
रतलाम/सैलाना। बदलते परिवेश का असर आदिवासी अंचल में दिखाई देने लगा है। नगर में इन दिनों देशी फ्रीज की दुकानें सजने लगी है। लेकिन बीते सालों से इनकी बिक्री में कमी आती जा रही है। वहीं उनके दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई है। कारोबारियों के कहना है कि वर्तमान में शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र की दुकानों में भी चिल्ड पानी की कैनों का क्रेज बढ़ गया है। अधिकतर दुकानदार इसका उपयोग कर रहे हैं। इसके चलते देशी फ्रीज का चलन कम होने लगा है।
घर-घर में फ्रीज होने से कारोबार पर असर पड़ा
बुजुर्गों का कहना है कि पहले विद्युत उपकरणों से चलने वाले फ्रीज नहीं थे। उस समय लोग मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग करते थे, लेकिन जैसे जैसे समय बदल रहा वैसे वैसे मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कम होने लगा है। घरों में अब फ्रीज का उपयोग होने लगा है। आदिवासी अंचल में मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग हो रहा है। इसका कारण फ्रीज का पानी से नागरिकों की प्यास ठीक से नहीं बुझ पाती है। वहीं मिट्टी के बर्तनों का पानी प्यास बुझाता है। इसलिए लोग मिट्टी के मटके-मटकी, और नांदों का ही उपयोग कर ते हंै। मिट्टी के बर्तनों में पीने का पानी शुद्ध और अत्यधिक ठंडा रहता है। इस पानी से सर्दी जुकाम खांसी जैसी बीमारियां नहीं होती है।
घर-घर में फ्रीज होने से कारोबार पर असर पड़ा
सदर बाजार में मिट्टी के बर्तनों का व्यवसाय करने वाले गोवर्धनलाल प्रजापति ने बताया कि वर्तमान में चिल्ड पानी की कैन व घर-घर में फ्रीज होने से कारोबार पर असर पड़ा है। इसके चलते दो साल से इनके भाव में बढ़ोतरी नहीं हुई है। इस वर्ष भी छोटी मटकी 20 रुपए प्रति नग, बड़ा मटका 150 रुपए, नल की मटकी 130 रुपए, बड़ी नांद 460 रुपए में बिक रही है। सैलाना में गर्मी का मौसम शुरू होते ही मिट्टी के बर्तनों को बाहर से खरीदने का दौर शुरू हो जाता है। मार्च-अप्रैल महीने में मिट्टी के मटके तथा नांदे बांसवाड़ा, अहमदाबाद, जयपुर , गुजरात और उदयपुर से मंगवाई जाती है। जिन्हें नगर के साथ-साथ आम्बा और रावटी में बेचने के लिए भेजते हैं। जून में इसकी बिक्री कम हो जाती है।
Published on:
15 Apr 2018 05:49 pm
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