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भारत में पहली बार जैन आचार्य ने दिए नवग्रह की पीड़ा निवारण के ये गोपनीय मन्त्र, बड़ी से बड़ी परेशानी हो जाती है दूर

भारत में पहली बार जैन आचार्य ने दिए नवग्रह की पीड़ा निवारण के ये गोपनीय मन्त्र, बड़ी से बड़ी परेशानी हो जाती है दूर

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jain mantra

ratlam jain samaj

रतलाम। विभिन्न संप्रदाय में नवग्रह पीड़ा दूर करने के अनेक प्रकार के उपाय बताए गए हैं। जैन समाज में भी आचार्य व संतों ने अनेक बार विभिन्न तरह से पीड़ा को दूर करने के बारे में अपने व्याख्यान में कहा है। इस बात की जानकारी कम लोगों को है कि 1900 शताब्दी में श्री भद्रबाहुस्वामी द्वारा रचित ग्रहशांति स्त्रोतम का प्रकाशन उज्जैन से हुआ था। इसकी खासियत ये है कि इस पुस्तक में उज्जैन में तत्कालीन समय में ग्रह पीड़ा निवारण के समय मंत्र बताए गए हैं। इस पुस्तक की एक प्रति इस समय रतलाम के ज्योतिष नंदकिशौर पाठक के पास उपलब्ध है। वे इस पुस्तक को जैन धर्मावलंबियों के लिए अनमोल मानते हैं।

ज्योतिष पाठक ने बताया कि पुस्तक में विस्तार से श्री भद्रबाहुस्वामी ने अलग ग्रहों से परेशानी होने पर जैन मंत्र से निवारण विधि बताई है। इनका सही विधि से जप करने से बड़ा लाभ होता है। इसके अलावा ग्रह की पीड़ा का नाश होता है। इसमें यह भी बताया गया है कि किस रंग के फूल का उपयोग किस ग्रह की पीड़ा को दूर करने के लिए किया जाना चाहिए। इससे ये सिद्ध होता है कि प्राचिन समय में भी रंग की ज्योतिष का पालन किया जाता रहा है।

सूर्य ग्रह के लिए है ये मंत्र


सूर्य ग्रह की पीड़ा को दूर करने के लिए लाल फूलों से श्री पद्यप्रभु स्वामी छठें तीर्थंकर की पूजा करें व सूर्य की मूर्ति बनाकर तीर्थंकर की मूर्ति के सामने रखकर गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य चढ़ाकर मंत्र का जप करें। पूजन करने के बाद पद्यप्रभजिनेंद्रस्य नामोच्चारेण भास्कर, शांति तुष्टि च पुष्टि च, रंक्षा कुरु कुरु श्रियम का जप करके बाद में ऊं ह्री नमों सिद्याणंम मंत्र की माला प्रतिदिन करना चाहिए।

चंद्र ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए है ये मंत्र


चंद्र ग्रह की पीड़ा को दूरने के लिए अष्टम तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभ स्वामी की पूजा करना चाहिए। पूर्व की तरह पूजन विधि सभी सामग्री से करके चंद्रप्रभ जिनेंद्रस्य, नाम्ना तारागणाधिप, प्रसन्नों भव शांति च, रंक्षा कुरु जयं धु्रवम का जप करते हुए बाद में ऊं ह्ी नमों आयरियाणं मंत्र की माला करना चाहिए।

मंगल ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए है ये मंत्र


मंगल ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए कुमकुम व लाल फूलों से श्री वासुपूज्य स्वामी द्वादशम् तीर्थंकर की पूजा करना चाहिए। पूजन की सामग्री पूर्व की तरह ही रखकर सर्वदा वासुपूज्यस्य नाम्ना शांति जयश्रियम, रंक्षा कुरु धरासूनों अशुभोपि शुभो भव: मंत्र का जप व एक माला ऊं ह्ी नमो सिध्धाणं की करना चाहिए।

बुध ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए मंत्र


बुध ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए 13वें तीर्थकर श्री विमलनाथ स्वामी, 14वें तीर्थकर अनंतनाथ स्वामी, 15वें तीर्थकर धर्मनाथ स्वामी, 16वें तीर्थकर शांतिनाथ स्वामी, 17वें तीर्थकर कुंथुनाथ स्वामी, 18वें तीर्थकर अरनाथ स्वामी, 19 वें तीर्थकर नमिनाथ स्वामी व 20वें तीर्थंकर महावीर स्वामी, इन 8 तीर्थकरों में से किसी एक तीर्थकर की विशेषकर श्रीशांतिनाथ स्वामी की पूजा करनी चाहिए। इसमें दूध से स्नान कराना, नैवेद्य, फल, फूल से पूजन करके विमलानंत धर्मारा: शांति कुंथुर्नमिस्तथा, महावीरश्च तन्नान्मा, शुभो भूया: सदा बुध: मंत्र का जप करने एक माला ऊं ह्ी नमो आयरियाणं मंत्र का जप करना चाहिए।

