. एम. के. गुप्ता, टीबी विशेषज्ञ डॉ.मेहता, फिजीशियन डॉ. जीनगर आदि सेवाएं दे रहे हैं।

चिकित्सकों की हड़ताल से बैरंग लौट रहे मरीज
रेलमगरा. चिकित्सकों की हड़ताल के चलते मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कस्बे के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर उपचार की आस में दिनभर में मरीज तो पहुंच रहे हैं, लेकिन चिकित्सक के नहीं होने से उपचार कराए बिना ही लौटने को विवश हो रहे हैं। हालांकि इस चिकित्सालय में आयुष चिकित्सक वैकल्पिक तौर पर लगाए गए हैं, लेकिन मरीज एलोपैथिक चिकित्सक से ही उपचार कराना पसंद करते हैं। चिकित्सकों के हड़ताल पर जाने के बाद विगत पांच दिनों में रेलमगरा चिकित्सालय में 16 प्रसूताएं प्रसव के लिए भर्ती हुई, जिनमें से 3 की हालत गंभीर होने से जिला अस्पताल रेफर किया गया। वहां भी डॉक्टरों के अभाव में उन्हें निजी अस्पताल ले जाना पड़ा।