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HOLLI: देश में विख्यात सबसे अनूठी श्रीजी की होली, निकलती है बादशाह की सवारी, इस बार होली के तीसरे दिन होगा डोल उत्सव

कांटेदार झाडिय़ों से होलिका को आकार दिया जाएगा, जिन्हें मतारी बोला जाता है

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नाथद्वारा. पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ श्रीनाथजी की नगरी में होली का त्योहार धूमधाम के साथ ही कुछ अनूठे ढंग से मनाया जाता है। इस बार होलिका दहन गुरुवार को शाम के समय होगा, जबकि धुलेंडी शुक्रवार को मनाई जाएगी। वहीं, इस बार मंदिर में डोलोत्सव शनिवार को मनाया जाएगा।
होली के दिन यहां होलीमगरा स्थित श्रीनाथजी मंदिर की मुख्य होली के साथ-साथ शहर में सभी जगहों पर कांटेदार झाडिय़ों से होलिका को आकार दिया जाएगा, जिन्हें मतारी बोला जाता है। मंदिर की मुख्य होली को आकार देने अमावस्या के बाद से ही तैयारी की जा रही है। मंदिर सूत्रों के अनुसार गुरुवार को होलिका दहन शाम ७.३९ बजे किया जाएगा।
डोलोत्सव पर चार राजभोग
श्रीनाथजी मंदिर में होलिका दहन के बाद इस बार शनिवार को ठाकुरजी के डोलोत्सव में सुबह से ही मंदिर गुलाल-अबीर से सराबोर होगा। इस अवसर पर प्रभु के राजभोग की चार झांकियों के दर्शन होंगे।
शुक्रवार को निकलेगी सवारी
डोलोत्सव पर मंदिर की परंपरानुसार बादशाह की सवारी शुक्रवार को निकलेगी, जिसमें बादशाह मंदिर परिक्रमा करते हुए मंदिर के गोवर्धन पूजा चौक पहुंचेगा। वह सूरजपोल दरवाजे पर नवधा भक्ति से बनी सीढिय़ों को अपनी दाढ़ी से बुहारेगा। यह पंरपरा मंदिर की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। सवारी जब बाजार से होकर गुजरेगी है तो साथ में चलने वाले ग्वाल-बाल मंदिर की गार परंपरा को जारी रखते हुए बादशाह को खुली गालियों के साथ उलाहना देते एवं कीर्तनगान करते हुए साथ चलेंंगे। सवारी के समापन के बाद बादशाह के घर पर सभी को पकौड़ी आदि नाश्ते की व्यवस्था होती है।
इस बार होलिका का तीन दिन तक आयोजन
प्रभु श्रीनाथजी मंदिर में होलिका दहन का माहौल तीन दिन तक चलेगा, जिसकी वजह डोलोत्सव होली के दूसरे दिन की बजाय तीसरे दिन होना है।
रसिया गान भी महत्वपूर्ण
मंदिर में पूरे फागुन मास में गुलाल-अबीर की रंगत फागुन कृष्ण पक्ष की सप्तमी को श्रीनाथजी के पाटोत्सव के साथ ही रसिया गान की धमार जारी है, जिसका डोलोत्सव के दिन विराम होगा। वहीं, फागुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक भी प्रारंभ होने से गार गायन भी किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि प्रभु श्रीनाथजी की नगरी में यूं तो गुलाल-अबीर की सेवा प्रतिवर्ष बसंत पंचमी से ही प्रारंभ हो जाती है, जो फागुन मास पर्यंत तक जारी रहते हुए लगभग ४० दिन के बाद डोलोत्सव पर इसका समापन होता है।