
राजसमंद. परशुराम सप्तऋ षि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र थे। ऋ षि जमदग्नि के पिता का नाम ऋ षि ऋ चिका तथा ऋ षि ऋ चिकाए प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे। ऋ षि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था। ऋ चिका ऋ षि धनुर्वेद तथा युद्धकला में अत्यंत निपुण थे- पूर्वजों कि तरह ऋ षि जमदग्नि भी युद्ध में कुशल योद्धा थेण्जमदग्नि के पांचों पुत्रों वासूए विस्वा वासूए ब्रिहुध्यनुए बृत्वकन्व तथा परशुराम में परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे। परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी माने जाते हैं। परशुराम का मुख्य अस्त्र कुल्हाड़ी माना जाता है। इसे फ ारसा परशु भी कहा जाता है। परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्मे तो थे, परंतु उनमे युद्ध आदि में अधिक रुचि थी। इसीलिए उनके पूर्वज च्यावणा भृगु ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने की आज्ञा दी।अपने पूर्वजों कि आज्ञा से परशुराम ने शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कियाण् शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, तब परशुराम ने हाथ जोडक़र शिवजी की वंदना करते हुए शिवजी से दिव्य अस्त्र तथा युद्ध में निपुण होने कि कला का वर मांगा, शिवजी ने परशुराम को युद्धकला में निपुणता के लिए उन्हें तीर्थ यात्रा की आज्ञा दी, तब परशुराम ने उड़ीसा के महेन्द्रगिरी के महेंद्र पर्वत पर शिवजी की कठिन एवं घोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से एक बार फि र शिवजी प्रसन्न हुए। उन्होनें परशुराम को वरदान देते हुए कहा कि परशुराम का जन्म धरती के राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ है। इसीलिए भगवान शिवजी ने परशुराम को देवताओं के सभी शत्रु, दैत्य, राक्षस तथा दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया। परशुराम युद्धकला में निपुण थे। हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले ज्ञानी पंडित कहते हैं कि धरती पर रहने वालों में परशुराम और रावण के पुत्र इंद्रजीत को ही सबसे खतरनाक, अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र, ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पशुपत अस्त्र प्राप्त थे। परशुराम शिवजी के उपासक थे। उन्होनें सबसे कठिन युद्धकला की शिक्षा शिवजी से ही प्राप्त की। शिवजी की कृपा से उन्हें कई देवताओं के दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी प्राप्त हुए थे। उनका धनुष कमान थाए जो उन्हें शिवजी ने प्रदान किया था।
परशुराम जयंती का महत्व तथा आयोजन
इस दिन बड़े बड़े जुलूस शोभायात्रा निकाले जाते हैं। इस शोभायात्रा में भगवान परशुराम को मानने वाले सभी हिन्दू, ब्राह्मण वर्ग के लोग भारी से भारी संख्या में शामिल होते हैं। परशुराम भगवान के नाम पर उनके मंदिरों में हवन, पूजन का आयोजन किया जाता है। इस दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है। सभी लोग पूजन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और दान आदि करते हैं। भगवान परशुराम के नाम पर भक्तगण जगह जगह भंडारे का आयोजन करते है और सभी श्रद्धालु इस भोजन प्रसादी का लाभ उठाते हैं।कुछ लोग इस दिन उपवास रख कर वीर एवं निडर ब्राह्मण रूप भगवान परशुराम की तरह पुत्र की कामना करते हैंण् वे मानते हैं कि परशुरामजी के आशीर्वाद से उनका पुत्र पराक्रमी होगा। वराह पुराण के अनुसारए इस दिन उपवास रखने एवं परशुराम को पूजने से अगले जन्म में राजा बनने का योग प्राप्त होता है।
एक बार परशुराम के पिता ऋ षि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका पर क्रोधित हुए, रेणुका एक बार मिट्टी के घड़े को लेकर पानी भरने नदी किनारे गयी, किन्तु नदी किनारे कुछ देवताओं के आने से उन्हें आश्रम लौटने में देरी हो गयी। ऋ षि जमदग्नि ने अपनी शक्ति से रेणुका के देर से आने का कारण जान लिया और वे उन पर अधिक क्रोधित हुए। उन्होने क्रोध में आ कर अपने सभी पुत्रों को बुला कर अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी। किन्तु ऋ िष के चारों पुत्र वासु, विस्वा, वासु, बृहुध्यणु, ब्रूत्वकन्व ने अपनी माता के प्रति प्रेम भाव व्यक्त करते हुए, अपने पिता की आज्ञा को मानने से इंकार कर दिया। इससे ऋ षि जमदग्नि ने क्रोधवश अपने सभी पुत्रों को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इसके बाद ऋ षि जमदग्नि ने परशुराम को अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी। परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपना अस्त्र फ रसा उठाया और उनके चरणों में सिर नवाकर तुरंत ही अपनी माता रेणुका का वध कर दिया। इस पर जमदग्नि अपने पुत्र से संतुष्ट हुए एवं उन्होने परशुराम से मनचाहा वरदान मांगने को कहा, परशुराम ने बड़ी ही चतुराई एवं विवेक से अपनी माता रेणुका तथा अपने भाइयों के प्रेमवश हो कर सभी को पुन: जीवित करने का वरदान मांग लिया। उनके पिता ने उनके वरदान को पूर्ण करते हुए पत्नि रेणुका तथा चारों पुत्रों को फि र से नवजीवन प्रदान किया। ऋ षि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम से बहुत प्रसन्न हुए। परशुराम ने अपने माता - पिता के प्रति अपने प्रेम एवं समर्पण की मिसाल कायम की।
Published on:
18 Apr 2018 05:04 pm
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