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बैलों से खेती करने वाले किसानों को मिलेगा 30 हजार रुपऐ का अनुदान

पारंपरिक खेती और गोवंश संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने बैल पालने वाले किसानों को बड़ी राहत दी है।

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Rajsamand News

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राजसमंद. पारंपरिक खेती और गोवंश संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने बैल पालने वाले किसानों को बड़ी राहत दी है। ग्रीन बजट घोषणा के अंतर्गत बैलों से खेती करने वाले किसानों को 30 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसके लिए किसानों से अब ऑफलाइन आवेदन आमंत्रित किए जा रहे हैं। सहायक कृषि अधिकारी भीम, कमलेश यादव ने बताया कि पंचायत समिति भीम क्षेत्र की 27 पंचायतों में कुल 32 किसानों के लिए भौतिक आवंटन प्राप्त हुआ है। जिन किसानों के पास बैलों की जोड़ी है और वे खेती कर रहे हैं, वे अपने कृषि पर्यवेक्षक कार्यालय में 25 सितंबर 2025 तक ऑफलाइन आवेदन जमा कर सकते हैं। इसके बाद 26 सितंबर को ग्राम पंचायत स्तर पर लॉटरी प्रणाली से पात्र किसानों का चयन किया जाएगा। लॉटरी में पंचायत प्रशासक, कृषि पर्यवेक्षक, ग्राम विकास अधिकारी और पटवारी मौजूद रहेंगे।

योजना के लिए पात्रता शर्तें

  • किसान के पास एक जोड़ी (2 बैल) होने चाहिए।
  • खेती हेतु भूमि का स्वामित्व होना चाहिए।
  • तहसीलदार द्वारा जारी लघु/सीमान्त किसान प्रमाण पत्र आवश्यक।
  • बैलों का पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी स्वास्थ्य प्रमाण पत्र।
  • आधार कार्ड और जन आधार कार्ड की प्रति।
  • जन आधार से लिंक बैंक खाते की प्रति।
  • 100 रुपए के नॉन-ज्यूडिशियल स्टाम्प पर शपथ पत्र।

आवेदन की प्रक्रिया

किसानों को नजदीकी कृषि कार्यालय में जाकर आवेदन करना होगा। आवेदन के समय नाम, आधार नंबर, जन आधार नंबर, मोबाइल नंबर और कृषक श्रेणी की जानकारी देनी होगी। चयनित किसानों को 30,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि सीधे बैंक खाते में दी जाएगी।

योजना की प्रमुख विशेषताएं

  • 1. छोटे किसानों के लिए आर्थिक सहारा: यह योजना छोटे और सीमांत किसानों के लिए वरदान साबित होगी। बैलों से खेती करने पर लागत में कमी आएगी और किसानों को सीधा आर्थिक लाभ मिलेगा।
  • 2. पारंपरिक खेती को प्रोत्साहन: आधुनिक मशीनों और ट्रैक्टरों के बढ़ते उपयोग के कारण बैलों की संख्या लगातार घट रही है। यह योजना किसानों को पारंपरिक खेती की ओर लौटने और जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करेगी।
  • 3. गोपालन को बढ़ावा: इस योजना से केवल खेती ही नहीं, बल्कि गोपालन को भी बल मिलेगा। अक्सर छोड़े गए बछड़े अब बैल बनकर किसानों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे। इससे पशुपालन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
  • 4. पर्यावरण संरक्षण: बैलों से जुताई करने पर डीजल की खपत कम होगी, जिससे प्रदूषण में कमी आएगी। साथ ही, बैलों की जुताई भूमि की उर्वरता बनाए रखने में मदद करती है।
  • 5. ग्रामीण जीवन में बैलों की वापसी: गांवों में घटती बैलों की संख्या को देखते हुए यह योजना महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। इससे पारंपरिक और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन मिलेगा और किसान जैविक पद्धतियों की ओर लौटेंगे।