गुरु ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए ये मंत्र

गुरु ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए श्री ऋषभदेव स्वामी, श्री अजितनाथ स्वामी, श्री संभवनाथ स्वामी, श्री अभिपंदन स्वामी, श्री सुमतिनाथ स्वामी, श्री सुपाश्र्वनाथ स्वामी, श्री शीतलनाथ स्वामी, श्री श्रयांसनाथ स्वामी में से किसी एक तीर्थंकर विशेषकर श्री ऋणभदेव स्वामी की चंदन आदि से विलेपन द्वारा पूजा करना, फूल, दही, चावंल आदि का नैवेद्य करना चाहिए। इसके बाद ऋषभाजितसुपाŸवा श्रीभिपंदनशीतलों सुमति: संभव: स्वामी, श्रेयासंश्च जिनोत्तम एततीर्थकृतां नाम्ना, पूज्योशुभ: शुभ भव, शांति तुष्टि च पुष्टि च गुरुदेवगणर्चित: मंत्र का जाप करें व इसके बाद एक माला ऊं ह्ी नमों आयरियाणं मंत्र का जप करना चाहिए।

शुक्र ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए ये मंत्र

शुक्र ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए श्वेत फूल व चंदन आदि से श्रीसुविधिनाथ नवमें तीर्थकर की पूजन करना चाहिए। मंदिर में घी का दान बेहतर रहता है। पूजन में पुष्पदंत जिनेंद्रस्य नाम्ना दैत्यगणर्चित, प्रसन्न भव शांति च: रक्षा कुरु कुरु श्रियम् मंत्र जप करें व इसके बाद एक माला ऊं ह्ी नमों अरिहंताणं की करना चाहिए।

शनि ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए ये मंत्र


शनि ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए नीलवर्ण के फूलों से श्री मुनिसुव्रत स्वामी बीस वें तीर्थकर की पूजा का विधान है। चमेली का तेल का स्नान व दान शनिवार से करना चाहिए। इसके बाद श्रीसुव्रतजिनेंद्रस्य नाम्ना सूर्यागसंभव, प्रसन्नों भ
व शांति च, रंक्षा कुरु कुरु श्रियम जप करने के बाद ऊं ह्ी नमों लोएसव्वसाहूणं मंत्र की माला जप करना चाहिए।

राहु ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए ये मंत्र

राहु ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए नीले फूल लेकर श्री नेमीनाथ स्वामी बाईसवें तीर्थकर की पूजन का विधान है। पूजन में श्रीनेमिनाथतीर्थेश: नामत: सिंहिकासुत प्रसन्नो भव शांति च, रक्षा कुरु कुरु श्रियम जप करें व इस मंत्र के बाद ऊं ह्ी नमों लोएसव्वसाहूणं मंत्र की माला जप करना चाहिए।

केतु ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए ये मंत्र


केतु ग्रह की पीड़ा दूर करने के लिए अनार के फूल या पत्तों से श्रीमल्लिनाथ स्वामी व श्रीपाश्र्वनाथ स्वामी तीर्थंकर के पूजन का विधान है। पूजन में राहो सप्तराशिश्च केतो श्रीमल्लिपाŸचयों नाम्ना शांति च तुष्टि च रक्षां कुरु जयश्रियम, जप करते हुए ऊं ह्ी नमों लोएसव्वसाहूणं मंत्र की माला जप करना चाहिए।

इनके दान से मिलता है बड़ा लाभ


ज्योतिष पाठक ने बताया कि सूर्य के लिए स्वर्ण, गेहूं, गुड़ व लाल वस्त्र का दान, चंद्र के लिए मोती, चांदी, शकर, चावल, कपूर, मंगल के लिए मंूगा, ताम्रपात्र, गेहूं, बुध के लिए घी, मुंगदाल, कांसा, कपूर, गुरु के लिए खांड, पुखराज, लड्डू, पीला वस्त्र, शुक्र के लिए हीरा, चांदी, घी, दूध, चावल, शनि के लिए तेल, उड़द, लोहा, नीलम व काला वस्त्र, राहु के लिए तिल, तेल, सात प्रकार का धान्य, श्रीफल या नारियल, केतू के लिए कस्तूरी, लोहा, खोया, तिल, तेल, सात धान्य आदि का दान करना चाहिए।