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Chandrayaan 2 : बचपन से थी चांद को छूने की तमन्ना, भारत की उड़ान में इस शख्स का भी योगदान

ISRO ने आज भारत को वैश्विक चमक का हकदार बनाया है। भारत को ये सम्मान दिलाने में मध्य प्रदेश के एक सुपुत्र का भी बड़ा योगदान है, जिनकी कड़ी मेहनत के कारण ISRO ने आज इतनी बड़ी सफलता प्राप्त की। हम बात कर रहे हैं, मध्य प्रदेश के रतलाम शहर ( ratlam news ) में रहने वाले हिमाशू चंद्रशेखर शुक्ला (Himashu Chandra Shekhar Shukla) की।

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Chandrayaan 2 news

Chandrayaan 2 : बचपन से थी चांद को छूने की तमन्ना, भारत की उड़ान में इस शख्स का भी योगदान


रतलामः मिशन चंद्रयान 2 ( Chandrayaan 2 ) की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग ने आज पूरे विश्व में भारत को गर्वांवित कर दिया। हालांकि, इसका श्रेय जाता है, इस अभियान से जुड़े एक-एक टीम मेंबर को। इन्हीं लोगों की कड़ी मेहनत के दम पर ISRO ने आज भारत को वैश्विक चमक का हकदार बनाया है। भारत को ये सम्मान दिलाने में मध्य प्रदेश के एक सुपुत्र का भी बड़ा योगदान है, जिनकी कड़ी मेहनत के कारण ISRO ने आज इतनी बड़ी सफलता प्राप्त की। हम बात कर रहे हैं, मध्य प्रदेश के रतलाम शहर ( ratlam news ) में रहने वाले हिमाशू चंद्रशेखर शुक्ला (Himashu Chandra Shekhar Shukla) की। इसरो में साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत हिमाशू चंद्रयान-2 के टीम मेंबर्स में शामिल हैं। चंद्रयान-2 से पहले हिमांशु मंगलायन की टीम के सदस्य भी रह चुके हैं।

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बूस्टर मेकिंग टीम के सदस्य हैं हिमांशू

चंद्रयान-2 की सफलता पूर्वक लॉन्चिंग ( Chandrayaan 2 ISRO Launch ) के बाद रतलाम ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश में भी हिमांशू की ही चर्चा हो रही है। हिमांशु चंद्रयान-2 को तैयार करने वाली टीम मेंबर्स में से एक हैं। यानी चंद्रयान-2 को पृथवी की कक्षा से बाहर ले जाने में इस्तेमाल किया जाने वाले बूस्टर मेकिंग टीम के सदस्य हैं। पत्रिका से खास बातचीत में हिमांशु की बड़ी बहन प्रियंका पांडे शुक्ला ने बताया कि, लॉन्चिंग से पहले हिमाशू ने इस अभियान को सफल बनाने के लिए 30-30 घंटों तक लगातार कड़ी मेहनत की है। हिमांशू की बड़ी बहन से जाना उनके बचपन से जुड़ी खास बातों को...।


MP से ही की पढ़ाई

बचपन से ही कुछ अलग हटकर करने की चाहत रखने वाले हिमांशू ने मध्य प्रदेश के रतलाम से बारहवी कक्षा तक पढ़ाई की। इसके बाद प्रदेश के ही उज्जैन स्थित बीएचयू गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई करने के बाद हिमाशू का चयन सऊदी अरब की केमिकल कंपनी में हुआ। वहां रहकर हिमांशू ने काम के साथ साथ ISRO से संबंधित तैयारी भी की। एसके बाद इसरों में ऑल ओवर इंडिया में सिर्फ दो लोगों की वेकेंसी निकली। उसमें हिमांशू का सिलेक्शन हुआ। तब से लेकर अब तक वो इसरो के साथ जुड़कर देश की उन्नति में भागीदारी निभा रहे हैं।

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[typography_font:14pt;" >'वो बचपन से देखता था खुली आंखों से सपना'

हिमांशू के बचपन के बारे में बताते हुए उनकी बहन ने बताया कि, वो अकसर रात में चांद की ओर देखता रहता था और परिवार के सभी सदस्यों से कहा करता था कि, 'मैं चांद पर जाना चाहता हूं।' इससे ये बात तो स्पष्ट है कि, हिमांशू ने चांद पर जाने का सपना बचपन से ही देख रखा था और आज उनकी मेहनत ने चांद की ओर सफलता पूर्वक उड़ान भर ली है। पढ़ने में काफी तेज़ हिमांशू खूद से ही स्टडी किया करता था। उसने जीवन में कभी भी कोई ट्यूशन या एक्स्ट्रा क्लॉसेज नहीं कीं। बड़ी बहन प्रियंका ने बताया कि, जितना जिम्मेदार वो अपने कम के प्रति है, उतना ही जिम्मेदार वो इतने बड़े संस्थान में जाने के बावजूद घर का भी है। यहां तक की घर में मम्मी पापा की जनरल दवाइयों से लेकर घर पर आज अखबार क्यों नहीं आया और टीवी के बिल पेमेंट करने जैसी सभी छोटी बड़ी जिम्मेदारियों को वो खुद ही पूरा करता है। बहन का कहना है कि, उन्हें और उनके परिवार को हिमांशू पर फक्र है।


चंद्रयान-2 मिशन क्या है?

चंद्रयान-2 हकीकत में चंद्रयान-1 मिशन का ही नया संस्करण है। इसमें ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं। चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जो चंद्रमा की कक्षा में घूमता था। चंद्रयान-2 के जरिए भारत पहली बार चांद की सतह पर लैंडर उतारेगा। यह लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास के बारे में पता लगाया जा सके। वहीं, लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे। लैंडर ये जांचेगा कि, चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा। इसी के साथ भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला विश्व का पहला देश भी बन जाएगा।