हे! राम अब तो सीता पर दया कर दो
विधवा पर संकटों का पहाड़, बेटी के उपचार में बिक गए सारे गहने, फिरभी चलने-फिरने में असमर्थ है बेटी, सिर छुपाने के लिए छत भी नहीं, खा रही दर-दर की ठोकरें

अश्वनी प्रतापसिंह @ राजसमंद. सीता बाई की डबडबाती आंखें मानो रोज भगवान से एक ही प्रार्थना करती हों, हे! प्रभु, हमारी बहुत परीक्षा लेली, अब बस करो। अब यह शरीर और कष्ट नहीं सह सकता है। शिकवा करे भी क्यों न? उसके ऊपर पिछले एक साल में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। बेटी सरसुरा जाने की बजाए बिस्तर पर पड़ी है। इलाज के लिए जो भी जेवर थे, सब बिक गए। हालत यह है अब रहने-खाने के लिए भी मौहताज होना पड़ रहा है।
हम बात कर रहे हैं, आगरिया निवासी सीता बाई पत्नी स्व. धर्मचंद गुर्जर (५०) की। गुर्जर के दो बेटियां हैं, दोनों के हाथ पीले हो चुके हैं। बड़ी बेटी की ससुराल चारभुजा में है, छोटी की केलवा के पास एक गांव में। एक वर्ष पूर्व लम्बी बीमारी के बाद पति की कैंसर से मौत हो गई, जबकि उसकी छोटी बेटी पूजा का गवना नहीं होने से वह मां के साथ ही रहती है, तथा पिछले दो साल से अपंगता भरी जिंदगी जी रही है। इलाज में उसके तथा मां के गहने बिक गए, रिस्ते-नातेदारों से लाखों का कर्ज हो गया। अब उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं है, जिससे उसका आगे इलाज हो सके।
एक के बाद एक टूटा दुखों का पहाड़
आसींद (भीलवाड़ा) निवासी सीता के पति ३० वर्षों से आगरिया में रहकर मजदूरी करते थे। शादी के बाद सीता भी पति के साथ रहकर मेहनत मजदूरी कर गुजारा करने लगी। करीब चार साल पूर्व सिलिकोसिस नामक बीमारी ने धर्मचंद को घेर लिया, बाद में फेफड़ों का कैंसर हो गया। 2५ फरवरी २०१7 को ब्रेन हेमरेज से उसकी मौत हो गई। जिससे घर की पूरी जिम्मेदारी सीता के कंधों पर आ गई। जैसे-तैसे मेहनत मजदूरी कर वह अपना और छोटी बेटी पूजा का गुजारा चला रही थी। पति की मृत्यु के 7 माह बाद ही परिवार पर एक और कुदरती कहर आ गिरा। छोटी बेटी पूजा जो राजकीय महाविद्यालय आमेट में पढ़ती थी, उसका अचानक रक्तचाप बढ़ा और पैरालाइसिस (लकवा) मार गया। श्वास अवरोध होने पर आनन-फानन में उसे राजकीय आरके चिकित्सालय लाया गया। यहां हालत बिगड़ती देख उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती करवा दिया। यहां छह माह तक उसका उपचार चला और करीब साढ़े तीन लाख रुपए खर्च हो गए।
यह राशि जुटाने में ही सीता तथा पूजा दोनों के जेवर बिक गए। लेकिन उसके बाद भी उसका नाभी से नीचे का शरीर अभी भी सही नहीं हो पाया, जिससे वह चल फिर नहीं सकती है।
पति ने भी बेंच दी जमीन
पूजा की शादी केलवा के पास एक गांव में हुई थी, लेकिन पूजा के नाबालिग होने के कारण गवना नहीं हो पाया था। इसलिए वह मां के साथ ही रहती है। पूजा का पति इंदौर में रहकर मेहनत मजदूरी करता है। जब पूजा की हालत खराब हुई तो पति के पास जो जमापूंजी थी, तथा जमीन का एक टुकड़ा बेंचकर उसके उपचार में लगा दिया। छह माह तक अस्पताल में उपचार के दौरान भी पूजा के साथ रहा। लेकिन उसके बाद भी उसकी हालत में सुधार नहीं आया।
अब बड़ी बेटी के कंधों पर जिम्मेदारी
सीता के पास अपना घर नहीं होने से वह आगरिया के पास किराए पर रहती थी, लेकिन अब पैसे नहीं होने से किराया बढ़ता गया आखिर में उसे घर खाली करना पड़ा। अब वह चारभुजा में बड़ी बेटी के पास रहती है।
अब उपचार की दरकार!
पूजा को अब उपचार की दरकार है। अगर कोई दानदाता सामने और और उसका उपचार करवाए तो ही वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। चिकित्सकों का कहना है कि अब उसे फिजियोथैरेपी की नियमित जरूरत है। जिसके लिए उसे ऐसी जगह पर रहना पड़ेगा, जहां से वह नियमित फिजियोथैरेपी करवा सके, लेकिन उसके पास तो घर चलाने तक के लाले हैं, फिर वह कहां से उपचार करवाए।
सीता खुद भी हुई बीमार!
पति की मौत और बेटी की ऐसी हालत ने सीता को भी गंभीर बीमार कर दिया है, उसे ब्लडप्रेशर की बीमारी है, वह अचानक गश-खाकर गिर जाती है। ऐसे में पूजा को उठाने, शौच आदि के लिए ले जाने में भी उसे खासी परेशानी हो रही है।
सरकार से भी नहीं मिला कोई सहारा
सीता के पास न स्वयं का घर है, न कोई खेत हैं, न कोई कमाने वाला है, इसके बावजूद अभीतक सिर्फ विधवा पेंशन को छोड़कर कोई सरकारी आर्थिक सहायता नहीं मिलती है। सरकार की कई आवास योजनाएं चलने के बाद भी वह बेघर है। जबकि उसने कईबार क्षेत्रीय अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
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