“रंग-बिरंगी राजस्थानी संस्कृति का उत्सव”
कुंभलगढ़ फेस्टिवल में रजवाड़ी संस्कृति, लोक नृत्य, संगीत और पारंपरिक कला रूपों की एक भव्य प्रस्तुति होगी। शिखा सक्सेना ने बताया कि इस तीन दिवसीय महोत्सव में विभिन्न राज्यों से आने वाले पर्यटकों के साथ-साथ विदेशी मेहमान भी शिरकत करेंगे। कुंभलगढ़ का यह ऐतिहासिक किला, जो अपनी प्राचीनता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, अब एक सांस्कृतिक मंच में बदलने वाला है, जहां राजस्थानी लोक कला और नृत्य की विविधताएं देखने को मिलेंगी।
“पहले दिन की शुरुआत: शोभायात्रा और सांस्कृतिक धमाका”
फेस्टिवल का उद्घाटन एक भव्य शोभायात्रा से होगा, जो एक दिसंबर को सुबह 11 बजे हल्ला पोल से कुंभलगढ़ किले तक निकाली जाएगी। इस यात्रा में रंग-बिरंगे पारंपरिक लिबास पहने कलाकार, लोकनृत्य और संगीत प्रस्तुत करेंगे, जो त्योहार की शुरुआत को और भी जादुई बना देंगे। उद्घाटन के बाद, किले के यज्ञ वेदी चौक में 11 बजे फेस्टिवल की औपचारिक शुरुआत की जाएगी। फेस्टिवल के पहले दिन, सुबह 11 बजे से अपरान्ह 3 बजे तक राजस्थान के प्रसिद्ध लोक कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे। इस दिन कच्छी घोड़ी, कालबेलिया नृत्य, घूमर नृत्य, मंगणियार कलाकारों का संगीत, चकरी नृत्य, सहरिया नृत्य और अन्य पारंपरिक नृत्य शामिल होंगे। कुंभलगढ़ दुर्ग परिसर में पर्यटकों के लिए कई रंगीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाएगा, जैसे कि रंगोली, कुर्सी रेस और साफा बांधने की प्रतियोगिता।
“रात्रिकालीन मनोरंजन: संगीत और नृत्य का उत्सव”
फेस्टिवल के रात्रिकालीन कार्यक्रमों में विशिष्ट कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से समां बांधेंगे। पहले दिन, शाम को मेला ग्राउंड में रत्ना दत्ता ग्रुप द्वारा क्लासिकल आर्ट फॉर्म में कत्थक, ओडिसी और भरतनाट्यम की शानदार प्रस्तुति दी जाएगी। इससे दर्शकों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य के गहरे और शुद्ध रूपों से अवगत होने का अवसर मिलेगा।
“दूसरे दिन का आकर्षण: संगीत और नृत्य का संगम”
कुंभलगढ़ फेस्टिवल के दूसरे दिन, 2 दिसंबर को विशेष रूप से संगीत और नृत्य के लाइव प्रदर्शन होंगे। सवाई भाट, जो कि इंडियन आइडल के प्रसिद्ध कलाकार हैं, अपनी रंगीन प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगे। इससे पहले, पं. कैलाशचंद मोठिया और उनके साथी कलाकार वायलीन वादन और स्वरचित संगीत के साथ मंच पर आएंगे। इसके साथ ही सूफी संगीत, राजस्थानी गीत और कत्थक नृत्य की भी प्रस्तुति होगी।
“आखिरी दिन का धमाका: क्लासिकल डांस और वाद्य संगीत”
फेस्टिवल के अंतिम दिन, 3 दिसंबर को, दर्शकों को एक और सांस्कृतिक अनुभव मिलेगा, जब मोहित गंगानी ग्रुप तबला वादन के साथ शास्त्रीय संगीत और डांस की प्रस्तुति देगा। इसके साथ ही, बरखा जोशी ग्रुप कत्थक नृत्य और फॉक फ्यूजन की प्रस्तुतियां देंगे। इस दिन का मुख्य आकर्षण विभिन्न भारतीय शास्त्रीय कला रूपों का सम्मिलन होगा, जो फेस्टिवल के समापन के साथ दर्शकों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करेगा।
“मेला, खाद्य और सांस्कृतिक विविधता का आनंद लें”
फेस्टिवल में एक और महत्वपूर्ण आकर्षण लाखेला तालाब के पास फूड कोर्ट होगा, जहां पर्यटक राजस्थानी पारंपरिक स्वादों का आनंद ले सकेंगे। यहां पर मीरचो का पकोड़ा, गट्टे की सब्जी, दाल बाटी चूरमा और अन्य राजस्थान के प्रसिद्ध व्यंजन उपलब्ध होंगे। साथ ही, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच दर्शक स्थानीय हस्तशिल्प और कला का अवलोकन कर सकेंगे। ” एक अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव”
कुंभलगढ़ फेस्टिवल हर साल एक नया उत्साह और ऊर्जा लेकर आता है। यह तीन दिवसीय आयोजन न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है, बल्कि देश और विदेश के पर्यटकों को एक नई दिशा में यात्रा करने का अवसर भी प्रदान करता है। इस वर्ष, फेस्टिवल को एक बड़ा मंच दिया गया है और इस बार के कार्यक्रमों में पहले से कहीं ज्यादा भव्यता देखने को मिलेगी।
“राजस्थान की धरोहर का उत्सव”
इस आयोजन के माध्यम से कुंभलगढ़ दुर्ग, जो पहले अपने ऐतिहासिक गौरव के लिए प्रसिद्ध था, अब अपनी सांस्कृतिक धरोहर और लोक कला की प्रस्तुतियों के कारण एक नया रूप लेगा। इसे देखना न केवल राजस्थान के निवासियों के लिए, बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए भी एक शानदार अनुभव होगा।
“तीन दिन, अनगिनत अनुभव”
यह फेस्टिवल एक ऐसा अनुभव होगा जिसे कोई भी भूला नहीं पाएगा, क्योंकि यह राजस्थान के जीवंत रंगों, नृत्य, संगीत और संस्कृति का आदान-प्रदान करने का सबसे शानदार अवसर है।