
रतलाम। श्रीगुजराती समाज उमावि का ८०वां स्थापना दिवस और पूर्व विद्यार्थियों का स्नेह सम्मेलन यादगार बन गया। रविवार को शहर सहित अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में पूर्व विद्यार्थियों ने पहुंचकर अपने स्कूली समय की यादें ताजा कर एक दूसरे से गले मिले और उन पलों को भी आत्मीयता के साथ याद किया जो कभी वे यहां पर गुजार चुके थे। वर्तमान से लेकर पूर्व विद्यार्थियों के चेहरे पर खुशी और स्नेह भरा एहसास अलग ही झलक रहा था कि हम आज अपने घर आ गए।
मुख्य अतिथि राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष नगर विधायक चेतन्य काश्यप ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे यहां का निकला हुआ छात्र संस्कारी बने, संस्कारवानी विद्यार्थी का निर्माण हो। हमारे देश में शिक्षा और स्वास्थ्य इन दो चीजों को व्यवसाय से जितना दूर रखेंगे, तभी इस देश का भला हो सकता है। तभी हमारे भारत की संस्कृति आगे रहेगी। मैंने अपने बच्चों को भी समझाया है कि शिक्षा और स्वास्थ्य का व्यवसाय हमारे परिवार में नहीं किया जाएगा। यह मैंने प्रण ले रखा है। ये दोनों सेवा का माध्यम है व्यवसाय की चीज नहीं है। काश्यप ने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि गौरव की बात है कि मैं यहां पढ़ा और आज मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित में संबोधित कर रहा हूं, यही भाव हर छात्र में होना चाहिए। ७१-७२ की बात है जब एक बार भाटी सर ने ड्रेस कोड के कारण में मुझे दो क्लास तक मुर्गा बनाया था। यहां आत्मीयता का भाव ऐसा ही बना है, इस मौके पर काश्यप ने परिवार की तरफ से स्कूल को ११ लाख रुपए राशि देने की घोषणा की गई। अध्यक्षता चिंतक विजयशंकर मेहता द्वारा की गई। संस्था अध्यक्ष जयंतिलाल व्यास, कार्यवाहक अध्यक्ष टीएस अंकलेसरिया, उपाध्यक्ष राजेशभाई पटेल, सचिव जयंतिभाई मारडिया एवं ट्रस्टी किशोरभाई खिलोसिया और प्राचार्य एसआर दुबे ने भी स्कूल से जुड़े अनुभव और पूर्व एवं वर्तमान पिढ़ी के विद्यार्थियों से रूबरू कराया। मयूर व्यास व अश्विनी शर्मा ने संचालन किया। आभार सुधीर सराफ ने माना। दूसरे सत्र में बाहर से आए विद्याॢथयों ने अनुभव साझा किए।
घर जाए तो जरा अपनों के साथ मुस्कुराईये
अध्यक्षता कर रहे चिंतक विजयशंकर मेहता ने कहा कि आज के समय में बच्चों का लालन-पालन करना मुश्किल हो रहा है। इस दौर में सारे काम आसान है, पैसा कमाना, नाम, पद और प्रतिष्ठा पाना भी आसान काम है। मुझे ऐसा लगता है इस दौर में सबसे मुश्किल कोई काम है तो वह है बच्चों को लालन-पालन कर उन्हें योग्य बनाना, पहले सबसे आसान काम यह होता था। इसलिए अपनों के साथ खुश रहे, मुस्कुराएं, यह कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। भय्या कहना बड़ा आसान है इसलिए जरा मुस्कुराईए, आज से घर में प्रवेश करें तो सारी परेशानी, चिंता सबकुछ जुते चप्पल की तरह घर के बाहर छोड़कर अंदर प्रवेश करे। जिन्हे शांति की तलाश हो वह यह करे और जरा मुस्कुराईये। सफलता के लिए शांति बहुत जरूरी है, जिसके जीवन में अंहकार आया उसका जीवन बिगड़ गया, किस बात का अहंकार पालते है हम लोग हैं क्या है, जब यह शरीर समाप्त होता है तो एक मु_ी राख का ढेर रह जाता है। इससे ज्यादा आदमी की ओकात नहीं है।
एक शब्द को १०० लिखने पर चिढ़ गया था...
फोटो आरटी-३०१३-महेंद्र हर्षदभाई ठक्कर (सेवानिवृत्त प्रोफेसर मुंबई)
रतलाम रेलवे क्वाटर में रहे गुजराती स्कूल में १९५०-६० के मध्य अध्ययनरत रहे महेंद्र हर्षदभाई ठक्कर पढ़ाई कर इंदौर में इंजीनियर हुए इसके बाद मुंबई चले गए, वहां पर प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। ठक्कर अपने संस्मरण सुनाते हुए बताया कि हमारे शिक्षक रहे व्यास साहब के द्वारा गुजराती में एक पूछने जाने पर उसका अर्थ नहीं आया तो उन्होंने १०० बार लिखने को बोला, उस समय हमारे दिल में आता था कि ये क्या फालतू नाटक है। लेकिन आज जो हम खड़े वहीं शिक्षक और उनकी शिक्षा की देन है, भाटी सर का अनुशासन बहुत अलग था, उनके चिल्लाने पर विद्यार्थी चड्डी तक गिली कर देते थे।
ग्रेसबेन टीचर का चांटा आज भी याद है...
