यह बात अलग है यह जिम्मेदार अस्पताल में तैनात वार्डबॉय की रहती है, लेकिन अधिकांश समय वे सेवा स्थल से नदारत ही नजर आते हैं, यहां तक की स्ट्रेचर का भी स्थान निर्धारित नहीं है। घायल-गंभीर मरीजों के परिजन ही लोगों से पूछते हुए स्ट्रेचर धकेलकर एम्बुलेंस तक लाते-ले-जाते नजर आते हैं। दोपहर 12.21 बजे रावटी के पास नरसिंगगढ़ से गंभीर घायल हरिराम को उपचार के लिए जिला अस्पताल लेकर परिजन पहुंचे, ड्रेसिंग के बाद चल भी नहीं पा रहे गंभीर घायल को परिजनों ने कंधा देकर संभाला कुछ देर बात दोनों ने घायल को गोद में उठाया और इमरजेंसी वार्ड में पलंग तक ले गए, तब तक कोई वार्डबाय इनकी मदद करने नहीं पहुंचा।
कोई नहीं मिला तो हम उठा ले आए
परिजन कन्हैया ने बताया कि घायल भाई दर्द से परेशान होकर पैदल नहीं चल पा रहा था, स्ट्रेचर नहीं मिली तो हम दोनों उठाकर ले आए। ऐसा एक या दो बार नहीं अस्पताल में दिन में कई बार ऐसे नजारे देखने को मिल जाते हैं, जहां घायल-बीमार को परिजन ही लाते ले जाते नजर आते हैं। ये बात अलग है कि जिला अस्पताल में दो वार्ड बॉय तैनात रहते हैं, लेकिन ऐसे समय वे कहां रहते वे ही जाने।
नहीं पहनते ड्रेस न निर्धारित स्थान
जिला अस्पताल में घायल-गंभीर मरीजों को लाने ले जाने का कार्य के लिए तैनात वार्डबॉय कभी ड्रेस में नजर नहीं आते। इसलिए अनजान परिजन यहां वहां भटकते रहते हैं, ना ही इनका कोई निर्धारित स्थान है। मजबूरीवश अधिकांश समय अपने मरीजों को स्वयं ही उठाकर उपचार के लिए यहां वहां भटकते रहते हैं।