
राजसमंद के निकट एक खेत में मक्का की फसल में रोग की जानकारी लेते कृषि वैज्ञानिक।
राजसमंद. जिले में अच्छी वर्षा के उपरान्त वर्तमान खरीफ फसलों की बुवाई का दौर लगभग पूरा हो गया है। कई स्थानों पर अत्यधिक बारिश के कारण फसलों में कीट एवं व्याधि का प्रकोप बढ़ गया है। मक्का की फसल में फॉल आर्मीवर्म का प्रकोप दिखाई दे रहा है। इसके चलते कृषि विभाग के अधिकारी एवं महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के वैज्ञानिकों की टीम ने रैपिड रोविंग सर्वे किया ।
सर्वे प्रभारी दिलीप सिंह चुंडावत सहायक निदेशक कृषि भीलवाड़ा ने बताया कि जिले की रेलमगरा, कुंवारिया एवं राजसमंद तहसील के खंडेल, कुरज, मंडपिया खेड़ा, बामणिया कला, मोरा, रेलमगरा, शिंदेसर कला, मदारा, ओडा, अरड़किया, राज्यावास, मोही एवं फियावड़ी आदि गांवों का भ्रमण कर खरीफ -फ सलों की स्थिति के बारे में सर्वे किया गया। सर्वे टीम के कीट विज्ञानी डॉ. किशन जीनगर, प्रोफेसर कृषि महाविद्यालय भीलवाड़ा ने बताया की मक्का की फसल में कहीं-कहीं फॉल आर्मीवर्म की शिकायत देखने को मिली है। इसके निदान के लिए मौके पर ही इसके उपचार के बारे में बताया गया। फॉल आर्मी का एक विदेशी कीट है जो मेवाड़ की धरती पर 2018-19 से लगातार भीलवाड़ा, चित्तौडगढ़़, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ जहां मक्का बहुतायत में खरीफ में बुवाई की जाती है वहां इसका प्रकोप देखने को मिला है। इस कीट की स्थिति मक्का फ सल में अभी आर्थिक हानि स्तर से कम पाई गई है। इस कीट के अंडे से सुंडी निकलती है वह मक्का के बीच वाले तने को खाते हुए नीचे की ओर पहुंचती है। इस वजह से पूरा मक्का का पौधा खराब हो जाता है। रैपिड रोविंग सर्वे के दौरान सहायक निदेशक कृषि नाथद्वारा के मयूर दवे, कृषि अधिकारी, पौध सरंक्षण एवं गौरी शंकर जोशी, कृषि अधिकारी फसल एवं विभाग के अन्य विभागीय कृषि प्रसार कार्यकर्ताओं का सहयोग रहा।
यह करना चाहिए उपाय
इस कीट के नियंत्रण के लिए किसानों को इस कीट का प्रकोप नजर आए स्पाइनोशेड 0.5मिली या इमामेक्टिन बेंजोएट 0.5 मिली या लेम्डा साई हेलोथ्रीन 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करना चाहिए। इससे यह कीट नियंत्रित हो जाएगा।
रतालू की फसल मे भी प्रकोप
पौध रोग विशेषज्ञ डॉ.ललित कुमार छाता ने रेलमगरा क्षेत्र में कंद वर्गीय सब्जियों में रतालू फसल में श्याम वर्ण एंथ्रेकनोज नामक बीमारी का प्रभाव पाया गया। इस रोग में सर्वप्रथम पत्तियों पर काले धब्बे पडते हैं तथा बाद में पूरी पत्ती काली पडकऱ पूरे पौधे को धीरे-धीरे समाप्त कर देती है। इस वजह से रतालू के जो कंद बनते हैं वह छोटे रह जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए जैविक फफूंद ट्राइकोडरमा वीरिडी जो की बुवाई से पूर्व खेतों में मिलाने से इस रोग का समूल नष्ट किया जा सकता है। अभी खड़ी फसल में "साफ" नामक फफूंद नाशक दवा जिसमें बाविष्टिन व मैन्कोजेब दोनों होते हैं 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों की जड़ों में ट्रेंचिंग करना चाहिए तथा पौधे के ऊपर खड़ी फसल में सीओसी 3 ग्राम प्रति लीटर पानी एवं 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन प्रति टंकी में घोल बनाकर छिडक़ाव करने से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। शस्य विज्ञानी डॉ. रामावतार ने किसानों व कृषि प्रसार कार्यकर्ताओं से खड़ी फसल में अब किसी भी प्रकार की खरपतवार नाशक दवाओं के प्रयोग को हानिकारक बताया।
Published on:
27 Jul 2023 10:31 am
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