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स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व मंत्री सामु चरण तुबिद का निधन,राजकीय सम्मान के साथ होगी अंत्येष्टि

सामु चरण तुबिद का एकीकृत बिहार की राजनीति में काफी प्रभाव रहा

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सामु चरण तुबिद

सामु चरण तुबिद

(पत्रिका ब्यूरो,रांची): स्वतंत्रता सेनानी और एकीकृत बिहार के पूर्व मंत्री सामु चरण तुबिद का गुरुवार को निधन हो गया। उनके निधन पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शोक जताया है। मुख्यमंत्री ने राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि करने का निर्देश दिया है। शुक्रवार को चाईबासा में अंत्येष्टि होगी, जिसमें राज्य सरकार की ओर से मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा और विधायक लक्ष्मण टुडू शामिल होंगे।


सामु चरण तुबिद का एकीकृत बिहार की राजनीति में काफी प्रभाव रहा। उनके पुत्र और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जे.बी.तुबिद लंबे समय तक झारखंड में गृह सचिव रहे, उनकी बहु राजबाला वर्मा झारखंड में मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुई।

भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता, शहीद बटुकेश्वर दत्त के रहे सहयोगी

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सामु चरण तुबिद ब्रिटिश हुकूमत के ख़लिफ़ लड़ाई में सक्रियता से शामिल हुए। तब वे पटना कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को चकमा देकर पटना से राँची की पदयात्रा कर लोगों को जगाने का काम किया। इस कारण वे तीन महीने तक कॉलेज नहीं जा सके। वे ब्रिटिश संसद में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त के निकट सहयोगी रहे। महात्मा गांधी के आह्वान पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई और अंग्रेजी सरकार में टेक्सटाइल इंस्पेक्टर की अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

यूं रहा राजनीतिक सफर

साल 1947 में वे चाईबासा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के पहले अध्यक्ष बने। 1954 में बिहार विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए और साल 1961 में बिहार सरकार में जनजातीय समुदाय से पहले मंत्री बनाए गए। तब उन्हें वन व पंचायती राज मंत्री बनाया गया था। वे दक्षिण बिहार (झारखंड) क्षेत्र के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। 1969 से 1973 तक वे बिहार लोक सेवा आयोग के चेयरमैन रहे। पंचायती राज व्यवस्था में सुधारों के लिए बनी बलवंत राय मेहता कमेटी में उन्होंने महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका निभाई। उनकी उम्र 98 साल थी। इसके बावजूद वे देश-दुनिया में चल रही गतिविधियों पर पैनी नज़र रखते थे। अपने पुत्र जे बी तुबिद से वे राजनीतिक जानकारियां लिया करते थे और चाईबासा स्थित अपने आवास में लोगों से मिलना उनकी दिनचर्या में शामिल थी।

उन्होंने वर्ष 2015 में लिखा था- " ज़िंदगी है वह ज़िंदगी, जो देश के लिए काम कर सकूँ, मौत है वह मौत, जो देश को जगा सके।"