फोटो आरटी-३००१-विनोदचंद्र भट्ट (सेवानिवृत्त इंजीनियर अहमदाबाद)
अहमदाबाद से आए कंसलटिंग इंजीनियर विनोदचंद्र भट्ट एक साल पूर्व ही सेवानिवृत हुए, रतलाम रेलवे क्वाटर में रहते हुए गुजराती स्कूल में १९६१ से ६९ तक पढ़ाई की। रतलाम आने पर आपने बताया कि यहां का नाम आते ही मैं बच्चे सा महसूस करता हूं। नये पुराने सभी लोग मिले शाला का प्रांगण देखा बहुत बड़ हो गया। वर्तमान शिक्षा प्रणाली के बात करे तो पहले पेट पर पट्टी बांधकर पढ़ाते थे, लेकिन अब आंखों पर पट्टी बांध पढ़ा रहे हैं। पहले जो कह देते थे वहीं होता था। मैं तीसरी कक्षा में था और ग्रेसबेन हमारी टीचर थी, पिछली बैंच पर बैठे थे दूर से कुछ दिखाई नहीं देने पर चांटा मार दिया था वह आज भी याद है, मैं बहुत रोया और टीचर से कहा भी कि मुझे पहली बैंच पर बैठा दीजिए फिर जो पूछना हो पूछिये जवाब दूंगा। उन्होंने वह देखा और वह शाम को घर आई और मम्मी-पापा को बोला की इसकी आंखों में तकलीफ है, इलाज करवाओ वह आज भी याद है।
गुजराती स्कूल तो मेरा घर है...
फोटो आरटी-३००२-अनिल भाई शाह (उद्योगपति मुबंई)
गुजराती स्कूल में १९४७ से ५६ तक अध्ययनरत रहे मुंबई के उद्योगपति अनिल धीरजलाल शाह का कहना है कि बहुत अच्छा लगता है यहां आकर यह तो मेरा घर है। स्कूली जीवन सभी स्थानों पर बदल गया है, हमारे समय का अनुशासन आज के समय में नहीं दिखाई देता। कोई शिक्षक बोल दे वह होना ही है। रतलाम में १९४० मेरा जन्म हुआ, गुजराती स्कूल में १९४७ में आया, १९५६ तक रतलाम था, मैंने ५८ में कॉलेज से इंटर साईंस कर बड़ोदा गया मैं इंजीनियरिंग के लिए ६२ में इंजीनियरिंग हुई फिर वहां से मुंबई गया। पूरा परिवार रतलाम रहा हमारे पापा भी यहीं गुजराती समाज में अध्यक्ष रहे। आज मेरा कोई दोस्त यहां नहीं है, जो वर्तमान ट्रस्ट है महेंद्र भाई देसाई वह मुझसे दो साल सीनियर रहे।
बैंच टूटी प्रीसिंपल के सामने दूसरे परिजन खड़े किए
फोटो आरटी-३००८-अनिल वर्मा (हाईकोर्ट जिला न्यायाधीश इंदौर)
गुजराती स्कूल में १९७७-८० के मध्य अध्ययनरत रहे अनिल वर्मा हाईकोर्ट जिला न्यायाधीश इंदौर में पदस्थ है, वर्मा बताते है कि ३८ साल बाद अपने स्कूल में आकर बहुत अच्छा लगा है। मैं और मेरे मित्र नवीन गंगा बैंच पर उछल रहे थे, तभी बैंच टुट गई थी। प्रीसिंपल उस समय कांतिलाल भाटीजी थे, वे आए और हमें ले जाकर बोले की पेरेंट्स को बुलाकर लाओ। हम सोचे के परिजनों को बुलाकर लाएंगे तो डांट पड़ेगी, तभी मेरे मित्र नवीन के पिता की फेक्ट्री थी वहां से हम दो ऐसे आदमी खोजकर निकाले और दोनों को प्रीसिंपल के सामने लेकर बात कराई तो उन्होंने उन्हें डांट दिया कि आपके के स्कूल में इतनी खराब बैंच है कि हमारे चोंट लग जाती थी। ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है, बिल्डिंग्स बड़ी है, लेकिन बैंच आज भी वहीं है। स्कूल में डेवल्पमेंट कम हुआ है। आज भी आत्मीयता और प्रेम भाव आज भी शिक्षकों का वैसा ही है।
Published on:
30 Apr 2018 05:22 pm
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