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फरसे के प्रहार से भगवान ‘परशुराम‘ ने बना दिया था शिव मंदिर, राजस्थान की इस गुफा में आज भी दिखते हैं कई चमत्कार

locationराजसमंदPublished: May 07, 2019 11:33:39 am

Submitted by:

dinesh

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वे आज भी इसी पृथ्वी पर तपस्या में लीन हैं…

Parshuram Ji
राजसमंद।


राजस्थान के अरावली में स्‍थित है एक शिव मंदिर जिसे परशुराम महादेव गुफा मंदिर ( Parshuram Mahadev Temple ) के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पहाडिय़ों की गुफा में स्थित परशुराम महादेव गुफा मंदिर का निर्माण खुद परशुराम ने अपने फरसे से किया था। उन्होंने चट्टान को अपने फरसे से काटा था। परशुराम महान तपस्वी और भगवान के अवतार हैं। वे सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वे आज भी इसी पृथ्वी पर तपस्या में लीन हैं।
माना जाता है कि अरावली पहाडिय़ों की गुफा में स्थित परशुराम महादेव गुफा मंदिर का निर्माण खुद परशुराम ने अपने फरसे से किया था। उन्होंने चट्टान को अपने फरसे से काटा था। गुफा के अंदर एक शिवलिंग है। यह एक स्वयंभू शिवलिंग है यानी यह स्वयं यहां उत्पन्न हुआ था। कई वर्षों तक यहां भगवान परशुरामजी ने तपस्या की थी। पहाड़ी पर बसे इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 3600 फीट है।
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यहीं से प्राप्त हुआ था फरसा
यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां की गई तपस्या से ही उन्होंने भगवान शिव से धनुष और अक्षय तरकश प्राप्त किया था। उस तरकश के बाण कभी खत्म नहीं होते थे और धनुष हमेशा अचूक निशाना लगाता था। यहीं से उन्हें अपना प्रसिद्ध फरसा प्राप्त हुआ था। यह पूरी गुफा एक चट्टान पर बनी है। शिवलिंग पर गोमुख बना हुआ है जिससे भगवान शिव पर जलधारा गिरती है।
Parshuram Ji
फरसे से किया था राक्षस का अंत
गुफा में शिला पर एक राक्षस की आकृति भी बनी हुई है। कहते हैं कि इस राक्षस का अंत परशुराम ने अपने फरसे से किया था। स्थानीय लोग इसे अमरनाथ धाम कहते हैं क्योंकि जिस प्रकार कश्मीर स्थित अमरनाथ धाम में भगवान शिव साक्षात वास करते हैं उसी प्रकार यहां भी शिव का अखंड निवास है।
Parshuram Ji
ये बात आज तक बनी हुई है रहस्य
उल्लेखनीय है कि परशुराम महादेव मंदिर राजस्थान के राजसमंद व पाली जिले की सीमा पर स्थित है। गुफा राजसमंद जिले में आती है तो कुंड पाली जिले में है। शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इस पर सैकड़ों लीटर जल चढ़ाने पर भी यह उसे आत्मसात कर लेता है क्योंकि इसमें छिद्र है। जबकि दूध चढ़ाने पर वह छिद्र में नहीं समाता। इसका कारण आज तक लोगों के लिए रहस्य ही बना हुआ है। श्रावण मास में यहां मेला भी भरता है जिसमें अनेक श्रद्धालु भगवान शिव और परशुराम को नमन करने आते हैं।
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