कार्रवाई की स्क्रिप्ट तैयार, पर मंच पर सिर्फ ‘एक डंपर’!
राजसमंद के कलक्टर बालमुकुंद असावा के निर्देश के बाद जिले में खान विभाग, पुलिस, परिवहन विभाग और प्रशासन ने मिलकर अभियान चलाने की बात कही थी। नाकाबंदी के नाम पर हाइवे और खनिज क्षेत्र में चौकियां सज गईं, लेकिन नतीजा?पूरे दिन की चेकिंग में सिर्फ़ एक ओवरलोड डंपर पकड़ा गया! वो भी तब जब हादसे की रात सोशल मीडिया पर माइनिंग टीम की हलचलें लाइव अपडेट की तरह फैल चुकी थीं। सवाल उठता है कि ये सख्ती थी या खानापूर्ति?
व्हाट्सऐप से वॉर्निंग:’खनन माफिया नेटवर्क’ प्रशासन से ज़्यादा एक्टिव
सूत्रों की मानें तो माइनिंग विभाग की गाड़ी ऑफिस से निकलती नहीं कि सूचना पहले ही खनन माफिया के ग्रुप्स में वायरल हो जाती है। टीम की हर लोकेशन, हर चालान की खबर अगले चौराहे तक पहुंच जाती है। “हरमोड़ पर उनका आदमी होता है… कोई बाइक पर, कोई कार में। जैसे ही माइनिंग टीम निकलती है, पीछे-पीछे रेकी शुरू हो जाती है। फिर क्या, ट्रैक्टर डंपर जंगल की ओर मुड़ जाते हैं या वक्त रहते रास्ता बदल लेते हैं।” इस हाईटेक अलर्ट सिस्टम के सामने सरकारी टीमों की चालें सुस्त और बेहाल नजर आईं।
हर दिन 11 लाख का राजस्व नुकसान, फिर भी ‘एक्शन’ की रफ्तार सुस्त!
जिलेभर में रोज़ाना करीब 400 से अधिक ट्रैक्टर ट्रॉली खंडा (मार्बल वेस्ट) का परिवहन करती हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में बिना रॉयल्टी चल रही हैं। सरकार को प्रतिदिन करीब 11 लाख रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है। ये वही पैसा है, जिससे स्थानीय इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत विकास होना चाहिए। लेकिन जब उत्पादन और परिवहन ही सरकारी रिकॉर्ड में नहीं चढ़ रहा, तो पैसा आएगा कहां से?
हादसे के बाद भी वही सुस्त प्रशासनिक रुख!
गुरुवार को खनन विभाग की टीम ने मोखमपुरा में सिर्फ एक ओवरलोड डंपर पकड़कर चालान काटा। इससे पहले, 15 और 22 मई को भी क्रमशः एक-एक डंपर को पकड़ा गया था। कुल मिलाकर, तीन दिन में तीन वाहनों पर कार्रवाई।और वहीं दूसरी ओर, मजदूरों की जान लेने वाले ओवरलोड ट्रैक्टर ट्रॉली के मालिक अभी तक बेखौफ घूम रहे हैं।
जनता में आक्रोश:’ये तो कागजी घेराबंदी है, असली माफिया को कोई छू नहीं सकता!’
केलवा चौपाटी, जहाँरोज़ जाम लगता था, वहां दो दिन से सन्नाटा है। व्यापारियों ने अपने वाहन या तो खाली करवा दिए हैं या सड़कों से हटा दिए हैं। लेकिन क्या ये डर प्रशासन का है या माफियाओं की ‘समय पर सूचना’ रणनीति का हिस्सा? स्थानीय निवासी बाबूलाल कुम्हार कहते हैं कि “हादसे से प्रशासन जागा, लेकिन माफिया पहले से सतर्क थे। टीम के आने की भनक पहले ही लग चुकी थी, बाकी तो दिखावा है साहब!”
सरकारी मशीनरी के सामने स्मार्ट माफिया: अब तो जीपीएस भी फेल!
विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना डिजिटल ट्रैकिंग और रियल टाइम निगरानी के ये ओवरलोडिंग रोकी नहीं जा सकती। जैसे ही टीम निकलती है, माफिया की चौकसी भी एक्टिव हो जाती है। यदि वाकई सख्ती करनी है, तो जरूरी है: - ट्रैक्टर ट्रॉलियों और डंपरों में जीपीएस अनिवार्य किया जाए।
- हर ट्रैक पर डिजिटल रॉयल्टी निगरानी सिस्टम लगे।
- खनन और परिवहन टीमों की कार्रवाई की लाइव ट्रैकिंग हो।
क्या सिर्फ दिखावा थी कार्रवाई? या फिर माफिया की ‘अदृश्यताकत’ ज्यादा बड़ी है?
बड़ा सवाल यही है कि जब हादसे में दो जानें गईं, तब जाकर सिस्टम जागा। लेकिन क्या महज़ एक डंपर पकड़ना, उस हादसे का जवाब है? अगर माफिया इतना संगठित है कि हर सरकारी हलचल की सूचना चौराहों पर मौजूद ‘स्लॉजनेटवर्क’ को मिल रही है, तो फिर प्रशासन कितना भी सख्त हो, नतीजा वही ढाक के तीन पात!
क्या ज़रूरी है अब?
- प्रशासन को एक स्थायी खनन निगरानी सेल बनानी चाहिए।
- हर खनन क्षेत्र में सीसीटीवी आधारित रीयल टाइम ट्रैकिंग।
- ओवरलोड वाहनों के खिलाफ तत्काल न्याय प्रक्रिया।
- खनिज विभाग को सप्ताह में रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए।