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EXCLUSIVE : कभी बब्बर शेर करते थे यहां भगवान की आराधना, धरती से 100 फीट नीचे गुफा में हैं अद्भुत मंदिर

माही नदी के तट पर सदियों से गुफा में विराजमान है भगवान नरसिंह की अद्भुत प्रतिमा..कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा है रास्ता..

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आशीष पाठक
रतलाम. वह न तो दिन में मरेगा न रात में, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मनुष्य से मरेगा, न पशु से, न घर के भीतर मरेगा और न बाहर..जी हां इस वरदान के बाद भी जिन्होंने हिरण्यकश्पय जैसे राक्षस का विनाश किया वो थे भगवान विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह। पत्रिका आज आपको उन्हीं भगवान नरसिंह से ही जुड़े एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बता रहा है जहां सदियों से भगवान नरसिंह विराजमान हैं। मंदिर की खास बात ये है कि ये धरती से करीब 100 फीट की गहराई में गुफा के अंदर स्थित है और इसके तरफ से माही नदी कल कल कर बहती है। रतलाम और झाबुआ जिले की बॉर्डर पर माही नदी के किनारे बसे इस मंदिर तक जाने के लिए काफी कठिन रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है।

गुफा में बना है भगवान नरसिंह का मंदिर
रतलाम जिले से करीब 60 किमी. दूरी पर स्थित नायन गांव से करीब 10 किलोमीटर अंदर सुदूर जंगल में भगवान नरसिंह का एक अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर से अब तक जिले की ज्यादातर आबादी अंजान है। माही नदी के तट पर पहाड़ों की कंदराओं में धरती से करीब 100 फीट नीचे गुफा में सदियों से भगवान नरसिंह का मंदिर है। ये मंदिर 600 वर्ष से भी अधिक पुराना बताया जाता है। मंदिर की पूजा एक ही परिवार 300 से अधिक वर्ष से कर रहे हैं। मान्यता है प्राचीन समय में यहां प्रतिदिन ब्रह्काल में बब्बर शेर भगवान नरसिंह के दर्शन के लिए आते थे।

दुर्गम रास्ते से होकर पहुंचते हैं मंदिर
जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर नायन गांव की पहाड़ियों से इस मंदिर तक जाने का रास्ता अत्यंत दुर्गम व जर्जर है। कच्ची मिट्टी के कई घुमावदार मोड़ व पतली पगडंडी के सहारे इस मंदिर के लिए जाने का मार्ग है। बताया जाता है कि भगवान नरसिंह के मंदिर बनाने की शुरुआत 19वीं सदी से बढ़ा। पुरातत्व दृष्टि से देखा जाए तो मंदिर अत्यंत प्राचीन तो है ही इसके साथ साथ आसपास की हरियाली व गुफा के बाहर बहती माही नदी इसकी प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ा रही है। असल में जब पहाड़ों के ऊपर से खड़े होकर नीचे देखते है तो गुफा के बाहर का नजारा नजर आता है। पहाड़ को तराशकर मंदिर को किसने बनाया यह किसी को भी नहीं पता है। मंदिर में जो पत्थर लगे हुए हैं वो लाल रंग के हैं। मान्यता है कि लालरंग से मंदिर की स्थापना राजपुत युग में तब हुई थी जब इनका साम्राज्य था।

पूर्व में आते थे बब्बर शेर
मंदिर से जुड़े पूर्व पुजारी नाहरसिंह के अनुसार जब जंगल अधिक थे तब यहां बब्बर शेर भी मंदिर में ब्रह्मकाल में पूजन के लिए आते थे, ऐसा उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है। मंदिर के वर्तमान पुजारी राजू सिंगाड़ के अनुसार मंदिर तो गुफा में है ही इसके अलावा आगे का रास्ता सैलाना के केदारेश्वर महादेव तक जाता है। माही का जल लेकर प्राचीन समय में भक्त केदारेश्वर महादेव का अभिषेक करते थे व इसके बाद वहां से उज्जैन स्थित राजा भर्तहरी की गुफा से निकलते थे। अब इन रास्तों को बंद कर दिया गया है।

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